कहीं आपकी पूजा शास्त्रों के विरुद्ध तो नहीं

punjabkesari.in Wednesday, Jan 28, 2015 - 09:28 AM (IST)

अनेक  बार यह प्रश्र उठता है कि घर में पूजा-स्थल कहां बनाया जाए? भारतीय परिवार के लिए पूजा-स्थल अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। पूजा स्थल घर के लिए हो, दुकान के लिए हो या अन्य व्यावसायिक स्थल के लिए, पूजा स्थल की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता।

वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा स्थल पूर्व-उत्तर या ईशान कोण का ही उत्तम होता है। नारद पुराण में ईशान्य में मंदिर रखना और प्रतिमाओं का मुख पश्चिम में रखना उत्तम माना गया है। ईशान कोण भगवान शिव की, समस्त देवों के गुरु बृहस्पति तथा मोक्षकारक केतु की दिशा मानी गई है। इन सभी कारणों से इसे सबसे शक्तिशाली दिशा माना जाता है। यह अत्यंत शुभ जगह है।

 ईशान कोण में भले ही पूजा स्थल न हो किन्तु इस दिशा में कभी कूड़ा-कर्कट, झाड़ू, जूते आदि न रखें। इस दिशा में की गई सभी पूजा-साधना सिद्ध होती है तथा फलदायक होती है। अगर आप एक से अधिक देवी-देवता की पूजा करते हों तो अपनी पूजा की जगह के बीच में गणेश, ईशान कोण में विष्णु या उनके अवतारी श्री कृष्ण, अग्निकोण में शिव, नैत्र्रदत्यकोण  में सूर्य तथा वायव्यकोण में सूर्य की स्थापना करनी चाहिए।

पुराणों के अनुसार सबसे पहले सूर्य की और उसके बाद क्रम से गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु की पूजा करनी चाहिए, पूर्व दिशा की ओर  मुंह करके जिस किसी भी काम को किया जाता है उसका परिणाम उत्तम होता है। इसी कारण पूर्व दिशा की ओर मुंह करके की गई पूजा अच्छा फल देने वाली होती है।

जो व्यक्ति मोक्ष की कामना लेकर पूजा करते हैं उन्हें ईशान कोण में पूर्वाभिमुख हो भगवान की पूजा या ध्यान करना चाहिए। ऐसी पूजा में  प्रतिमाओं तथा चित्रों का मुख पश्चिम दिशा की ओर होता है। जो लोग सांसारिक सुख-साधन की कामना से पूजा करते हैं उन्हें ईशान कोण में ऐसे स्थान पर प्रतिमाओं व चित्रों की स्थापना करनी चाहिए जिसमें प्रतिमाओं का मुख पूर्व की ओर हो और साधक पश्चिम की ओर मुंह करके बैठे।

ईशान कोण में निर्मित पूजा स्थल पर अग्रि का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। यह जलतत्व की दिशा है इसलिए यहां अधिक समय तक दीप, धूप बत्ती आदि नहीं जलानी चाहिए। इसके परिणाम ठीक नहीं होते। ईशान कोण में भारी सामान तथा ऊंचा सामान नहीं रखना चाहिए। इस दिशा में भारी एवं ऊंचा मंदिर नहीं बनाना चाहिए।

अगर घर के अंदर मंदिर रखना ही चाहते हैं तो पूर्व की दीवार से छ: सात इंच की दूरी पर एक हल्का व छोटा-सा लकड़ी का मंदिर बना कर रखा जा सकता है। उस दीवार में आला बनवाकर उसमें मूर्त रखी जा सकती है।

पूजा स्थल पर प्रतिमाओं एवं चित्रों की संख्या का भी ध्यान रखना चाहिए। घर में दो शिवलिंग, गणेश की तीन प्रतिमाएं, देवी की तीन प्रतिमाएं, दो शंख, दो सूर्य की प्रतिमाओं की स्थापना नहीं करनी चाहिए। सबसे अच्छा यह है कि पूजा स्थल पर चित्र ही रखे जाएं तथा मंदिरों में जाकर मूर्त की पूजा की जाए।

मत्स्य पुराण के अनुसार घर में अंगूठे के नाप के बराबर से लेकर बारह अंगुल के नाप के बराबर तक की प्रतिमा रखी जा सकती है। इससे बड़ी प्रतिमाओं को घर के पूजा-स्थल पर नहीं रखना चाहिए। ईशान कोण में सीढ़ी का निर्माण करके कई व्यक्ति सीढ़ी के नीचे पूजा-स्थल बनाकर उसमें पूजा करते हैं। ऐसा करना शास्त्रानुसार दोषपूर्ण माना गया है। संयुक्त परिवार में भी पूजा स्थल एक ही होना चाहिए। प्रत्येक घर में अपनी-अपनी पूजा करना शास्त्र के विरुद्ध माना गया है।                                                                                                                                                                                                                         —आनंद कुमार अनंत  


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