रोगों से हैं परेशान तो ज्योतिषिय उपायों से करें समाधान

punjabkesari.in Tuesday, Sep 08, 2015 - 03:58 PM (IST)

कर्म तभी संभव हो सकता है जब हम आत्म भाव में स्थिर रहे और हर पल चित्त से प्रेम की धारा बहती रहे। जब कर्म किया जाता है तो उस कर्म का फल हमारे जीवन की संचित पूंजी का हिस्सा बन जाता है और बुरे कर्म करने से पाप कर्मों का। इन  दोनों तरह के कर्मों का फल व्यक्ति को अवश्य भोगना होता है। जब अच्छे कर्म करते है तो पुण्य फल की प्राप्ति होती है। यदि इस जन्म में वो प्राप्त नहीं हो पाएं तो अगले जन्म में पुण्य फल मिलते है या फिर एक जन्म से दूसरे जन्म के बीच के समय में भी चित्त उसी भाव में रहने से सुख का अनुभव करता है। जिसको स्वर्ग कहा जाता है।

जब हमारे पुण्य कर्म जागृत होते हैं उस समय में दुःखों को दूर करने में वास्तु शास्त्र, ज्योतिष, औषधि उपचार आदि सहायक सिद्ध होते हैं। जीवन में कुछ कर्म ऐसे होते हैं जिनका प्रभाव चित्त में जाकर मिल जाता है,फिर जब तक उन कर्मों का फल मिल न जाए वो चित्त में ही संचित रहते हैं, ऐसे पुण्य कर्मों को संचित कर्म कहा जाता है। जो चित्त में कुछ दिन, महीनों और साल तक ही नहीं बहुत से जन्मों बाद भी जमा रह सकते हैं।  शास्त्रों में ज्ञान योग का वर्णन है जिसके सिद्ध होते ही संचित कर्म ऐसे ख़त्म हो जाते हैं जैसे सैंकड़ों सालों की काल कोठारी का अन्धेरा केवल एक दीपक से दूर हो जाता है।  

सिरदर्द : शनिवार एवं मंगलवार को हनुमान जी के पैरों पर लगे सिंदूर का तिलक लगाते रहने से सिरदर्द की शिकायत काफी कम हो जाती है।

उच्च रक्तचाप : उक्त रक्तचाप से मुक्ति के लिए रुद्राक्ष की माला काले धागे में पिरोकर पहनें। काला धागा लेना जरूरी है। विशेष लाभ हेतु तांबे का कड़ा पहनें और ॐ भौमाय नम:’ मंत्र का नित्य जप तक करें। भोजन में नमक की मात्रा कम रखें। कहते हैं गाय के शरीर पर लगातार हाथ फेरने से भी हाई ब्लड प्रैशर कंट्रोल में रहता है। 

जब बालक बीमार हो : बालक के वजन बराबर बाजरा लें, उसमें से 7 मुट्ठी बाजरा प्रतिदिन बालक पर से एक बार वार कर छोटी-छोटी चिडिय़ों को सूर्योदय से पहले डालें। 

—अ.मि.


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