आप भी करते हैं स्टील के बर्तनों का इस्तेमाल तो हो जाएं सावधान!

Thursday, Aug 06, 2015 - 09:47 AM (IST)

स्टेनलेस स्टील मूलतः लोहा है जो वायुमंडल व रासायनिक परिक्रिया से खराब नहीं होता है। स्टेनलेस स्टील अपेक्षाकृत अधिक ताप भी सह सकते हैं। स्टील मूलतः इस्पात अर्थात लोहे से निर्मित होता है। स्टील में ये गुण ताम्र, कोबाल्ट, टाइटेनियम, गंधक, नियोबियम, टैंटालियम, कोलंबियम व नाइट्रोजन मिलाने से उत्पन्न होते हैं। क्रोमियम इस्पात के बाह्य तल को निष्क्रिय बनाता है। प्रतिरोधी शक्ति की वृद्धि के लिए इसमें निकल भी मिलाया जाता है। निकल के स्थान पर अंशत: मैंगनीज़ का उपयोग किया जाता है। इनकी सहायता से विभिन्न रासायनिक, यांत्रिक व भौतिक गुणों के स्टील बनाया जाता है परंतु धार्मिक शास्त्रों में लोहे को अपवित्र धातु माना गया है तथा पूजा व धार्मिक क्रिया कलापों में लोहे से बने बर्तनों के उपयोग की मनाही की गई है। लोहे से मूर्तियां भी नहीं बनाई जाती। लोहे में हवा पानी से जंग लगता है व कालिख निकलती है इसलिए इन्हें अपवित्र कहा गया है। अतः स्टील मूलतः लोहे से बने होने हेतु इसका उपयोग भी शुभ कर्म हेतु निषिद्ध माना गया है।
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आमतौर पर लोग पूजा हेतु तांबा या कांसे के पत्रों का प्रयोग करते हैं। हलांकि जिनके पास धन होता है वह सोना-चांदी के पात्र का भी उपयोग करते हैं लेकिन लोहे या स्टील के बर्तनों का प्रयोग पूजा-पाठ में करते हुए किसी को नहीं देखा होगा। श्राद्धकर्म करने वाले व्यक्ति भी पितृओ को जल देने हेतु तांबा या कांसे के बर्तनों का प्रयोग करते हैं लोहे का इस्तेमाल यहां भी नहीं होता। लोहा या उससे बनने वाले पात्रों का प्रयोग पूजा व श्राद्ध में इसलिए नहीं होता है क्योंकि लोहा निम्न धातु है अतः इसे अशुद्घ माना गया है। लोहे की खोज सोना, चांदी तांबा व कांसे के बाद में हुई तब तक समाज में सोना, चांदी तांबा व कांसे शुद्घ धातु के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुके थे व लोग इसे पारंपरिक तौर पर प्रयोग करने लगे थे। ज्योतिष की दृष्टि से लोहा व उससे बनने वाले सभी पात्रों पर शनि का आधिपत्य होता है। नवग्रह में शनि को निम्नवर्गीय माना गया है जिसको देव पूजन से पृथक रखा गया है। लोहे से बने पत्रों का प्रयोग दैत्य, वाममार्गीय व तामसिक पूजन में किया जाता है।
 
पौराणिक दृष्टिकोण से लोहे का संबंध पाताल से है। एक समय में देवताओं और असुरों में परस्पर विजय पाने हेतु तारकामय युद्ध हुआ। उस समय देवताओं ने दैत्यों को परास्त कर दिया। दैत्यों के परास्त होने के उपरान्त ताराकासुर के तीन पुत्र ''ताराक्ष'', ''कमलाक्ष'' तथा ''विद्युन्माली'' ने तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न कर वर प्राप्त किया कि वे तीनों आकाश में तीन वृहत् नगराकार विमानों में तीन पुरों की स्थापना करेंगे। सोने से निर्मित पहला पुर अधिपति तारकाक्ष द्वारा स्वर्गलोक में स्थित किया गया। चांदी से बना दूसरा पुर अधिपति कमलाक्ष द्वारा भूलोक में स्थित किया गया। लोहे से बना तीसरा पुर अधिपति विद्युन्माली पाताल में स्थापित हुआ। शास्त्रों में पाताल का संबंध राक्षसों व दैत्यों हेतु बताया गया है। शास्त्र त्रिपुरा रहस्य के अंतर्गत लोहे और उससे बनी वस्तुओं पर काली का आधिपत्य कहा गया है। काली मृत्यु और काहल की देवी बताई गयी है अर्थात लोहे व स्टील निर्मित पत्रों का उपयोग खान-पान तक ही सीमित है व इन्हे शुभ कार्यों में उपयोग में नहीं लिया जाता। 
 
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com 

 

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