दोषसिद्धि, सजा पर रोक लगने पर सांसद का दर्जा बहाल करने को स्पीकर का रुख कर सकते हैं राहुल : विशेषज्ञ
punjabkesari.in Saturday, Mar 25, 2023 - 10:16 AM (IST)

नयी दिल्ली, 24 मार्च (भाषा) ‘मोदी उपनाम’ को लेकर की गई विवादित टिप्पणी से जुड़े आपराधिक मानहानि मामले में अपीलीय अदालत द्वारा कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दोषसिद्धि और सजा पर रोक लगाए जाने की सूरत में उनके पास सांसद का अपना दर्जा बहाल करने के लिए लोकसभा अध्यक्ष का रुख करने का अधिकार है। विधि विशेषज्ञों ने शुक्रवार को यह बात कही।
राहुल गांधी को शुक्रवार को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया। इससे पहले, बृहस्पतिवार को सूरत (गुजरात) की एक अदालत ने 2019 के आपराधिक मानहानि मामले में राहुल को दोषी करार देते हुए उन्हें दो साल के कारावास की सजा सुनाई थी।
हालांकि, सजा के ऐलान के बाद अदालत ने राहुल को जमानत भी दे दी थी और उनकी सजा के अमल पर 30 दिन की रोक लगा दी थी, ताकि वह फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकें।
वरिष्ठ अधिवक्ता एवं उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि राहुल गांधी को चुनाव आयोग के हरकत में आने और केरल की वायनाड सीट पर लोकसभा उपचुनाव की घोषणा करने से पहले अपनी लोकसभा सदस्यता को बहाल किए जाने के लिए दोषसिद्धि एवं सजा के निलंबन के वास्ते तेजी से ऊपरी अदालत का रुख करना होगा।
सिंह ने कहा, “अगर दोषसिद्धि पर रोक लगती है, तो राहुल की सदस्यता फिर से बहाल की जा सकती है। उन्हें तुरंत अपीलीय अदालत का रुख करना होगा। अगर राहुल की सजा पर रोक लग जाती है, तो उनकी सीट पर उपचुनाव नहीं होगा।”
एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता अजित सिन्हा ने भी समान राय जाहिर की। उन्होंने कहा कि अपीलीय अदालत दोषसिद्धि पर रोक लगा सकती है, जिसका नतीजा उनकी लोकसभा सदस्यता बहाल किए जाने के रूप में सामने आ सकता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता एवं संवैधानिक कानून विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी का मानना है कि अयोग्यता अवैध है, क्योंकि राहुल गांधी को अदालत के फैसले को चुनौती देने के लिए 30 दिन का समय दिया गया था। उन्होंने कहा कि बहरहाल, अगर राहुल राहत चाहते हैं, तो उन्हें दोषसिद्धि पर रोक के लिए तेजी से ऊपरी अदालत का रुख करना होगा।
द्विवेदी ने कहा, “जब उन्हें ऊपरी अदालत से फैसले के अमल पर रोक मिल जाएगी, तब अयोग्यता स्थगित हो जाएगी... मेरे विचार से चूंकि, सजा को एक महीने के लिए निलंबित रखा गया है, इसलिए उन्हें अयोग्य ठहराया जाना अवैध है।”
राहुल के सामने उपलब्ध कानूनी उपायों के बारे में बताते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि मुकदमे की सुनवाई समाप्त हो चुकी है, दोषसिद्धि एवं सजा का ऐलान हो चुका है और परिणामस्वरूप अयोग्यता भी प्रभावी हो गई है।
उन्होंने कहा कि अब चुनौती दिए जाने की सूरत में इस मामले की सुनवाई सत्र अदालत करेगी, जो मामले में पहली अपीलीय अदालत है।
लूथरा ने कहा, “मुझे लगता है कि सत्र न्यायालय से न केवल सजा को निलंबित करने, बल्कि दोषसिद्धि पर रोक लगाने की भी अपील की जाएगी। दोषसिद्ध पर रोक लगाए जाने की सूरत में राहुल गांधी लोकसभा अध्यक्ष का रुख करने और उनसे यह कहने के हकदार होंगे कि मेरी दोषसिद्धि पर रोक लगा दी गई है, ऐसे में अयोग्यता प्रभावी नहीं रह सकती।”
एससीबीए के अध्यक्ष विकास सिंह के मुताबिक, राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराया जाना गलत है।
उन्होंने कहा, “कानून दो साल तक बचाने के लिए है... आयकर से जुड़े एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने एक फैसला दिया था, जिसमें उसने ‘तक’ शब्द की व्याख्या की थी और कहा था कि ‘तक’ शब्द का अर्थ है आगे की अवधि... यहां (जनप्रतिनिधित्व कानून में) सजा की अवधि का जिक्र ‘दो साल तक या उससे अधिक’ के रूप में किया गया है... इसका मकसद दो साल के कारावास की सजा पाने वाले जनप्रतिनिधि को अयोग्यता से बचाना है।”
सिंह ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) भी दो साल के कारावास की सजा वाले अपराधों को गंभीर नहीं मानती है और विधायी मंशा भी दो साल तक बचाने की थी।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
राहुल गांधी को शुक्रवार को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया। इससे पहले, बृहस्पतिवार को सूरत (गुजरात) की एक अदालत ने 2019 के आपराधिक मानहानि मामले में राहुल को दोषी करार देते हुए उन्हें दो साल के कारावास की सजा सुनाई थी।
हालांकि, सजा के ऐलान के बाद अदालत ने राहुल को जमानत भी दे दी थी और उनकी सजा के अमल पर 30 दिन की रोक लगा दी थी, ताकि वह फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकें।
वरिष्ठ अधिवक्ता एवं उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि राहुल गांधी को चुनाव आयोग के हरकत में आने और केरल की वायनाड सीट पर लोकसभा उपचुनाव की घोषणा करने से पहले अपनी लोकसभा सदस्यता को बहाल किए जाने के लिए दोषसिद्धि एवं सजा के निलंबन के वास्ते तेजी से ऊपरी अदालत का रुख करना होगा।
सिंह ने कहा, “अगर दोषसिद्धि पर रोक लगती है, तो राहुल की सदस्यता फिर से बहाल की जा सकती है। उन्हें तुरंत अपीलीय अदालत का रुख करना होगा। अगर राहुल की सजा पर रोक लग जाती है, तो उनकी सीट पर उपचुनाव नहीं होगा।”
एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता अजित सिन्हा ने भी समान राय जाहिर की। उन्होंने कहा कि अपीलीय अदालत दोषसिद्धि पर रोक लगा सकती है, जिसका नतीजा उनकी लोकसभा सदस्यता बहाल किए जाने के रूप में सामने आ सकता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता एवं संवैधानिक कानून विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी का मानना है कि अयोग्यता अवैध है, क्योंकि राहुल गांधी को अदालत के फैसले को चुनौती देने के लिए 30 दिन का समय दिया गया था। उन्होंने कहा कि बहरहाल, अगर राहुल राहत चाहते हैं, तो उन्हें दोषसिद्धि पर रोक के लिए तेजी से ऊपरी अदालत का रुख करना होगा।
द्विवेदी ने कहा, “जब उन्हें ऊपरी अदालत से फैसले के अमल पर रोक मिल जाएगी, तब अयोग्यता स्थगित हो जाएगी... मेरे विचार से चूंकि, सजा को एक महीने के लिए निलंबित रखा गया है, इसलिए उन्हें अयोग्य ठहराया जाना अवैध है।”
राहुल के सामने उपलब्ध कानूनी उपायों के बारे में बताते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि मुकदमे की सुनवाई समाप्त हो चुकी है, दोषसिद्धि एवं सजा का ऐलान हो चुका है और परिणामस्वरूप अयोग्यता भी प्रभावी हो गई है।
उन्होंने कहा कि अब चुनौती दिए जाने की सूरत में इस मामले की सुनवाई सत्र अदालत करेगी, जो मामले में पहली अपीलीय अदालत है।
लूथरा ने कहा, “मुझे लगता है कि सत्र न्यायालय से न केवल सजा को निलंबित करने, बल्कि दोषसिद्धि पर रोक लगाने की भी अपील की जाएगी। दोषसिद्ध पर रोक लगाए जाने की सूरत में राहुल गांधी लोकसभा अध्यक्ष का रुख करने और उनसे यह कहने के हकदार होंगे कि मेरी दोषसिद्धि पर रोक लगा दी गई है, ऐसे में अयोग्यता प्रभावी नहीं रह सकती।”
एससीबीए के अध्यक्ष विकास सिंह के मुताबिक, राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराया जाना गलत है।
उन्होंने कहा, “कानून दो साल तक बचाने के लिए है... आयकर से जुड़े एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने एक फैसला दिया था, जिसमें उसने ‘तक’ शब्द की व्याख्या की थी और कहा था कि ‘तक’ शब्द का अर्थ है आगे की अवधि... यहां (जनप्रतिनिधित्व कानून में) सजा की अवधि का जिक्र ‘दो साल तक या उससे अधिक’ के रूप में किया गया है... इसका मकसद दो साल के कारावास की सजा पाने वाले जनप्रतिनिधि को अयोग्यता से बचाना है।”
सिंह ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) भी दो साल के कारावास की सजा वाले अपराधों को गंभीर नहीं मानती है और विधायी मंशा भी दो साल तक बचाने की थी।
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