अदालतों में चार लाख से अधिक ऐसे मामले जो 25 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित: सरकार
punjabkesari.in Thursday, Feb 02, 2023 - 06:16 PM (IST)

नयी दिल्ली, दो फरवरी (भाषा) सरकार ने बृहस्पतिवार को देश भर के विभिन्न अदालतों में चार लाख से अधिक मामले ऐसे हैं जो 25 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित हैं।
विधि और न्याय मंत्री किरेन रीजीजू ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी। उनके मुताबिक ऐसे लंबित मामलों की कुल संख्या 4,01,099 है।
रीजीजू ने बताया, ‘‘27 जनवरी 2023 तक एकीकृत वाद प्रबंधन सूचना प्रणाली (आईसीएमआईएस) से प्राप्त डाटा के अनुसार भारत के उच्चतम न्यायालय में 25 वर्षों से अधिक समय तक लंबित मुकाबलों की संख्या 81 है।’’
उन्होंने कहा कि 30 जनवरी 2023 तक राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर उपलब्ध डाटा के अनुसार उच्च न्यायालय और जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में 25 वर्षों से अधिक समय तक लंबित वादों की संख्या क्रमशः 1,24,810 और 2,76,208 है।
यह पूछे जाने पर कि क्या न्याय के लिए लंबे समय तक चल रहे मुकदमों पर होने वाले खर्च का कोई अध्ययन कराया गया है, जिससे पता चल सके कि न्याय पाने में आम आदमी पर कितना आर्थिक दवाब पड़ता है, केंद्रीय मंत्री ने बताया कि यह पता लगाने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया गया है।
उन्होंने बताया कि लंबित मामलों की समस्या एक बहुआयामी समस्या है जो देश की जनसंख्या में वृद्धि और जनता में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ ही साल दर साल नए मामलों की संख्या भी बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि न्यायालयों में बड़ी संख्या में लंबित मामलों के कई कारण है और इनमें अन्य बातों के साथ पर्याप्त संख्या में न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारियों की उपलब्धता, सहायक न्यायालय कर्मचारीवृंद और भौतिक अवसंरचना, बार-बार स्थगन और मॉनिटर करने की पर्याप्त व्यवस्था में कमी, सुनवाई के लिए ट्रैक और बहु मामले, साक्ष्यों की जटिलता, साक्ष्य की प्रकृति, साक्षियों और वादियों तथा नियमों एवं प्रक्रियाओं के उचित आवेदन सम्मिलित है।
रीजीजू ने कहा कि इसके अतिरिक्त वर्ष 2020 के आसपास आई कोविड-19 महामारी ने भी पिछले तीन वर्षों में लंबित मामलों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
उन्होंने कहा कि यह उल्लेखनीय है कि आपराधिक न्याय प्रणाली विभिन्न अभिकरणों यानी पुलिस, फोरेंसिक प्रयोगशाला, हस्तलेख विशेषज्ञ और विधिक चिकित्सा विशेषज्ञ की सहायता से कार्य करती है।
उन्होंने कहा कि संबद्ध अभिकरणों द्वारा आपसी सहायता प्रदान करने में देरी से भी मामलों के निपटान में विलंब होता है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
विधि और न्याय मंत्री किरेन रीजीजू ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी। उनके मुताबिक ऐसे लंबित मामलों की कुल संख्या 4,01,099 है।
रीजीजू ने बताया, ‘‘27 जनवरी 2023 तक एकीकृत वाद प्रबंधन सूचना प्रणाली (आईसीएमआईएस) से प्राप्त डाटा के अनुसार भारत के उच्चतम न्यायालय में 25 वर्षों से अधिक समय तक लंबित मुकाबलों की संख्या 81 है।’’
उन्होंने कहा कि 30 जनवरी 2023 तक राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर उपलब्ध डाटा के अनुसार उच्च न्यायालय और जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में 25 वर्षों से अधिक समय तक लंबित वादों की संख्या क्रमशः 1,24,810 और 2,76,208 है।
यह पूछे जाने पर कि क्या न्याय के लिए लंबे समय तक चल रहे मुकदमों पर होने वाले खर्च का कोई अध्ययन कराया गया है, जिससे पता चल सके कि न्याय पाने में आम आदमी पर कितना आर्थिक दवाब पड़ता है, केंद्रीय मंत्री ने बताया कि यह पता लगाने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया गया है।
उन्होंने बताया कि लंबित मामलों की समस्या एक बहुआयामी समस्या है जो देश की जनसंख्या में वृद्धि और जनता में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ ही साल दर साल नए मामलों की संख्या भी बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि न्यायालयों में बड़ी संख्या में लंबित मामलों के कई कारण है और इनमें अन्य बातों के साथ पर्याप्त संख्या में न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारियों की उपलब्धता, सहायक न्यायालय कर्मचारीवृंद और भौतिक अवसंरचना, बार-बार स्थगन और मॉनिटर करने की पर्याप्त व्यवस्था में कमी, सुनवाई के लिए ट्रैक और बहु मामले, साक्ष्यों की जटिलता, साक्ष्य की प्रकृति, साक्षियों और वादियों तथा नियमों एवं प्रक्रियाओं के उचित आवेदन सम्मिलित है।
रीजीजू ने कहा कि इसके अतिरिक्त वर्ष 2020 के आसपास आई कोविड-19 महामारी ने भी पिछले तीन वर्षों में लंबित मामलों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
उन्होंने कहा कि यह उल्लेखनीय है कि आपराधिक न्याय प्रणाली विभिन्न अभिकरणों यानी पुलिस, फोरेंसिक प्रयोगशाला, हस्तलेख विशेषज्ञ और विधिक चिकित्सा विशेषज्ञ की सहायता से कार्य करती है।
उन्होंने कहा कि संबद्ध अभिकरणों द्वारा आपसी सहायता प्रदान करने में देरी से भी मामलों के निपटान में विलंब होता है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।