भारतीय सेना में जेएजी भर्ती में विवाहितों पर रोक की केंद्र की नीति पर अदालत ने सवाल उठाया
punjabkesari.in Wednesday, Dec 07, 2022 - 07:21 PM (IST)
नयी दिल्ली, सात दिसंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को केंद्र से यह स्पष्ट करने को कहा कि सेना की कानूनी शाखा जज एडवोकेट जनरल (जेएजी)विभाग में आवेदन के लिये विवाहित पुरुषों और महिलाओं के नाम पर विचार क्यों नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि विवाहित लागों को इसके लिये आवेदन से ''रोकने का कोई तुक नहीं'' है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि जेएजी विभाग में प्रवेश के लिए भारतीय सेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन के लिए चयनित उम्मीदवारों के विवाह और प्रशिक्षण के बीच कोई संबंध नहीं है। न्यायालय ने इसके साथ ही केंद्र से नीति की व्याख्या करते हुए एक हलफनामा दायर करने को कहा।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा एवं न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें जेएजी विभाग में विवाहितों पर रोक संबंधी व्यवस्था को चुनौती दी गयी है ।
न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा, ‘‘विवाह और योग्यता का क्या तर्क है। हलफनामे में यह दें कि हथियार चलाने का प्रशिक्षण लेने वाला व्यक्ति विवाहित नहीं हो सकता। इस नीति को रिकॉर्ड में लाएं क्योंकि विवाह और प्रशिक्षण में कोई संबंध नहीं है।''''
जज एडवोकेट जनरल का पद एक मेजर जनरल के पास होता है जो सेना का कानूनी और न्यायिक प्रमुख होता है। जेएजी की एक अलग शाखा जज एडवोकेट जनरल को सहायता प्रदान करती है जिसमें विधि के जानकार सेना अधिकारी शामिल होते हैं।
अदालत में केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने जोर देकर कहा कि विवाह और प्रशिक्षण का एक संबंध है क्योंकि चयनित उम्मीदवारों को कठोर प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है, तो पीठ ने उनसे स्थिति स्पष्ट करते हुए एक हलफनामा दायर करने के लिये कहा।
अदालत ने कहा, ‘‘इसका कोई तुक नहीं है। सवाल यह है कि अगर कोई व्यक्ति विवाहित है, और सैन्य प्रशिक्षण लेता है, तो यह उसके प्रशिक्षण को कैसे प्रभावित करेगा ।
अदालत ने कहा कि ऐसी नीति को परखने की जरूरत है ।
पीठ ने सरकार से यह भी बताने को कहा कि क्या विवाहित और अविवाहित व्यक्तियों के प्रवेश से संबंधित उसकी नीति एक समान है या यह हर पाठ्यक्रम में अलग-अलग है।
अदालत ने आश्चर्य जताया, ‘‘हो सकता है उस समय आपका जीवनसाथी आपके साथ न हो लेकिन आपकी शादी कैसे आड़े आती है।’’
दूसरी तरफ, शर्मा ने यह भी स्पष्ट किया कि विवाह पर रोक केवल 11 महीने की प्रशिक्षण अवधि में प्रवेश के लिए है।
न्यायालय ने सरकार को हलफनामा दायर करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया और मामले को 22 मार्च, 2023 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि जेएजी विभाग में प्रवेश के लिए भारतीय सेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन के लिए चयनित उम्मीदवारों के विवाह और प्रशिक्षण के बीच कोई संबंध नहीं है। न्यायालय ने इसके साथ ही केंद्र से नीति की व्याख्या करते हुए एक हलफनामा दायर करने को कहा।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा एवं न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें जेएजी विभाग में विवाहितों पर रोक संबंधी व्यवस्था को चुनौती दी गयी है ।
न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा, ‘‘विवाह और योग्यता का क्या तर्क है। हलफनामे में यह दें कि हथियार चलाने का प्रशिक्षण लेने वाला व्यक्ति विवाहित नहीं हो सकता। इस नीति को रिकॉर्ड में लाएं क्योंकि विवाह और प्रशिक्षण में कोई संबंध नहीं है।''''
जज एडवोकेट जनरल का पद एक मेजर जनरल के पास होता है जो सेना का कानूनी और न्यायिक प्रमुख होता है। जेएजी की एक अलग शाखा जज एडवोकेट जनरल को सहायता प्रदान करती है जिसमें विधि के जानकार सेना अधिकारी शामिल होते हैं।
अदालत में केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने जोर देकर कहा कि विवाह और प्रशिक्षण का एक संबंध है क्योंकि चयनित उम्मीदवारों को कठोर प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है, तो पीठ ने उनसे स्थिति स्पष्ट करते हुए एक हलफनामा दायर करने के लिये कहा।
अदालत ने कहा, ‘‘इसका कोई तुक नहीं है। सवाल यह है कि अगर कोई व्यक्ति विवाहित है, और सैन्य प्रशिक्षण लेता है, तो यह उसके प्रशिक्षण को कैसे प्रभावित करेगा ।
अदालत ने कहा कि ऐसी नीति को परखने की जरूरत है ।
पीठ ने सरकार से यह भी बताने को कहा कि क्या विवाहित और अविवाहित व्यक्तियों के प्रवेश से संबंधित उसकी नीति एक समान है या यह हर पाठ्यक्रम में अलग-अलग है।
अदालत ने आश्चर्य जताया, ‘‘हो सकता है उस समय आपका जीवनसाथी आपके साथ न हो लेकिन आपकी शादी कैसे आड़े आती है।’’
दूसरी तरफ, शर्मा ने यह भी स्पष्ट किया कि विवाह पर रोक केवल 11 महीने की प्रशिक्षण अवधि में प्रवेश के लिए है।
न्यायालय ने सरकार को हलफनामा दायर करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया और मामले को 22 मार्च, 2023 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
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