कंपनी कर्जदारों की श्रेणी में आने पर दोनों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जा सकती है: न्यायालय

Thursday, Sep 22, 2022 - 09:23 PM (IST)

नयी दिल्ली, 22 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि अगर दो इकाइयां कंपनी कर्जदारों की श्रेणी में आती हैं, उन दोनों के खिलाफ आईबीसी के तहत ऋण शोधन कार्रवाई शुरू की जा सकती है।
ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला संहिता (आईबीसी) की धारा सात वित्तीय कर्जदारों के खिलाफ ऋण शोधन कार्रवाई शुरू करने से संबंधित है।

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि एक कर्जदार के संदर्भ में अगर ऋण शोधन कार्रवाई शुरू करने की मंजूरी है तो इससे उसके साथ मिलकर कर्ज लेने वाली इकाई बरी नहीं हो सकती।

न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी और न्यायाधीश जे के माहेश्वरी की पीठ ने पिछले साल अगस्त में राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर अपने आदेश में यह कहा। अपीलीय न्यायाधिकरण ने राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के एक आदेश के खिलाफ अपील खारिज कर दी थी।

शीर्ष अदालत ने अपीलीय न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ दायर अपील को खारिज करते हुए कहा कि वित्तीय कर्जदाता ने गिरवी समझौतों के आधार पर कंपनियों में से एक को छह करोड़ रुपये का ऋण दिया था। इस समझौते में दोनों कंपनियां शामिल थीं।
न्यायालय ने पिछले निर्णय का जिक्र करते हुए कहा कि एक कंपनी कर्जदार के मामले में समाधान योजना की मंजूरी से उसके ‘गारंटर’ मुक्त नहीं हो जाते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘अगर दो कर्जदार हैं या दो कंपनियां कर्जदार की श्रेणी में आती हैं, इसका का कोई कारण नहीं है कि आईबीसी की धारा सात के तहत दोनों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की जा सकती है।’’
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि दोनों कंपनी कर्जदारों से एक ही राशि नहीं वसूली जा सकती।

अपील खारिज करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘अगर बकाया का कुछ हिस्सा एक से प्राप्त किया जाता है, शेष राशि दूसरे कर्जदार से बतौर सह-कर्जदार लिया जा सकता है। हालांकि, अगर वित्तीय कर्जदाता के दावे का निपटान हो जाता है, दो बार दावा राशि की वसूली का कोई सवाल नहीं है।’’
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि वित्तीय कर्जदाता ने आईबीसी की धारा सात के तहत दोनों कंपनियों के खिलाफ सीआईआरपी शुरू करने को लेकर अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं और एनसीएलटी ने उसे स्वीकार किया है।



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PTI News Agency

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