आपराधिक मामलों में दोषसिद्धि के बाद सांसदों पर आजीवन प्रतिबंध संबंधी पीआईएल पर सुनवाई करेगा न्यायालय

punjabkesari.in Wednesday, Aug 10, 2022 - 10:09 PM (IST)

नयी दिल्ली, 10 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय उस जनहित याचिका पर विचार करने के लिए बुधवार को सहमत हो गया, जिसमें आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद निर्वाचित प्रतिनिधि को चुनाव लड़ने के लिए आजीवन अयोग्य ठहराये जाने की मांग की गई है।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने इस दलील पर गौर किया कि सरकारी सेवाओं में कार्यरत अन्य नागरिकों के आपराधिक मामलों में दोषी ठहराये जाने की तुलना में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद सांसदों को अयोग्य ठहराए जाने से संबंधित कानून में ‘स्पष्ट असमानता’ है।
याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश हो रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा, ‘‘(दोनों मामलों में) स्पष्ट असमानता है। कृपया इसकी समीक्षा करें कि एक कांस्टेबल (आपराधिक मामले में) सजा के बाद अपनी नौकरी खो देता है, और वह उसे वापस नहीं पा सकता है, लेकिन दूसरी ओर, एक सांसद को जघन्य अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और वह छह साल (सजा काटने के बाद) के बाद वापस आता है तो फिर से विधायक बन सकता है।’’
सीजेआई ने कहा, ‘‘अपनी ऊर्जा बर्बाद मत करो। हम इसे बाद में सुनेंगे …।”
पीठ उस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आपराधिक मामलों में दोषी ठहराये जाने पर राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के अलावा, देश में आरोपी सांसदों के मामले की शीघ्र सुनवाई करने और इस उद्देश्य के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने जैसी राहत मांगी गई है।

याचिका में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(1) की वैधता को भी चुनौती दी गई है, जिसमें यह प्रावधान है कि कोई सांसद एक आपराधिक मामले में सजा काटने के छह साल बाद विधायिका में वापस आ सकता है।

न्याय मित्र के रूप में पीठ की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने भी सिंह की इस दलील का समर्थन करते हुए कहा कि मुख्य याचिका पर सुनवाई की जरूरत है, क्योंकि आक्षेपित प्रावधान ‘‘स्पष्ट तौर पर मनमाना’’ है।

शीर्ष अदालत अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर समय-समय पर कई निर्देश पारित करती रही है, ताकि सांसदों के खिलाफ मामलों की त्वरित सुनवाई और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और अन्य एजेंसियों द्वारा त्वरित जांच सुनिश्चित की जा सके।

इस साल की शुरुआत में, न्याय मित्र हंसारिया ने पीठ से आग्रह किया था कि जनहित याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने की आवश्यकता है, क्योंकि राजनेताओं के मामलों पर त्वरित सुनवाई को लेकर शीर्ष अदालत के विभिन्न निर्देशों के बावजूद, पिछले पांच वर्षों से लगभग 2000 मामले लंबित हैं।



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