आईसीएआर ने मवेशियों में ढेलेदार त्वचा रोग के उपचार के लिए टीका विकसित किया

punjabkesari.in Wednesday, Aug 10, 2022 - 09:12 PM (IST)

नयी दिल्ली, 10 अगस्त (भाषा) कई राज्यों में मवेशियों में ढेलेदार त्वचा रोग तेजी से फैल रहा है। कई माह से यह सिलसिला जारी है। ऐसे में अब इसके उपचार की दिशा में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। आईसीएआर के दो संस्थानों ने मवेशियों के इस रोग के उपचार के लिए एक स्वदेशी टीका विकसित किया है।
केंद्र ने आईसीएआर के दो संस्थानों द्वारा विकसित इस टीके के वाणिज्यिकरण की योजना बनाई है, ताकि गांठदार त्वचा रोग (एलएसडी) को नियंत्रित किया जा सके। इससे छह राज्यों में कई मवेशियों की मौत हो गई है।
आठ अगस्त तक, राजस्थान में 2,111 मवेशियों की मौत हुई है, इसके बाद गुजरात में 1,679, पंजाब में 672, हिमाचल प्रदेश में 38, अंडमान और निकोबार में 29 और उत्तराखंड में 26 मवेशियों की इस रोग से मौत हुई हैं।
आईसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वाइन (आईसीएआर-एनआरसीई), हिसार (हरियाणा) ने आईसीएआर-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), इज्जतनगर, उत्तर प्रदेश के सहयोग से एक सजातीय जीवित-क्षीण एलएसडी वैक्सीन या टीका ‘‘लुंपी-प्रोवैकइंड’’ विकसित है।
नई तकनीक को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित एक कार्यक्रम में जारी किया।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए तोमर ने कहा, ‘‘जानवरों को बचाना हमारी बड़ी जिम्मेदारी है।’’
उन्होंने इस टीके की उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया ताकि यह जल्द से जल्द जमीनी स्तर तक पहुंचे और 30 करोड़ पशुओं का टीकाकरण किया जा सके।
इस दौरान, रूपाला ने इस स्वदेशी टीके के विकास के लिए आईसीएआर के वैज्ञानिकों की सराहना की। उन्होंने कहा कि इससे एलएसडी को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
उन्होंने कहा, ‘‘वैज्ञानिक इस टीके को विकसित करने का प्रयास कर रहे थे क्योंकि एलएसडी रोग पहली बार 2019 में ओडिशा में सामने आया था। आज, तकनीक शुरू हो गई है और अब हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे कि यह टीका उन किसानों तक कैसे पहुंचे जिनके पास मवेशी हैं।’’ रूपाला ने कहा कि यह एक बहुत ही ‘‘उत्साहजनक’’ घटनाक्रम है क्योंकि एलएसडी का प्रसार एक गंभीर मुद्दा बन गया है।
उन्होंने कहा कि टीकों के व्यावसायीकरण के लिए एक निर्धारित तौर-तरीका है और पशुपालन विभाग यह देखेगा कि इस प्रक्रिया को कैसे तेज किया जा सकता है।
रूपाला ने कहा, ‘‘हमें इस घातक बीमारी का समाधान मिल गया है।’’ मंत्री ने कहा कि फिलहाल राज्य इस समय इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए ‘गोट पॉक्स’ का उपयोग कर रहे हैं, जो प्रभावी भी है।
रूपाला ने कहा कि राजस्थान में मवेशियों के मृत्यु दर में कमी आई है।
आईसीएआर के उप महानिदेशक (पशु विज्ञान) बी एन त्रिपाठी ने कहा कि दोनों संस्थान प्रति माह इस दवा की 2.5 लाख खुराक का उत्पादन कर सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘प्रति खुराक की लागत 1-2 रुपये है।’’ उन्होंने कहा कि सजातीय जीवित एलएसडी टीकों से प्रेरित प्रतिरक्षा क्षमता आमतौर पर एक वर्ष की न्यूनतम अवधि के लिए बनी रहती है।
भारत में पहली बार 2019 में ओडिशा से एलएसडी रोग की सूचना मिली थी।
प्रारंभिक वर्षों में, यह मुख्य रूप से देश के पूर्वी भाग तक ही सीमित था। हालांकि, बाद में यह और राज्यों में भी तेजी से फैला।


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