ट्रांसजेंडर के खिलाफ अपराधों के लिए कठोर सजा की मांग वाली जनहित याचिका पर केंद्र से जवाब तलब
punjabkesari.in Friday, Jan 21, 2022 - 09:12 PM (IST)

नयी दिल्ली, 21 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया, जिसमें ट्रांसजेंडर से संबंधित कानून के एक प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है और उनके खिलाफ अपराधों के लिए कड़ी सजा देने का निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता के वकील की संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा, ‘‘(सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को) नोटिस जारी किया जाता है। इसे अन्य (लंबित) याचिकाओं के साथ संलग्न करें।’’
शीर्ष अदालत चंडीगढ़ की सामाजिक कार्यकर्ता काजल मंगल मुखी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
जनहित याचिका में ‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019’ की धारा 18 का हवाला देते हुए कहा गया है कि यह ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ अपराधों के लिए कम सजा प्रदान करती है।
याचिका में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों के वर्गीकरण की मांग की गयी है और भारतीय दंड संहिता, बंधुआ मजदूर (प्रथा उन्मूलन) अधिनियम और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सजा निर्धारित कररने की मांग की गयी है।
ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ गंभीर अपराधों के लिए सजा का प्रावधान सामान्य व्यक्तियों के खिलाफ उसी अपराध को लेकर आईपीसी में निर्धारित सजा की तुलना में कम गम्भीर है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
याचिकाकर्ता के वकील की संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा, ‘‘(सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को) नोटिस जारी किया जाता है। इसे अन्य (लंबित) याचिकाओं के साथ संलग्न करें।’’
शीर्ष अदालत चंडीगढ़ की सामाजिक कार्यकर्ता काजल मंगल मुखी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
जनहित याचिका में ‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019’ की धारा 18 का हवाला देते हुए कहा गया है कि यह ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ अपराधों के लिए कम सजा प्रदान करती है।
याचिका में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों के वर्गीकरण की मांग की गयी है और भारतीय दंड संहिता, बंधुआ मजदूर (प्रथा उन्मूलन) अधिनियम और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सजा निर्धारित कररने की मांग की गयी है।
ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ गंभीर अपराधों के लिए सजा का प्रावधान सामान्य व्यक्तियों के खिलाफ उसी अपराध को लेकर आईपीसी में निर्धारित सजा की तुलना में कम गम्भीर है।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
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