दिल्ली : छह घंटे की चुनौतीपूर्ण सर्जरी कर चिकित्सकों ने बालक को दिया नया जीवन
punjabkesari.in Monday, Jul 05, 2021 - 08:11 PM (IST)
नयी दिल्ली, पांच जुलाई (भाषा) दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल के चिकित्सकों ने रीढ की हड्डी की एक चुनौतीपूर्ण सर्जरी कर 12 साल के लड़के को नया जीवन दिया है। जन्म से ही रीढ की हड्डी संबंधी गंभीर और दुर्लभ बीमारी से पीड़ित बच्चे का यदि ऑपरेशन नहीं किया जाता तो उसकी जान जा सकती थी। अस्पताल के अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी दी।
चिकित्सकों के मुताबिक बाल रोग विभाग का मामला होने के कारण छह घंटे तक चला ऑपरेशन बेहद जटिल था, क्योंकि इसमें मैलाइनेंट हाइपरथर्मिया (बेहोश करने के लिए इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाओं का प्रतिकूल प्रभाव) बढ़ने के खतरे के अलावा, सर्जरी के दौरान अधिक रक्त बहने और उसके बाद गहन चिकित्सा देखभाल की जरुरत पड़ती है।
मैलाइनेंट हाइपरथर्मिया भारत में बेहद दुर्लभ बीमारी है और एक लाख लोगों में से केवल एक व्यक्ति को ही यह बीमारी होने की आशंका होती है। इसके कारण सर्जरी के दौरान मांसपेशियों की कठोरता और पाचन संबंधी समस्या बढ़ने का खतरा पैदा हो जाता है।
यहां इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर (आईएसआईसी) के चिकित्सकों ने इस ऑपरेशन में रीढ़ की बाईं ओर 140 डिग्री के स्कोलियोटिक वक्र को ठीक किया है। यह ऑपरेशन इस वर्ष मार्च में किया गया। उसके बाद बच्चे को निगरानी में रखा गया था।
बच्चे का ऑपरेशन करने वाली टीम में शामिल चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक आपातकालीन स्थिति में मैलाइनेंट हाइपरथर्मिया को स्थिर रखने के लिए डेंट्रोलीन नामक जिस दवा की जरुरत होती है वह आसानी से भारत में उपलब्ध नहीं है। इससे पहले 2015 में एक अन्य अस्पताल में एक बालक के इसी तरह के ऑपरेशन को टालना पड़ा था, क्योंकि उसके शरीर का तापमान 108 डिग्री फॉरेनहाइट तक बढ़ गया था। बालक को 13 दिनों तक गहन चिकित्सा सुविधा केन्द्र में रखने के बाद बचाया गया था।
बालक को पहले जनवरी में आईएसआईसी में लाया गया था, लेकिन डेंट्रोलीन दवा आने का इंतजार किया गया। इस दवा को जर्मनी से मंगवाया जाता है।
आईएसआईसी में स्पाइन सर्जन डॉ रजत महाजन ने कहा, ‘‘ आपातकालीन स्थिति में डेंट्रोलीन दवा के इस्तेमाल से मृत्यु दर की आशंका को कम कर दो प्रतिशत तक लाया जा सकता है।’’
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
चिकित्सकों के मुताबिक बाल रोग विभाग का मामला होने के कारण छह घंटे तक चला ऑपरेशन बेहद जटिल था, क्योंकि इसमें मैलाइनेंट हाइपरथर्मिया (बेहोश करने के लिए इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाओं का प्रतिकूल प्रभाव) बढ़ने के खतरे के अलावा, सर्जरी के दौरान अधिक रक्त बहने और उसके बाद गहन चिकित्सा देखभाल की जरुरत पड़ती है।
मैलाइनेंट हाइपरथर्मिया भारत में बेहद दुर्लभ बीमारी है और एक लाख लोगों में से केवल एक व्यक्ति को ही यह बीमारी होने की आशंका होती है। इसके कारण सर्जरी के दौरान मांसपेशियों की कठोरता और पाचन संबंधी समस्या बढ़ने का खतरा पैदा हो जाता है।
यहां इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर (आईएसआईसी) के चिकित्सकों ने इस ऑपरेशन में रीढ़ की बाईं ओर 140 डिग्री के स्कोलियोटिक वक्र को ठीक किया है। यह ऑपरेशन इस वर्ष मार्च में किया गया। उसके बाद बच्चे को निगरानी में रखा गया था।
बच्चे का ऑपरेशन करने वाली टीम में शामिल चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक आपातकालीन स्थिति में मैलाइनेंट हाइपरथर्मिया को स्थिर रखने के लिए डेंट्रोलीन नामक जिस दवा की जरुरत होती है वह आसानी से भारत में उपलब्ध नहीं है। इससे पहले 2015 में एक अन्य अस्पताल में एक बालक के इसी तरह के ऑपरेशन को टालना पड़ा था, क्योंकि उसके शरीर का तापमान 108 डिग्री फॉरेनहाइट तक बढ़ गया था। बालक को 13 दिनों तक गहन चिकित्सा सुविधा केन्द्र में रखने के बाद बचाया गया था।
बालक को पहले जनवरी में आईएसआईसी में लाया गया था, लेकिन डेंट्रोलीन दवा आने का इंतजार किया गया। इस दवा को जर्मनी से मंगवाया जाता है।
आईएसआईसी में स्पाइन सर्जन डॉ रजत महाजन ने कहा, ‘‘ आपातकालीन स्थिति में डेंट्रोलीन दवा के इस्तेमाल से मृत्यु दर की आशंका को कम कर दो प्रतिशत तक लाया जा सकता है।’’
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