निधन से कुछ दिनों पहले प्रणब मुखर्जी ने लेख में शेख मुजीबुर रहमान को याद किया

Sunday, Oct 18, 2020 - 09:00 PM (IST)

नयी दिल्ली, 18 अक्टूबर (भाषा) पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने निधन से कुछ दिनों पहले एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान को याद किया। इसमें उन्होंने बताया था कि किस तरह से 1972 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने मुजीबुर रहमान पर दबाव बनाया था कि वह संयुक्त बयान जारी कर बताएं कि पाकिस्तान का विभाजन नहीं हुआ है।

मुखर्जी का लेख ‘वॉयस ऑफ मिलियंस’ पुस्तक में प्रकाशित हुआ है। किताब को शेख मुजीबुर रहमान की जन्मशती पर प्रकाशित किया गया है। इसमें मुखर्जी ने याद किया है कि किस तरह से राज्यसभा का युवा सदस्य होने के नाते उन्होंने बांग्लादेश की तत्कालीन निर्वासित सरकार को मान्यता देने की अपील की थी।


पूर्व राष्ट्रपति ने शेख मुजीबुर रहमान की पुस्तक ‘अनफिनिश्ड मेम्वायर्स’ का जिक्र कर बताया कि कैसे बांग्लादेश के नेता को अपने देश की आजादी के बारे में भी पता नहीं था और उस वक्त वह रावलपिंडी के नजदीक मियांवाली जेल में बंद थे। उनके निधन के 29 साल बाद उनकी बेटी ने यह पुस्तक प्रकाशित कराई थी।


इसके बाद जब भुट्टो उन्हें नहीं मना सके तो आठ जनवरी 1972 की रात को उन्हें विशेष विमान से लंदन ले जाया गया।


मुखर्जी ने लिखा, ‘‘भुट्टो ने मुजीब को सूचित किया कि वह राष्ट्रपति हैं और उन्हें मुजीब की सहायता की जरूरत है। एक और आठ जनवरी के बीच भुट्टो ने उनसे कई बार बात की और मुजीब पर संयुक्त बयान पर दस्तखत करने का दबाव बनाया।’’

उन्होंने उनके किताब के हवाले से बताया, ‘‘बहरहाल, जुल्फिकार अली भुट्टो ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच संबंध स्थापित करने के लिए कई बार अपील की। ऐसा संबंध कि पाकिस्तान अविभाजित रहे।’’

उन्होंने लिखा, ‘‘मुजीब ने भुट्टो से सिर्फ इतना ही कहा कि वह अपने देश के लोगों से बात किए बगैर उन्हें कुछ भी नहीं बता सकते हैं।’’

दिवंगत राष्ट्रपति ने लिखा है, ‘‘अंत में निराश भुट्टो ने निर्णय किया कि मुजीब को ब्रिटेन भेज दिया जाए। आठ जनवरी 1972 की मध्य रात्रि को पाक एयरलायंस का विशेष विमान मुजीब को लेकर लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर पहुंचा। जब वह हीथ्रो पहुंचे तो स्थानीय समय के अनुसार सुबह के साढ़े छह बज रहे थे।’’

मुखर्जी ने अपने लेख में यह भी याद किया कि कैसे उनके दिमाग में 1971 की घटनाएं चल रही थीं। वह तब 36 वर्ष के थे और सांसद थे, जब बांग्लादेश के लोग अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे थे।



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PTI News Agency

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