न्यायालय ने जिला न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न आरोपों की जांच पर लगाई रोक

punjabkesari.in Friday, Sep 04, 2020 - 04:53 PM (IST)

नयी दिल्ली, चार सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक महिला न्यायिक अधिकारी द्वारा जिला न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये जाने के मामले में अनुशासनात्मक जांच पर शुक्रवार को रोक लगा दी और मप्र उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल से इस याचिका जवाब मांगा।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने जिला न्यायाधीश की याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि जब कोई उच्च न्यायालय में न्यायाधीश पद पर पदोन्नति के लिये ‘विचार के दायरे ’में आता है तो ऐसा होना ‘अब एक चलन ’ बन गया है’ ।

शीर्ष अदालत ने इस जिला न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले की जांच करने के आदेश् पर रोक लगा दी थी। इस न्यायाधीश का नाम उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर पदोन्नति के लिये विचार के दायरे में था
मप्र उच्च न्यायालय ने 14 अगस्त को जिला न्यायाधीश की याचिका खारिज करते हुये लैंगिक संवेदनशीलता आंतरिक शिकायत समिति को उनके खिलाफ अनुशासनात्मक जांच जारी रखने का आदेश दिया था।

अधीनस्थ न्यायिक सेवा की महिला न्यायिक अधिकारी ने सात मार्च 2018 को जिला न्यायाधीश के खिलाफ कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था।

पीठ ने जिला न्यायाधीश की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर बालासुब्रमणियन और अधिवक्ता सचिन शर्मा की इस दलीलों का संज्ञान लिया और उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल ओर उसकी आंतकरिक शिकायत समिति को नोटिस जारी किये।
जिला न्यायाधीश ने अपनी याचिका में कहा है कि उच्च न्यायालय ने आंतरिक शिकायत समिति की 30 अप्रैल, 2019 की अंतिम रिपोर्ट में तथ्यों और कानून के हिसाब से कोई अवैधता नहीं पायी। इस समिति को जिला न्यायाधीश के खिलाफ कार्यवाही के लिये कोई साक्ष्य नहीं मिला था और 23 अप्रैल के प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से इस निष्कर्ष को दर्ज किया था।

याचिका के अनुसार, ‘‘ इस मामले में ‘कोई साक्ष्य’ या ‘सामग्री’ नहीं मिलने के स्पष्ट निर्देश के बावजूद आंतरिक शिकायत समिति ने याचिकाकर्ता के खिलाफ अनुशासनाात्मक कार्रवाई करने के साथ ही शिकायतकर्ता के खिलाफ भी कर्यस्थल पर महिलाओं के उत्पीड़न कानून के तहत कार्रवाई की सिफारिश की।

याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता का 32 साल लंबा न्यायिक सेवा का कार्यकाल बेदाग रहा है और वह 2020 में सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

याचिका के अनुसार उसके खिलाफ जांच करना और उसकी जानकारी के बगैर ही बयान दज करने की उच्च न्यायालय और उसकी समिति की कार्रवाई मनमानी, दुर्भावनापूर्ण और कानून तथा नैसर्गिक सिद्धांत के खिलाफ है।

याचिका के अनुसार ये सब ऐसे समय में किया गया है जब याचिकाकर्ता पदोन्नति के लिये विचारार्थ दायरे में है।

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने आंतरिक शिकायत समिति द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस निरस्त करने के लिये जिला न्यायाधीश की याचिका खारिज कर दी थी।



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PTI News Agency

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