कुछ वामन आकाशगंगाएं मिल्की वे की तुलना में 100 गुणा अधिक तेजी से नये तारे बनाती हैं: अध्ययन
punjabkesari.in Monday, Aug 24, 2020 - 09:05 PM (IST)

नयी दिल्ली, 24 अगस्त (भाषा) आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एआरआईईएस) के वैज्ञानिकों का मानना है कि कुछ वामन आकाशगंगाएं मिल्की वे आकाशगंगा की तुलना में 10-100 गुणा अधिक रफ्तार से नये तारों का निर्माण करती हैं।
ब्रह्मांड की अरबों आकाशगंगाओं में बड़ी संख्या में ऐसी छोटी-छोटी आकाशगंगाएं हैं, जिनका द्रव्यमान मिल्की वे आकाशगंगा की तुलना 100 गुणा कम है।
एआरआईईएस के अध्ययन में कहा गया है, ‘‘ इनमें से ज्यादातर आकाशगंगाएं वामन आकाशगंगा कहलाती हैं और वे विशाल आकाशगंगाओं की तुलना में बहुत कम रफ्तार से तारों का निर्माण करती हैं लेकिन कुछ वामन आकाशगंगाएं ऐसी भी हैं जो मिल्की वे आकाशगंगा की तुलना में 10 से 100 गुणा अधिक द्रव्यममान सामान्यीकृत दर से नये तारों का निर्माण करती हुई नजर आती हैं।’’
अध्ययन के अनुसार वैसे ये गतिविधियां कुछ दस लाख साल से अधिक समय तक नहीं चलती हैं । यह अवधि इन आकाशगंगाओं की उम्र से काफी कम है, क्योंकि उनकी उम्र कुछ अरब साल है।
दो भारतीय दूरबीनों का उपयोग कर इन आकाशगंगाओं का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने पाया कि इन आकाशगंगाओं के इस विचित्र आचरण की वजह उनमें अव्यवस्थित हाइड्रोजन वितरण और हाल ही में दो आकाशगंगाओं के बीच की टक्कर है।
यह अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों में से एक अमितेश उमर ने कहा कि हाइड्रोजन किसी भी तारे के निर्माण के लिए जरूरी तत्व है तथा उच्चदर पर तारों के निर्माण के लिए आकाशगंगाओं में हाइड्रोजन के उच्च घनत्व की जररूत होती है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत आने वाले संस्थान एआरआईईएस के उमर और उनके पूर्व विद्यार्थी सुमित जायसवाल ने नैनीताल के समीप 1.3 मीटर के देवस्थल फास्ट ऑप्टिकल टेलीस्कोप और जाइंट मेट्रेवेव रेडियो टेलीस्कोप की मदद से इन आकाशगंगाओं का अध्ययन किया।
इस अध्ययन के निष्कर्ष ब्रिटेन की रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी की पत्रिका मंथली नोटिस ऑफ रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के अगले अंक में प्रकाशित होंगे और उनके साथ 13 आकाशगंगाओं की विस्तृत तस्वीरें भी होंगी।
यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।
ब्रह्मांड की अरबों आकाशगंगाओं में बड़ी संख्या में ऐसी छोटी-छोटी आकाशगंगाएं हैं, जिनका द्रव्यमान मिल्की वे आकाशगंगा की तुलना 100 गुणा कम है।
एआरआईईएस के अध्ययन में कहा गया है, ‘‘ इनमें से ज्यादातर आकाशगंगाएं वामन आकाशगंगा कहलाती हैं और वे विशाल आकाशगंगाओं की तुलना में बहुत कम रफ्तार से तारों का निर्माण करती हैं लेकिन कुछ वामन आकाशगंगाएं ऐसी भी हैं जो मिल्की वे आकाशगंगा की तुलना में 10 से 100 गुणा अधिक द्रव्यममान सामान्यीकृत दर से नये तारों का निर्माण करती हुई नजर आती हैं।’’
अध्ययन के अनुसार वैसे ये गतिविधियां कुछ दस लाख साल से अधिक समय तक नहीं चलती हैं । यह अवधि इन आकाशगंगाओं की उम्र से काफी कम है, क्योंकि उनकी उम्र कुछ अरब साल है।
दो भारतीय दूरबीनों का उपयोग कर इन आकाशगंगाओं का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने पाया कि इन आकाशगंगाओं के इस विचित्र आचरण की वजह उनमें अव्यवस्थित हाइड्रोजन वितरण और हाल ही में दो आकाशगंगाओं के बीच की टक्कर है।
यह अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों में से एक अमितेश उमर ने कहा कि हाइड्रोजन किसी भी तारे के निर्माण के लिए जरूरी तत्व है तथा उच्चदर पर तारों के निर्माण के लिए आकाशगंगाओं में हाइड्रोजन के उच्च घनत्व की जररूत होती है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत आने वाले संस्थान एआरआईईएस के उमर और उनके पूर्व विद्यार्थी सुमित जायसवाल ने नैनीताल के समीप 1.3 मीटर के देवस्थल फास्ट ऑप्टिकल टेलीस्कोप और जाइंट मेट्रेवेव रेडियो टेलीस्कोप की मदद से इन आकाशगंगाओं का अध्ययन किया।
इस अध्ययन के निष्कर्ष ब्रिटेन की रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी की पत्रिका मंथली नोटिस ऑफ रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के अगले अंक में प्रकाशित होंगे और उनके साथ 13 आकाशगंगाओं की विस्तृत तस्वीरें भी होंगी।
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