संघर्षों से भरी है भारत की अंडर-17 विश्व कप टीम के खिलाडिय़ों की कहानी

Friday, Sep 22, 2017 - 07:08 PM (IST)

नई दिल्ली: फीफा अंडर-17 विश्व कप के लिए भारतीय टीम में चुने गये खिलाडिय़ों की कहानी किसी संघर्ष से कम नहीं है। टीम में शामिल खिलाडिय़ों में कोई दर्जी का बेटा है, कोई बढ़ई का तो किसी की मां रेहड़-पटरी पर सामान बेचती है। टीम के 21 खिलाडिय़ों में से ज्यादातर ने अपने अभिभावकों को संघर्ष करते देखा है, लेकिन इसके बावजूद भी वे इस खेल में देश का प्रतिनिधित्व करने के अपने सपने को पूरा करने के करीब हैं। सिक्किम के 17 वर्षीय कोमल थाटल के पास फुटबाल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे और वह प्लास्टिक से बनी गेंद से खेलते थे। थाटल ने गोवा के प्रशिक्षण शिविर ने बताया, ‘‘मेरे अभिभावक दर्जी है और मेरे पैतृक गांव में उनकी छोटी सी दुकान है। बचपन में मैं कपड़े या प्लास्टिक से बनीं गेंद से फुटबाल खेलता था।’’

थाटल के पिता अरुण कुमार और मां सुमित्रा अपनी थोड़ी सी कमाई में से उनके लिये फुटबाल किट खरीदने के लिए पैसे जमा किए। उन्होंने कहा, ‘‘अपने अभिभावकों से फुटबॉल खरीदने के लिए कहना काफी मुश्किल था। लेकिन वे हमेशा मेरा साथ देते थे। मेरे फुटबॉल किट के लिए वे पैसे बचाते थे। इसमें मेरे कुछ दोस्तों ने भी मदद की।’’ थाटल 2011 में ‘नामची खेल अकादमी’ से जुड़े और उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर इसके मुख्य कोच ने 2014 में उन्हें एआईएफएफ के शिविर में गोवा भेजा जहां से उन्होंने विश्व कप टीम में जगह बनायी। पिछले साल ब्रिक्स कप में उन्होंने ब्राजील के खिलाफ गोल भी किया था जिसमें टीम को 1-3 से हार मिली थी।

संघर्ष की ऐसी ही कहानी अमरजीत सिंह कियाम की भी है जिनके अंडर-17 विश्व कप टीम का कप्तान बनाये जाने की उम्मीद है। अमरजीत के पिता मणिपुर के छोटे से शहर थाबल में खेती और बढ़ई का काम करते है। उनकी मां वहां से 25 किमी दूर इंफाल में मछली बेचती है। अमरजीत ने कहा, ‘‘मेरे पिता किसान है और खाली समय में खेती करते हैं। मां मछली बेचती है लेकिन खेल से मेरा ध्यान ना भटके इसलिये वे मुझे कभी भी काम में हाथ बटाने के लिये नहीं कहते थे।’’  अमरजीत ने कहा, ‘‘मेरे चंडीगढ़ फुटबाल अकादमी में आने के बाद माता पिता से बोझ थोड़ा कम हुआ क्योंकि वहां रहने, खाने और स्कूल का खर्च भी अकादमी ही वहन करती है।’’

टीम के एक अन्य सदस्य संजीव स्टालिन की मां फुटपाथ पर कपड़े बेचती है। स्टालिन कहा, ‘‘मेरे पिता हर दिन मजदूरी की तलाश में यहां-वहां भटकते रहते थे इसलिये मेरी मां रेहड़ी पटरी पर कपड़े बेचती थी ताकि घर का खर्च चल सके। बचपन में मुझे पता नहीं चलता था की मेरे जूते कहां से आ रहे हैं लेकिन अब मुझे पता है कि मेरे अभिभावकों को इसके लिये कितनी मेहनत करनी पड़ी।’’ खुमांथेम ङ्क्षनगथोइंगानबा की मां इंफाल में मछली बेचती है तो वहीं कोलकाता के जितेन्द्र सिंह के पिता चौकीदार है। इन सभी खिलाडिय़ों में जो बात समान है वह ये है कि ये सभी देश को विश्व कप का तोहफा देना चाहते है।
 

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