पढ़िए, हॉकी के 'जादूगर' मेजर ध्यानचंद की जिंदगी से जुड़े रोचक किस्से!

punjabkesari.in Saturday, Dec 03, 2016 - 05:49 PM (IST)

नई दिल्लीः हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद सिंह को कौन नहीं जानता है। उनका जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ था। वह भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाडी व कप्तान थे उन्हें भारत एवं विश्व हॉकी के क्षेत्र में सबसे बेहतरीन खिलाडियों में शुमार किया जाता है। वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे हैं। इनमे से 1928 का एम्सटर्डम ओलोम्पिक, 1932 का लॉस एंजेल्स ओलम्पिक और 1936 का बर्लिन ओलम्पिक शामिल है। 3 दिसंबर 1979 को जब उन्होंने दुनिया से विदा ली तो उनके पार्थिव शरीर पर दो हॉकी स्टिक क्रॉस बनाकर रखी गई। ध्यानचंद ने मैदान पर जो ‘जादू’ दिखाए, वे इतिहास में दर्ज है।

ध्यानचंद की जिंदगी के कुछ रोचक किस्से:-

1) 16 साल की उम्र में सेना में भर्ती
ध्यानचंद के पिता सेना में थे, जिस वजह से बार-बार ट्रांसफर के कारण वह छठी क्लास तक ही पढ़ पाए। वर्ष 1922 में वह 16 की उम्र में ही सेना में भर्ती हो गए। सेना में लोगों को खेलते देख उनके मन में भी खेलने की ख्वाहिश जगी। सुबेदार बाले तिवारी ने उन्हें खेल की बारीकियां सिखाईं और फिर एक दिन वह देश के बेस्ट हॉकी खिलाड़ी बन गए।

2) पहला विदेशी दौरा
वर्ष 1926 में सेना चाहती थी कि हॉकी टीम न्यूजीलैंड जाए, जिसके लिए खिलाड़ियों की तलाश शुरू हुई। इस दाैरान ध्यानचंद अपनी प्रैक्टिस में जुटे रहे और मन को समझाया कि अगर काबिल हूं, तो मौका मिल ही जाएगा। फिर एक दिन कमांडिग ऑफिसर ने बुलाया और कहा, ‘जवान, तुम हॉकी खेलने के लिए न्यूजीलैंड जा रहे हो।’ ध्यानचंद को खुशी इतनी थी कि मुंह से एक शब्द नहीं निकला। यह पहला मौका था जब भारत की हॉकी टीम विदेश दौरे पर गई। न्यूजीलैंड में टीम ने कुल 21 मैच खेले और 18 में जीत का परचम लहराया। भारत ने कुल 192 गोल दागे, जिनमें 100 गोल सिर्फ ध्यानचंद के थे।

3) 24 घंटे रुका जहाजों का ट्रैफिक
1928 में ओलपिंक में गोल्ड लेकर भारतीय हॉकी टीम बंबई लौटी। स्वागत में बंबई के डाकयार्ड पर जहाजों की आवाजाही 24 घंटे नहीं हो पाई थी। ध्यानचंद का तबादला 1928 में नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस वजीरिस्तान (अब पाकिस्तान) में कर दिया गया, जहां हाकी खेलना मुश्किल था। इस वजह से 1932 ओलंपिक में ध्यानचंद के सेलेक्शन को लेकर भी दिक्कतें आईं।

4) अब किसी से नहीं हारेंगे
न्यूजीलैंड काे हराकर हॉकी टीम के भारत लौटने पर जब कर्नल जॉर्ज ध्यानचंद से पूछते हैं कि भारत की टीम एक मैच क्यों हार गई तो ध्यानचंद का जबाब होता है कि उन्हें लगा कि उनके पीछे बाकी 10 खिलाड़ी भी हैं। अगला सवाल, तो आगे क्या होगा. जवाब आता है कि किसी से हारेंगे नहीं। इस प्रदर्शन और जवाब के बाद ध्यानचंद लांस नायक बना दिए गए।

5) उधार लेकर ओलंपिक पहुंची हॉकी टीम
साल 1928. एम्सटर्डम में ओलंपिक होना था। भारत की पहली राष्ट्रीय टीम चुनने के लिए देश की कई टीमों के मैच करवाए गए। ध्यानचंद संयुक्त प्रांत की ओर से खेले और चुने गए, परंतु हॉकी संघ सिर्फ इतने ही रुपए जुट पाए, जिससे 11 खिलाड़ी ही एम्सटर्डम जा सकते थे। बाकी 2 खिलाड़ियों को नहीं भेजा जा सकता था। तब उनकी मदद के लिए बंगाल हॉकी संघ आगे आया।

6) पहली बार कहा 'जादूगर' 
26 मई 1928 काे ध्यानचंद समेत कई खिलाड़ियों की तबीयत खराब थी। लेकिन उनके हौसलाें में किसी तरह की कमी नहीं थी। वाे टीम वर्ल्ड चैम्पियन बन चुकी थी, जाे उधार लेकर ओलंपिक खेलने आई थी। इसी ओलंपिक के बाद पहली बार ध्यानचंद के नाम के साथ ‘जादूगर’ शब्द जोड़ा गया। विदेशी अखबारों ने मैच में ‘जादू, जादूगर, जादू की छड़ी’ जैसे अल्फाज इस्तेमाल किए।

7) भाई संग ओलंपिक में जीता मैच
ध्यानचंद से प्रभावित होकर उनके भाई रूप सिंह भी हॉकी खेलने लगे और एक अच्छे खिलाड़ी बन गए। फिर वो मौका आया, जब दोनों भाई साथ में ओलंपिक खेले। 1932 का ओलंपिक लॉस एंजेल्स में होना था। टीम चुनी जानी थी। सेना की तरफ से ध्यानचंद और संयुक्त प्रांत की ओर से रूप सिंह भारतीय हॉकी टीम के लिए चुने गए। लेकिन इस बार भी रुपयों की दिक्कत हुई, ताे पंजाब नेशनल बैंक ने मदद की। हालांकि वह रकम भी जाने के लिए काफी न थी। फिर बंगाल हॉकी संघ ने मदद का हाथ बढ़ाया। इस ओलंपिक में भी ताबड़तोड़ गोल करते हुए अपनी टीम जीती। 14 अगस्त 1932 को अमरीका के साथ फाइनल मैच में टीम ने 1 के मुकाबले 24 गोल दागकर जीत हासिल की। इसके साथ ही भारत एक बार फिर विश्व विजेता बना।

8) विदेशी महिला ने कहा, मे आई किस यू?
जर्मनी ने इंडिया को मैसेज भिजवाया कि अगर आपकी टीम हमारे यहां आएगी तो खर्चा हम उठाएंगे। फिर इंडियन टीम ने वहां कई मैच खेले और आखिरी मैच में बर्लिन-11 को 4 गोलों से हराया। अब तक ताे विदेशी भी ध्यानचंद के दीवाने हो गए थे।चेकोस्लोवाकिया में ध्यानचंद के खेल से इम्प्रेस होकर एक युवती उनके पास अाकर बोली, ‘तुम किसी एजेंल की तरह लगते हो, क्या मैं तुम्हें किस कर सकती हूं?’ ये सुनते ध्यानचंद सकपका गए और बोले, ‘सॉरी मैं शादीशुदा हूं। मुझे माफ करें।’

9) सूरज की रोशनी से जली ओलंपिक मशाल
1936 के ओलंपिक जर्मनी में होने थे, जहां हिटलर का शासन था। टीम की पहली लिस्ट में ध्यानचंद का नाम ही नहीं था, जिस पर खूब बवाल हुआ। बाद में टीम की कप्तानी ध्यानचंद को मिली। हर तरफ हिटलर की जय जयकार थी। इस ओलंपिक के इंतजाम बेहद खर्चीले थे। ओलंपिक मशाल पहली बार सूरज की किरणों से जलाई गई। ये पहले ओलंपिक खेल थे, जिन्हें टीवी पर दिखाया गया। 

10) घायल होकर खेले ध्यानचंद
1936 ओलंपिक में भारत का मुकाबला हिटलर के देश की टीम जर्मनी से था। बारिश हाेने पर मैच 15 अगस्त तक के लिए टाल दिया गया। 15 अगस्त को मैच शुरू हुआ, ताे जर्मनी खिलाड़ियों ने आक्रामक रुख अपनाया। ध्यानचंद के दांत में चोट लगी, जिसके चलते उन्हें कुछ वक्त के लिए मैदान छोड़ना पड़ा। इसके बाद ध्यानचंद चोटिल हालत में ही मैदान में लौटे और साथियों को समझाया कि बदले के लिए नहीं, बढ़िया खेल खेलो। बस फिर क्या ध्यानचंद ने वापसी के साथ ताबड़तोड़ गोल दागने शुरू किए।

11) मैदान छोड़ भागा हिटलर
भारत और जर्मनी के बीच हुए फाइनल मुकाबवे के शुरूआती मिनटों में ही ध्यानचंद की टीम ने जर्मनी की ऐसी धुलाई की कि मैच देख रहा हिटलर स्टेडियम छोड़कर चला गया। भारत ने जर्मनी को 1 के मुकाबले 8 गोल से शिकस्त दी।

12) ध्यानचंद ने ठुकराया हिटलर का ऑफर
16 अगस्त को ओलंपिक समापन में हिटलर से ध्यानचंद का सामना होना था। भारतीय हॉकी टीम गोल्ड मेडल पहनने वाली थी। हिटलर जब ध्यानचंद से मिला तो उनसे इतना इम्प्रेस हुआ कि उन्हें अपनी सेना में जनरल पद का ऑफर दिया। लेकिन ध्यानचंद ने सहज भाव से ये ऑफर ठुकरा दिया। 


 


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