सत्य कहानी: शिष्य की मदद के लिए चिता से उठ गए गुरु और फिर...

Wednesday, May 25, 2016 - 10:30 AM (IST)

श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के प्रिय पार्षद श्रीवक्रेश्वर पंडित के शिष्य थे श्रीगोपाल गुरु गोस्वामी जी। आप श्री काशी मिश्र जी का निवास स्थान, जो गम्भीरा के नाम से प्रसिद्ध है, उसमें भगवान श्रीराधाकांत जी की सेवा करते थे। आपकी अपूर्व नाम-निष्ठा देखकर ही श्रीमहाप्रभु जी ने आपको ''गुरु'' की उपाधि से विभूषित किया था। आप की जब वृद्धावस्था आ गई तब श्रीमहाप्रभु जी ने स्वप्न में आकर, आपको श्रीराधाकांत जी की सेवा के लिए, श्रीध्यान चन्द्र गोस्वामी को नियुक्त करने का आदेश दिया। 

 
 
बहुत समय के बाद जब आपने शरीर छोड़ा, उस समय आपको श्मशान ले जाया गया। अभी सभी लोग वहां पहुंचे ही थे कि राधाकांत मठ पर राजकर्मचारियों ने कब्जा कर लिया। 
 
 
श्रीध्यानचंद्र जी को सेवा से वंचित होता जान श्रीगोपालगुरु जिवित हो चिता से उठकर पुनः मठ में चले आए। राजपुरुष इस अलौकिक घटना को पहले से ही जान गये थे और श्रीगोपाल-गुरु के आने से पहले ही श्रीराधा-कान्त जी का मंदिर खोल कर वहां से भाग गए और राजविधि के अनुसार मठ का सेवा-भार श्रीध्यानचन्द्र को अपने हाथों सौंप दिया, फिर शरीर त्यागा। 
 
 
मरणोपरान्त बहुत दिन पीछे पुरी से आए भक्तों ने वृन्दावन में वंशीवट पर आपको भजन करते हुए बैठे देखा। जब पुरी में श्रीध्यानचन्द्र जी को पता लगा तो वे दौड़े-दौड़े वृन्दावन आए और आपके चरणों में गिर पड़े। तब आपने अपनी दारुमूर्ति स्थापित करने का आदेश देकर उन्हें पुरी भेज दिया।
 
श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज 
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com
Advertising