सत्य कहानीयां: भगवान के भक्त करते हैं ऐसे चमत्कार, कोई नहीं जान सकता इसका राज

Saturday, Mar 05, 2016 - 12:40 PM (IST)

भारत के राज्य पंजाब के एक निवासी अपनी आप-बीती सुना रहे थे।
 
उन्होंने बताया, ''वैसे तो मैं वैष्णवों को मानता हूं किन्तु मुझे इस पर पूरा विश्वास नहीं होता था कि वैष्णव अद्भुत होते हैं, अप्राकृत होते हैं व बेिेमारी की लीला करते हैं।                                             
 
मैं अक्सर वृन्दावन जाता था। वहां के कई भक्तों व संतों से मेरा अच्छा परिचय था। इस बार कई महीनों बाद चक्कर लगा। वहां जाकर पता लगा की एक महाराज बीमार हैं। मेरा उनसे अच्छा परिचय था, तो सोचा कि आया हूं तो मिल लूं। व्यवहार निभाने के लिये मैं वहां चला गया।
 
महाराज जी अपने कमरे में एक चारपाई पर लेटे हुए थे। पास में ही सेवक बैठा था। मैंने महाराज को प्रणाम किया और उनके सेवक के पास जाकर बैठ गया व उनसे बात-चीत करने लगा। तभी मेरे देखते ही देखते महाराज जी ने बेहोशी में बिस्तर पर ही पेशाब कर दिया। सेवक तुरन्त उठा, उसने महाराज जी के वस्त्र बदले और उन्हें दूसरी चारपाई पर लिटा दिया।
 
फिर वो मेरे पास आकर बैठ गया। नम्रता से मैंने कहा, ''महाराज जी काफी तकलीफ में हैं।''
 
सेवक ने मेरी ओर देखा भी नहीं और एक जोर का चांटा मेरे मुख पर जड़ दिया। गुस्सा तो मुझे बहुत आया की मैंने ऐसा क्या कह दिया? जो देखा वही कहा। इससे पहले की मैं कुछ कहता, सेवक बोला, ''महाराजश्री बीमार नहीं हैं, वे तो दिव्य हैं । मुझ पर उनकी बड़ी कृपा है, मुझे सेवा का अवसर दे रहे हैं, ताकि मेरा कुछ भला हो।''
 
मैंने मन ही मन कहा, ''बहुत अच्छी भावना है इनकी परन्तु बीमार को बीमार ही तो बोलेंगे।''
 
सेवक के साथ मैं महाराज जी की महिमा की चर्चा कर ही रहा था कि मैंने देखा महाराज अचानक उठे, कुछ दूर चले और ''निताई-गौरांगौ'' - ''निताई-गौरांगौ'' ज़ोर ज़ोर से बोलते हुए उछल-उछ्ल कर नृत्य करने लगे। मेरी तो आंखें फटी की फटी रह गईं ।
 
साधारणतया कोई भी व्यक्ति 5-6 मिनट से ज्यादा लगातार उछ्ल नहीं कर सकता, लेकिन वो महाराज काफी देर तक नृत्य-कीर्तन करते रहे और पुनः वापिस बिस्तर पर आकर पहले की तरह लेट गये।
 
तबसे मैंने माना कि हमारे गुरुजन जो बोलते हैं  ''- वैष्णव अप्राकृत सदा '' वो कितना सत्य है ।''
 
ऐसी ही कुछ अद्भुत लीला हमारे श्रील जगन्नाथ दास बाबा जी महाराज जी ने भी की।
 
सन् 1892 के माघ महीने में आप श्रीनवद्वीप धाम आए। आप का एक सेवक था बिहारी दास। 100 साल से भी ज्यादा उम्र होने के कारण आप ठीक से न चल पाने की लीला करते थे। आपका सेवक एक टोकरी में लेकर आपको सत्संग-कीर्तन में ले जाया करता था।
 
ऐसा सुना जाता है कि बिहारी दास, जब श्रील जगन्नाथ दास बाबाजी महाराज जी को सिर पर उठा कर भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के जन्म स्थान के पास से लेकर जा रहे थे तो अचानक बाबाजी महाराज उच्च स्वर से ''जय शचीनन्दन गौरहरि'' ''जय शचीनन्दन गौरहरि'' बोलते हुए छलांग लगाकर टोकरी से नीचे कूद पड़े और उद्दण्ड नृत्य-कीर्तन करने लगे।
 
जो वर्षों से चल फिर भी न सकते हों, उन्हें ऐसा नृत्य-कीर्तन करता देख सभी भक्त आश्चर्यचकित होकर उन्हें घेर कर खड़े हो गये, जिनमें श्रील भक्ति विनोद ठाकुर भी थे। कीर्तन के बाद बाबाजी महाराज जी ने कहा ''ये ही श्रीचैतन्य महाप्रभु जी का जन्म-स्थान है।'' 
 
श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com

 

Advertising