कृष्णावतार

punjabkesari.in Sunday, Sep 04, 2016 - 03:09 PM (IST)

युधिष्ठिर ने जब उन सब भाइयों को अपने महल में ठहरने का कुबेर का अनुरोध विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर लिया तो कुबेर ने उनसे कहा, ‘‘ठीक है तुम सब ऋषि के आश्रम में ही रह कर कृष्ण पक्ष बिता दो। मेरे यक्ष और राक्षस वहां भी तुम लोगों की रक्षा और सेवा करेंगे। तुम्हारा भाई अर्जुन भी इंद्रलोक से चल पड़ा है और वह शीघ्र ही आकर तुम सबसे मिलेगा।’’ 

 

यक्षराज कुबेर इतना कहने के बाद चारों भाइयों को आशीर्वाद देकर वहां से विदा हुए। अर्जुन अस्त्र विद्या सीखने देवलोक गए थे। उन्होंने शिव जी की पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया और उनसे पाशुपत अस्त्र प्राप्त किया। इसके बाद वह पांच वर्ष इंद्रपुरी, अमरावती में रहे। वहां उन्होंने संगीत और नृत्य विद्या सीखी और जब देवराज इंद्र ने उन्हें अपने भाइयों के पास जाने की अनुमति प्रदान कर दी तो वह प्रसन्नतापूर्वक देवराज इंद्र के रथ पर सवार होकर गंधमादन पर्वत पर आ पहुंचे। 

 

देवराज इंद्र के रथ के पहियों की गडग़ड़ाहट सुनकर धौम्य ऋषि, युधिष्ठिïर, भीम, नकुल, सहदेव और द्रौपदी उठकर आश्रम से बाहर खुले स्थान पर आ गए। दूर से ही उन सब लोगों ने पहचान लिया कि देवराज इंद्र के रथ पर सवार होकर अर्जुन इन्द्रलोक से वापस लौट रहे हैं। 

 

उन्हें देख कर प्रसन्नता से सबके मुखमंडल खिल उठे। भीम ने उल्लासपूर्वक गरजते हुए रथ से ही अर्जुन को गोद में भर कर उठा कर अपनी छाती से लगा लिया। उसी प्रकार उन्हें भुजाओं में समेटे हुए अपने भाइयों तथा द्रौपदी के पास लाकर उन्होंने अर्जुन को खड़ा कर दिया। 

 

अर्जुन ने सबसे पहले कुल पुरोहित धौम्य ऋषि के चरणों में शीश झुका कर प्रणाम किया और फिर अपने सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर को चरण छू कर प्रणाम किया। जब वह भीम के चरण छूने के लिए झुके तो उन्होंने फिर उन्हें अपनी भुजाओं में उठा कर अपनी छाती से लगा लिया। 

 

दोनों छोटे भाइयों नकुल और सहदेव ने अर्जुन के चरण छू कर उनसे आशीर्वाद लिया। अर्जुन ने उन्हें बारी-बारी उठाकर अपने गले से लगाया और उनका सिर सूंघा। 

(क्रमश:)


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News