कृष्णावतार

punjabkesari.in Sunday, Jun 26, 2016 - 01:11 PM (IST)

‘‘इस प्रकार के सर्वसाधारण पदार्थ के लिए मैं धनाधीश कुबेर से याचना क्यों करूं? यदि धनाधीश ने स्वयं यह बाग लगाया होता और सरोवर बनाया होता, तब तो इस पर उनका अधिकार माना भी जा सकता था। एक बार लंका को अपनी मान कर धनपति कुबेर अपमानित हो चुके हैं और अब फिर वही मार्ग उन्होंने अपनाया हुआ है। संसार में बाहुबल से जो प्राप्त किया जाए वही अपना माना जा सकता है।’’ भीमसेन इतना कह कर धनाधीश कुबेर के प्रहरी राक्षसों की परवाह किए बगैर सरोवर में उतर गए। 

 

जब राक्षसों ने भीमसेन को रोकने का प्रयास किया तो उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘जाओ, जाकर अपने स्वामी से कह दो कि भीम सरोवर में स्नान कर रहा है और वह यहां से बहुत से पुष्प भी तोड़ कर ले जाएगा। यदि तुम उसे रोक सकते हो तो आकर रोक लो।’’

 

‘‘हमें यही आज्ञा मिली है कि हम तुम्हें यहां न तो स्नान करने देंगे और न ही कुछ तोडऩे देंगे।’’ राक्षसों के सरदार ने कहा।

 

‘‘यदि तुम लोग मुझे रोक सकते हो तो रोक लो।’’ भीम ने हंस कर कहा और आनंदपूर्वक स्नान करते रहे। 

 

यह सुन कर भीमसेन पर तोमर, मुंडपाल आदि अस्त्र-शस्त्रधारी राक्षस टूट पड़े। भीमसेन ने भी अपनी गदा उठाई और अनेकों राक्षसों को वहीं ढेर कर दिया और जो बच गए वे शीघ्रगामी विमानों पर बैठ कर कैलाश पर्वत के शिखर पर चले गए और हाथ जोड़ कर धनपति कुबेर से बोले, ‘‘प्रभु एक पुरुष भीम जो अपने आपको पांडव पुत्र और धर्मराज युधिष्ठिर का छोटा भाई बताता है, सुगंधक वन में आ गया है। वह आपके सरोवर में स्नान कर रहा है और बहुत से सुगंधित पुष्प तोड़ कर ले जाना चाहता है। हमने रोका तो उस देवाकार मानव ने हम में से अनेकों को गदा से मार-मार कर यमलोक पहुंचा दिया है।’’ 

 

यह सुनकर कुबेर हंस कर बोले, ‘‘मुझे सब मालूम है। भीमसेन जितने पुष्प ले जाना चाहते हैं, ले जाएं। उन्हें रोकना तुम्हारे वश की बात नहीं। उनके आने की सूचना तुम लोगों को मुझे देनी चाहिए थी। जाओ, उनका सत्कार और आतिथ्य करो।’’ 

(क्रमश:)


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