भगवान शिव के आशीर्वाद से बालक को मिली लंबी उम्र

punjabkesari.in Wednesday, Aug 17, 2016 - 03:31 PM (IST)

आप जगद्गुरु श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद जी के उन शिष्यों में से एक हैं, जिन्होंने प्रभुपाद्जी का उस समय दर्शन किया जब उन्होंने संन्यास भी नहीं लिया था तथा जो श्री महाप्रभु जी के श्लोक ''तृणादपि सुनीचेन'' के मूर्ति स्वरूप हैं।

 

माया के चंगुल में जकड़े श्रीकृष्ण-विमुख जीवों का सही पथ-प्रदर्शन करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने ही आपको अपने गोलोक धाम से इस धरातल पर भेजा था। इस धरातल पर आपका प्राकट्य 18 अक्तूबर, सन् 1898 में गांव गंगानन्दपुर, जिला यशोहर, बंगलादेश में हुआ। यशोहर जिले में ही हमारे पूर्वाचार्य, श्रील नरोत्तम  ठाकुर जी के गुरु जी, श्री लोकनाथ गोस्वामी तथा जगद्-गुरु श्रील प्रभुपाद जी के कई पार्षदों ने प्रकट-लीला की। आपके पिता जी का नाम श्री तारिणी चरन चक्रवर्ती तथा माता जी का नाम श्रीमती राम रंगिनी देवी था।

 

किसी ने आपके माता-पिता को बताया कि यह बालक है तो बहुत सुंदर लेकिन इसकी उम्र बड़ी कम है। अतः वहां की प्रथा के अनुसार बालक को शिव-मंदिर में ले जाकर शिव जी के चरणों में रख दिया। बालक के माता-पिता इसलिए भी डरे हुए थे क्योंकि इस बालक से पहले माता राम रंगिनी देवीजी ने एक कन्या को  जन्म दिया था जो कि चार वर्ष तक ही जीवित रही।  उसके बाद एक पुत्र हुआ जब वह लगभग एक वर्ष का हुआ तो उसकी भी मृत्यु हो गई।

 

बच्चे को शिव जी के चरणों से उठाने से पहले शिव मंत्रों का उच्चारण किया गया। बच्चे को शिव जी का आशीर्वाद दिलाया गया व प्रथानुसार धाई मां ने शिव चरणों से बालक को उठाया और तीन कौड़ी लेकर बालक को श्रीतारिणी चन्द्र चक्रवर्ती जी को दे दिया। चूंकि शिव जी के आशीर्वाद से आपको लंबी उम्र मिली इसलिए आपके अड़ोस-पड़ोस के लोग आपको शिवेर-वर पुत्र कहते थे। थोड़ा बड़ा होने पर गांव के लोग आपको आपकी माता जी के द्वारा दिए स्नेह भरे ''तिनु'' नाम से बुलाते थे। आपके माता-पिता जी प्रसिद्ध स्मार्त-ब्राह्मण चक्रवर्ती कुल के थे, उन्होंने आपको नाम दिया - श्री पद्मभूषण।

श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ की ओर से

श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज

bhakti.vichar.vishnu@gmail.com


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