पढ़े-लिखे होने के बाद भी अंग्रजी न बोल पाने का दुख है तो एक क्लिक में पाएं समाधान

Tuesday, Apr 19, 2016 - 09:54 AM (IST)

क्या आपको भी इस बात का दुख है...

एक बार ब्रह्म समाज के प्रमुख नेता केशवचंद्र सेन इंगलैंड जा रहे थे। जाने से पूर्व उन्होंने महर्षि दयानंद से भेंट की और बोले, ‘‘मुझे दुख है कि आप वेदों के विद्वान होकर भी अंग्रेजी नहीं जानते, वरना वैदिक संस्कृति पर प्रकाश डालने वाला विदेशयात्रा में मेरा एक साथी और होता। 

 

दयानंद जी मुस्कराकर बोले, ‘‘मुझे भी इस बात का दुख है कि ब्रह्म समाज का नेता अपने पूर्वजों की भाषा संस्कृत नहीं जानता और अपने देशवासियों को भी विदेशी भाषा में उपदेश देता है, जिसे देशवासी समझते ही नहीं। यदि वह नेता अंग्रेजी के बजाय संस्कृत जानता तो वैदिक संस्कृति की अधिक सेवा करता।

 

केशवचंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ। दयानंद सरस्वती ने केशवचंद्र सेन को वेदों की ओर आकृष्ट किया और वास्तविक वैदिक धर्म का महत्व समझाया। रामकृष्ण परमहंस व दयानंद सरस्वती के संपर्क में आने से केशवचंद्र सेन भारतीय संस्कृति के महानतम शास्त्रों से अवगत हुए और उन्हें अपने जीवन में उतारा।

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