मान-अपमान की परवाह करने वालों का बिगड़ जाता है भाग्य

Saturday, Jan 30, 2016 - 08:22 AM (IST)

महाराष्ट्र के संत ज्ञानेश्वर, नामदेव तथा मुक्ताबाई के साथ तीर्थाटन करते हुए प्रसिद्ध संत गोरा के यहां पधारे। संत समागम हुआ, वार्ता चली। तपस्विनी मुक्ताबाई ने पास रखे एक डंडे को लक्ष्य कर गोरा कुम्हार से पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

गोरा ने उत्तर दिया, इससे ठोककर अपने घड़ों की जांच करता हूं कि वे पक गए हैं या कच्चे ही रह गए हैं। मुक्ताबाई हंस पड़ी और बोलीं हम भी तो मिट्टी के ही पात्र हैं। क्या इससे हमारी जांच कर सकते हो? ‘हां, क्यों नहीं’ कहते हुए गोरा उठे और वहां उपस्थित प्रत्येक महात्मा का मस्तिष्क उस डंडे से ठोकने लगे। उनमें से कुछ ने इसे विनोद माना, कुछ को रहस्य प्रतीत हुआ। किन्तु नामदेव को बुरा लगा कि एक कुम्हार उन जैसे संतों की एक डंडे से परीक्षा कर रहा है। उनके चेहरे पर क्रोध की झलक भी दिखाई दी।

जब उनकी बारी आई तो गोरा ने उनके मस्तिष्क पर डंडा रखा और बोले, ‘यह बर्तन कच्चा है।’

फिर नामदेव से आत्मीय स्वर में बोले, ‘तपस्वी श्रेष्ठ, आप निश्चय ही संत हैं किन्तु आपके हृदय का अहंकार रूपी सर्प अभी मरा नहीं है, तभी तो मान-अपमान की ओर आपका ध्यान तुरन्त चला जाता है। यह सर्प तो तभी मरेगा जब कोई सद्गुरु आपका मार्गदर्शन करेगा।’

संत नामदेव को बोध हुआ। स्वयंस्फूर्त ज्ञान में त्रुटि देख उन्होंने संत विठोबा खेचर से दीक्षा ली जिससे अंत में उनके भीतर का अहंकार मर गया। नामदेव को आज 

सभी जानते हैं लेकिन गोरा तो नींव के पत्थर की तरह आज भी लोगों की आंखों से ओझल हैं जबकि नामदेव को अहंकार मुक्त करने में उन्हीं का सबसे बड़ा योगदान रहा था। सच कहा जाए तो नामदेव के असली गुरु गोरा ही हुए। आखिर उन्हीं के कहने से तो नामदेव ने विठोबा खेचर से दीक्षा ली। 

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