सत्य कहानी: एक ही समय पर दो शहरों में भक्तों को संबोधित किया

Tuesday, Nov 24, 2015 - 03:12 PM (IST)

श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ठाकुर प्रभुपाद के शिष्य श्रील भक्ति दयित माधव गोस्वामी महाराज ''विष्णुपाद'' जी एक बार भारत के प्रदेश आसाम में प्रचार में थे। आसाम में श्री चैतन्य गौड़ीय मठ के सरल प्रकृति के शिष्य ने श्रीमाधव माहाराज जी को निवेदन किया। उसने कहा कि मेरे पिताजी ने तो अपने जीवन में भजन नहीं किया।  मैं चाहता हूं कि आपके द्वारा उनका श्राद्ध हो जाए ताकि उनका कल्याण हो जाए। आप मेरे पिताजी के श्राद्ध पर आएं ताकि उनका कल्याण हो। 
 
श्रीमाधव महाराज जी ने डायरी देख कर बताया कि उस समय तो वे कोलकाता में प्रचार कार्यक्रम में होंगे क्योंकि उन दिनों वहां सम्मेलन चल रहा होगा। उन्होंने उस शिष्य को कहा कि उस समय तो मेरा आना मुश्किल है किंतु मैं योग्य व्यक्तियों को  भेज दूंगा। बड़ी विनम्रता से उस भक्त ने कहा कि आपके आने से बहुत अच्छा होता। 
 
कोलकाता में प्रचार कार्यक्रम के दौरान श्रीमाधव महाराज जी ने अपने गुरु भाई (श्रील प्रभुपाद के शिष्य) श्री कृष्ण केशव दास ब्रह्मचारी, श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी तथा श्री मंगल निलय ब्रह्मचारी को आसाम भेजा। ट्रेन लेट होने के कारण आप समय पर वहां नहीं पहुंच पाए। जब आप उनके घर से कुछ दूरी पर थे, तो आपने देखा कि सभी लोग प्रसाद पाकर हाथ धो रहे हैं। ऐसे समय पर वहां जाना, श्री मंगल निलय ब्रह्मचारी ने अपना अपमान समझा। और साथियों से निवेदन किया कि हमें वहां नहीं जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने हमारी प्रतीक्षा नहीं की । वैसे प्रोग्राम खत्म भी हो गया है।                                                                                                                    
 
श्रील तीर्थ महाराज जी ने कहा कि आपकी बात ठीक है परंतु हमार कोई दोष नहीं , हमारी ट्रेन लेट हो गई। दूसरी बात जब कोलकाता जाएंगे तो  गुरु जी पूछेंगे कि प्रोग्राम कैसा रहा, तब हम क्या जवाब देंगे कि हम वहां गए ही नहीं ? श्री कृष्ण केशव प्रभु जी ने भी श्रीतीर्थ महाराज जी की बात को सही ठहराया और फिर तीनों उनके घर पहुंच गए।      
 
उनको देख कर सभी भक्तों में खुशी की लहर दौड़ गई और सभी के मुख पर एक ही प्रश्न था कि आप श्रीमाधव महाराज के साथ क्यों नहीं आए ? आप उनके साथ आते तो और भी अच्छा होता। श्रील केशव प्रभु जी ने कहा हमारे मठ का कोलकाता में सम्मेलन चल रहा है,  इसलिए श्रीमाधव महाराज जी नहीं आए और उन्होंने हमको भेजा है। सभी भक्तों के चेहरे देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे वे इनकी बात सुन कर हैरान हों। 
 
तब सबकी ओर से जिन भक्त के पिताजी का श्राद्ध था, वे बोले कि आप क्या बात करते हैं , श्रील गुरुदेव, माधव महाराज जी तो यहां आए थे। उन्होंने पहले प्रवचन किया, उपदेश दिए। फिर स्वयं सारा अनुष्ठान किया, अभी थोड़ी देरे पहले ही यहां से वे निकले।     
 
उनकी बातें सुन कर ये तीनों के तीनों हैरान हो गए और सोचने लगे यह कैसे सम्भव है ? भक्तों ने आप तीनों को सारी जगह दिखाई जहां श्रीमाधव महाराज जी ने प्रवचन किया, पूजा की, श्राद्ध करवाया, प्रसाद पाया । उसके बाद आप लोगो ने स्नान इत्यादि करके प्रसाद पाया, रात को संकीर्तन किया भक्तों के साथ और अगले दिन वापिस चल पड़े ।             
 
कोलकाता पहुंच कर आपने भक्तों को सबसे पहले यही पूछा कि आज कल प्रवचन कौन कर रहा है ? सभी ने जवाब दिया कि गुरु महाराज जी तथा अन्य संन्यासी जन। आप लोगों ने पूछा कि क्या बीच में एक दो दिन गुरुजी कहीं गए थे अथवा यहां नहीं थे? 
 
उत्तर मिला कि नहीं वो तो रोज यहां पर प्रवचन कर रहे हैं बल्कि परसों तो उन्होंने स्वयं संकीर्त्तन भी किया। सब मठ के महात्माओं की बात सुनकर आपको हैरानी हुई। सामान रख कर आप सीधे श्रीमाधव महाराज के कमरे में गए। प्रणाम इत्यादि होने के बाद श्रीमाधव महाराज जी ने आपके हाल-चाल पूछे, यात्रा /कार्यक्रम के बारे में पुछा इत्यादि। 
 
जवाब में श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी ने कहा, '' हमारी ट्रेन थोड़ा लेट हो गई थी परंतु वहां भक्तों से सुना कि वहां का सारा पूजा, श्राद्ध, प्रवचन, इत्यादि सब आपने किया। 
 
श्रीतीर्थ महाराज जी की बात सुन कर श्रीमाधव महाराज जी मुस्कुराए। पुन: श्रीतीर्थ महाराज जी ने उनसे जानना चाहा कि यह कैसे सम्भव हुआ कि एक ही समय पर आप कोलकाता में यहां पर संकीर्त्तन / प्रवचन कर रहे थे भक्तों के साथ, और उधर दूर आसाम में भी उसी समय आप प्रवचन, पूजा और श्राद्ध कर रहे थे। इसके जवाब को श्रीमाधव महाराज जी टाल गए और कहा कि बहुत दूर से आए हो, हाथ इत्यादि धोकर प्रसाद पाओ। 
 
अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ के सौजन्य से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com  
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