स्वर्ग अथवा नरक में जाने के लिए करने पड़ते हैं ये काम

Monday, Jan 25, 2016 - 04:35 PM (IST)

कस्बे में एक सेठ जी रहते थे। नि:संतान थे किंतु सम्पत्ति अपार थी पुरखों का परिवार कभी समृद्ध था, लेकिन अब परिवार के वंश वृक्ष पर वह एक मात्र पुष्प थे। उन्होंने जीवन में कभी अहंकार नहीं किया और संचित धन परोपकार में खर्च करते रहे। जब अंत समय आया तो धर्मराज ने दो यमदूत उन्हें लाने के लिए भेजे। यमदूतों को हिदायत दी गई कि सेठ जी के पुण्य कार्यों को देखते हुए उन्हें स्वर्ग लोक में सादर प्रवेश दिया जाए।
 
 दूत सेठ जी के पास पहुंचे। द्वार खटखटाया। उनके बाहर आने पर बोले-‘‘श्रेष्ठी महाशय! हम स्वर्ग के दूत हैं, पृथ्वी लोक पर आप श्री के विचरण का समय पूरा हुआ। आपने जीवन भर सद्कार्य किए अब स्वर्गलोक पधारें और अपने अर्जित पुण्यों का लाभ लें।’’ 
 
सेठ जी दूतों को कुछ देर अपलक देखते रहे। फिर उन्हें अपनी बड़ी हवेली और धन का भान हुआ। मन में लोभ आ बैठा। सोचने लगे, इतनी सम्पत्ति छोड़ कर कैसे जाऊं, स्वर्ग में तो आनंद मिलना ही है पर यहीं रह कर अपने धन का उपभोग भी क्यों न करूं, जो अब तक नहीं कर सका। उन्होंने दूतों से प्रार्थना की-‘‘मुझे थोड़ा समय दें ताकि कुछ शेष कार्यों को निपटा सकूं।’’ 
 
दूतों ने कहा-‘‘श्रेष्ठी! यदि आप अपनी सम्पत्ति को लेकर चिन्तित हैं तो निराश्रितों के कल्याण, शिक्षा, चिकित्सा और कन्याओं के कल्याण कार्यक्रमों के लिए समर्पित कर निवृत्त हो सकते हैं। स्वर्ग के आनंद से चूकिए मत।’’ 
 
सेठ जी गिड़गिड़ाते रहे, मन में बैठा लोभ मति भ्रमित कर रहा था। वह हित की बात कैसे सोचने देता। दूतों ने सोचा, संभवत: कोई ज्यादा ही महत्वपूर्ण पुण्य कार्य शेष रह गया है उन्होंने धर्मराज से सम्पर्क किया। धर्मराज, सेठ के मन में समाए लोभ को ताड़ गए फिर भी उसे वर्ष भर की मोहलत दे दी। यमदूतों के जाने के बाद सेठ जी ने धन का उपभोग तो नहीं किया बल्कि और अधिक संचय की प्रवृत्ति प्रभावी हो गई। कर्ज पर रुपया देने व ब्याज-बट्टा की कमाई से रोटी खाने लगे। धंधे में झूठ-फरेब के कारण कस्बे में निंदा के पात्र भी बनने लगे। देखते-देखते वर्ष बीत गया। उनके कर्मों के कारण संचित पुण्य क्षीण हो गए।
 
ठीक समय पर यमदूत आ पहुंचे। वे पहले की भांति तेजोमय न होकर वीभत्स आकृति वाले थे। सेठ जी ने उनसे पूछा-‘पूर्व में आने वाले दूतों की क्या बदली हो गई है? 
 
दूतों ने उपहास करते हुए कहा,‘‘सेठ जी! अब आपको स्वर्ग लोक नहीं, नरक लोक चलना है। हम वहीं से आए हैं। आपने एक वर्ष में सारे पुण्य खो दिए और पाप की गठरी बांधते रहे। इसे उठाएं और बिना न-नुकर चलें हमारे साथ।’’
 
इस प्रेरक प्रसंग का सार यही है कि हम खाली हाथ संसार में आते हैं और खाली हाथ ही जाना होता है। यदि साथ कुछ जाता है तो वे हमारे पुण्य हैं। अतएव जीव में परिश्रम और ईमानदारी से अर्जित धन से अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ दीन-दुखी और पीड़ितों की सहायता में भी अपनी सामर्थ्यनुसार मदद जरूर करें। किसी का दिल दुखाना ठीक नहीं है। 
 

-प्रशांत अग्रवाल  

Advertising