माता-पिता के मिलन से नहीं, अनोखे तरीके से हुआ था गुरू द्रोणाचार्य का जन्म

Friday, Nov 20, 2015 - 01:46 PM (IST)

आज विज्ञान चाहे नई-नई तकनीकों का प्रयोग करके बुंलदियों पर पंहुच गया है लेकिन धार्मिक शास्त्रों के आधार पर कहा जा सकता है की उन तकनिको का प्रयोग हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज कर चुके हैं। महाभारत के आदिपर्व में बताया गया है की गुरू द्रोणाचार्य का जन्म माता-पिता के मिलन से नहीं बल्कि अनोखे तरीके से हुआ था।

महर्षि भारद्वाज ऋग्वेद के छठे मण्डल के दृष्टा माने गए हैं। वह गंगाद्वार नाम के स्थान पर निवास करते थे। एक दिन उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया और अपने साथ अन्य संत-महात्माओं को लेकर गंगा तट पर स्नान करने गए। जब वह वहां पंहुचे तो उन्होंने देखा घृतार्ची नाम की अप्सरा गंगा स्नान करने के बाद जल से निकल रही थी। उसकी सुंदरता पर महर्षि इस कद्र मोहित हो गए की खुली आंखों से ही उसके साथ मन में काम क्रियाएं करने लगे तभी उनका वीर्य स्खलित होने लगा।  उन्होंने उसे द्रोण नाम के यज्ञ पात्र में डाल दिया। उसी यज्ञ पात्र से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ। 

बालक द्रोण का पालन-पोषण महर्षि भारद्वाज के आश्रम में ही होने लगा। वहां उन्होंने अपने पिता से चारों वेदों तथा अस्त्रों-शस्त्रों की विद्या ग्रहण करी। तभी उन्हें पता चला परशुराम जी अपनी सारी धन-संपदा दान करके तपस्या के लिए जा रहे हैं। द्रोण उनके पास गए और उनसे दान की मांग करने लगे लेकिन परशुराम जी अपना सब कुछ दान कर चुके थे। उनके पास केवल अस्त्र-शस्त्र ही बचे थे। द्रोण ने उन्हें अपना गुरू बनाकर अस्त्रों-शस्त्रों की शिक्षा-दीक्षा विधि-विधान से प्राप्त कर समस्त विद्याओं के अभूतपूर्व ज्ञाता बन गए। ये संसार के श्रेष्ठ धनुर्धर थे। 

शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत द्रोण की शादी कृपाचार्य की बहन कृपी के साथ हो गई। कृपी से उन्हें एक महाबली पुत्र प्राप्त हुआ। जन्म के समय ही उसके मुंह से अश्व की ध्वनि निकली थी इसलिए उनका नाम अश्वत्थामा रखा गया। 

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