कृष्णावतार

Sunday, Aug 14, 2016 - 01:08 PM (IST)

भीम की गदा का प्रहार वह राक्षस न सह सकने के कारण भयंकर आवाज मेें चीखता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा और उसके प्राण पखेरू उड़ गए। उसे गिरा हुआ देख कर बचे हुए यक्ष भी वहां से भाग खड़े हुए।

 

इधर चारों ओर सुनसान वायुमंडल होने के कारण गर्जना और चीख-पुकार की आवाजें अत्यंत जोरदार गूंज के साथ दूर-दूर तक फैल रही थीं। युधिष्ठिर ने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई और भीमसेन को वहां न पाकर द्रौपदी एवं तीनों भाई चिंतित हो उठे। द्रौपदी को वहीं छोड़ कर युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव अपने अस्त्र-शस्त्र लेकर उत्तर दिशा की ओर चल दिए। उन्होंने वहां कुबेर का महल देखा और वहीं उन्हें भीमसेन भी खड़े नजर आए तथा अनेकों राक्षस भी मरे पड़े थे।

 

तीनों भाई दौड़ कर पहले भीम से गले मिले और फिर महाराज युधिष्ठिर ने उनसे कहा, ‘‘भैया, हम लोग तीर्थयात्रा को निकले हैं परंतु तुम कहीं न कहीं उत्पात मचाते ही रहते हो। पहले भी तुमने पुष्प लाने के लिए अनेकों राक्षसों का वध कर डाला। यदि तुम कुबेर से सीधी तरह कहलवा देते कि तुम्हें पुष्प लेने हैं तो वह कभी भी तुम्हें इंकार न करता और अब फिर तुमने अकारण ही यहां आकर इन राक्षसों को मार डाला। तीर्थ यात्रियों के लिए बिना किसी कारण किसी के घर जाकर उसका वध कर डालना तो किसी प्रकार भी धर्मोचित्त कार्य नहीं है।’’

 

यह सुन कर भीम भोला सा मुंह बनाकर बोले, ‘‘परंतु प्रहार तो पहले मुझ पर उन्होंने ही किए थे।’’

 

‘‘वह तो मैं जानता हूं परंतु तुम भी तो बिना कारण ही उनके द्वार पर आए और राक्षसों का तो यह स्वभाव ही है कि वे मानव को देखते ही उस पर प्रहार कर देते हैं। यह बात तुम भली प्रकार जानते हो भैया। ऐसे अनर्थपूर्ण कार्यों से हमारी सारी तीर्थयात्रा असफल हो जाएगी। तुम तो जानते ही हो कि हम लोग ऋषि लोक से आगे बढ़कर देव भूमि में आ पहुंचे हैं। ऋषि लोक में यक्षों का भी वध करने से पाप लगता है और यहां देवलोक में भी।’’ भीम सिर झुकाए खड़े रह गए।

(क्रमश:)

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