श्री कृष्ण के बेटे और दुर्योधन की बेटी में थे प्रेम संबंध, फिर हुआ कुछ ऐसा...

Saturday, Aug 20, 2016 - 09:06 AM (IST)

भगवान श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका भारत के पश्चिम में समुद्र के किनारे स्थित है।  श्री कृष्ण मथुरा में पैदा हुए, गोकुल में पले बढ़े और शासन उन्होंने द्वारिका में ही किया। हिंदुओं की पवित्र चार धाम यात्रा में से यह एक धाम है और सात पुरियों में से एक पुरी है।
 
द्वारिका एक छोटा-सा कस्बा है। इसके भीतर बहुत से मन्दिर हैं। द्वारिका के दक्षिण में एक लम्बा ताल है जिसे गोमती तालाब के नाम से जाना जाता है। इसी नाम पर ही द्वारिका को गोमती द्वारिका भी कहा जाता है। इसके ऊपर नौ घाट हैं।
 
जिस समय श्री कृष्ण वहां शासन करते थे उस समय द्वारिका बैकुंठ के समान थी। जिसमें भगवान का भरा-पूरा परिवार रहता था। उनकी 8 पटरानियां थी जिनके नाम थे रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती, मित्रवन्दा, सत्या, लक्ष्मणा, भद्रा और कालिंदी। जिनसे उनके बहुत से पुत्र और पुत्रियों थे। उसके बाद श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस द्वारा बंधक बनाई गई 16 हजार स्त्रियों को मुक्त कराकर उनसे विधिवत विवाह किया। जो उनकी रानियां कहलाती हैं।
 
उनकी 8 पटरानियों में से जाम्बवती नामक पटरानी भगवान के चरणों में रिछराज जाम्बवंत की भेंट है। भगवान श्री कृष्ण ने जब राम अवतार लिया तो उस समय जाम्बवंत जी भगवान श्री राम के सलाहकार थे। जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे।
जाम्बवती पटरानी होते हुए भी पूर्ण समर्पण भाव से भगवान कृष्ण के प्रति पूर्ण रुप से समर्पित रही हैं।
 
जाम्बवती और भगवान श्री कृष्ण का एक पुत्र था जिसका नाम सांब था। जो भगवान श्री कृष्ण की ही भांति सोलह कला संपन्न था। सांब को देखते ही दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा उनसे प्रेम करने लगी। सांब की दृष्टि भी जब लक्ष्मणा पर पड़ी तो वो भी उसके आकर्षण में बंध गए।
 
कौरव लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र से कदापि नहीं करते इसलिए दोनों ने गंधर्व विवाह(प्रेम विवाह) करने का निर्णय लिया और विवाह कर लिया तत्पश्चात सांब लक्ष्मणा को अपने रथ में बैठाकर द्वारिका ले जाने लगा तो कौरवों ने मार्ग में ही हस्तिनापुर की पूरी सेना के साथ उस पर धावा बोल दिया।
 
कौरवों की विशाल सेना का साम्ब ने डट कर मुकाबला किया मगर अकेला कब तक विशाल सेना का सामना कर पाता। अत: साम्ब को हार का मुंह देखना पड़ा और कौरवों ने साम्ब को बंदी बना लिया। जब द्वारिका में साम्ब को बंदी बनाए जाने का समाचार पहुंचा तो बलराम हस्तिनापुर गए और कौरवों से शांति वार्ता कि और कहा वह साम्ब को छोड़ दें और उनकी कुल वधु लक्ष्मणा को विदा कर दें।
 
कौरवों ने बलराम जी की बात मानने से इंकार कर दिया। बलराम जी का क्रोध सातवें आसमान पर चढ़ गया। उन्होंने अपने हल से हस्तिनापुर पर प्रहार किया और  हस्तिनापुर को खींचकर गंगा में डूबोने के लिए चल पड़े।
 

कौरव बलराम जी का भयानक रूप देख कर डर गए और उन से क्षमा याचना करने लगे। बलराम जी ने उन्हें क्षमा कर दिया। कौरवों ने सांब और लक्ष्मणा को बलराम जी के साथ विदा किया। द्वारिका जाकर सांब और लक्ष्मणा का सनातन संस्कृति के अनुसार विवाह संपन्न हुआ। 

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