कृष्णावतार

Sunday, May 22, 2016 - 09:04 AM (IST)

श्री हनुमान जी का दिव्य स्वरूप देख कर भीम सेन अत्यंत आश्चर्यचकित हुए। उनके रौंगटे खड़े हो गए। उनका शरीर थर-थर कांपने लगा और हाथ जोड़ कर हनुमान जी की स्तुति करते हुए वह बोले, ‘‘महावीर बजरंग बलि श्री हनुमान जी, अपने दिव्य रूप में दर्शन देकर आपने अपने इस सेवक पर बड़ी कृपा की है। अब मैं जीवन भर इसी रूप का ध्यान करके अपनी सहायता के लिए आपका आह्वान करके शत्रुओं से युद्ध आरंभ किया करूंगा। आप तो साक्षात् उदय होते हुए सूर्य के समान हैं।’’ 

 

‘‘महावीर, मेरे मन में तो यही बड़ा आश्चर्य है कि आपके रहते भगवान श्री राम को क्यों धनुष-बाण धारण करके रावण और उसके परिवार से युद्ध करना पड़ा? आप तो अकेले ही उसे और उसके परिवार को यमलोक पहुंचा देने में समर्थ थे।’’

 

हनुमान जी बोले, ‘‘भैया, तुम फिर भूल कर रहे हो। मैंने सदा ही यह समझा है कि मैं जितना भी समर्थ था श्री राम जी की कृपा से था और आज भी जो कुछ हूं वह श्री राम जी की कृपा से ही हूं। यदि वह मुझे आज्ञा दे देते तो मैं अवश्य ही अकेला रावण और उसके परिवार का विनाश कर देता परंतु भगवान क्या करना चाहते हैं या क्या करवाना चाहते हैं, यह उनकी इच्छा पर निर्भर है। हम उनके सेवक उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य कर सकते हैं। इससे अधिक नहीं कर पाते।’’ 

 

‘‘तुम जिन्हें श्री कृष्ण रूप में देखते हो और मैं आज भी जिनके दर्शन धनुर्धारी श्री राम के रूप में करता हूं, वह भी कैसे-कैसे खेल खेलते हैं यह तो तुम दिन-रात देखते ही रहे हो और भविष्य में भी देखोगे।’’                    

 (क्रमश:)

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