कृष्णावतार

Monday, May 16, 2016 - 03:07 PM (IST)

परम तेजस्वी बजरंग बली ने भीमसेन की बात सुन कर उत्तर दिया, ‘‘भैया, तुम उस रूप को नहीं देख सकोगे और न ही कोई अन्य पुरुष उसे देख सकेगा। उस समय की बात ही कुछ और थी। सतयुग का काल अलग ही था और त्रेता तथा द्वापर उससे अलग हैं। काल तो निरंतर दुर्बल करने वाला है। अब मेरा वह रंग-रूप कहां रह गया है। पृथ्वी, नदियां, पर्वत, देवता और सिद्ध सभी काल का अनुसरण करते हैं। प्रत्येक युग के अनुसार उनके बल, शरीर और प्रभाव घटते-बढ़ते रहते हैं, इसलिए तुम उस रूप को देखने का हठ त्याग दो।’’

 
 
‘‘पूज्य महावीर जी, आप अपने सेवक को उसी प्रकार बहला रहे हैं जिस प्रकार बालक को दर्पण में चंद्रमा दिखा कर बहलाया जाता है। पूरा एक युग बीत जाने पर भी मैं यह अच्छी तरह जानता हूं कि आप कितने समर्थ हैं। अत: मुझ पर कृपा करें और अपने उसी रूप में मुझे दर्शन दें जो आपने समुद्र लांघते समय धारण किया था।’’
 
 
भीम के इस तरह अनुरोध करने पर बजरंग बली मुस्कुराए और अपने प्रचंड रूप में प्रकट हो गए जो उन्होंने दक्षिण भारत के तट पर पर्वत पर खड़े होकर धारण किया था। सचमुच भीम उनके सामने नन्हे बालक की भांति प्रतीत हो रहे थे। श्री हनुमान जी का वह विग्रह तेज सूर्य के समान था। 
 
 
श्री हनुमान का वह रूप देख कर भीम अत्यंत आश्चर्यचकित हुए और उनके रौंगटे खड़े हो गए। उनका शरीर थर-थर कांपने लगा और वह हाथ जोड़ कर स्तुति करने लगे।
(क्रमश:)
 
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