कृष्णावतार

punjabkesari.in Monday, Oct 26, 2015 - 01:25 PM (IST)

इसके पश्चात अनेकों तीर्थ स्थलों में पूजा-दान आदि करते हुए सब लोग एक राजा के आश्रम में पहुंचे जिन्होंने अपनी शरण में आए हुए कपोत की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी। मार्ग में रात्रि के समय ये सब लोग जिस स्थान पर भी विश्राम करते देवर्षि लोमश उन्हें कथा वार्ता सुनाया करते थे। 

एक रात लोमश मुनि ने अष्टवक्र की कथा सुनाई और बताया कि, ‘‘उद्दालक ऋषि के पुत्र श्वेतकेतु इस संसार में मंत्र शास्त्र में पारंगत समझे जाते थे। हम सब आज रात्रि जहां विश्राम कर रहे हैं यह आश्रम उन्हीं का है। इस आश्रम में सरस्वती देवी ने श्वेतकेतु को मानवी रूप में दर्शन दिए थे। श्वेतकेतु के पिता उद्दालक मुनि का एक शिष्य था जिसने अपने गुरुवर की बहुत सेवा की और मुनि ने उससे प्रसन्न होकर बहुत शीघ्र उसे तीनों वेद पढ़ा दिए और अपनी पुत्री सुजाता का उसके साथ जब विवाह कर दिया। कुछ काल बीतने पर सुजाता गर्भवती हुई तो उद्दालक मुनि सारी-सारी रात ऊंचे स्वर में वेद पाठ किया करते थे। 

गर्भ काल पूर्ण होने पर सुजाता को बहुत पीड़ा होने लगी उसने अपने पति से कहा कि कहीं से थोड़ा सा धन ले आओ जिससे दाई-वैद्य आदि की सेवा प्राप्त की जा सके। सुजाता के पति धन लेने के लिए राजा जनक के दरबार में गए। वहां शास्त्रार्थ में एक ब्राह्मण ने उन्हें पराजित कर दिया और नियमानुसार राजा जनक के परिचारकों ने उन्हें नदी में डुबो दिया। 

(क्रमश:)


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