कृष्णावतार

punjabkesari.in Monday, Nov 23, 2015 - 03:56 PM (IST)

सुजाता ने कहा, ‘‘बेटा, तेरे पिता राजा जनक के दरबार में गए थे और वहां उन्हें ‘बंदी’ नामक एक ब्राह्मण ने शस्त्रास्त्र में हरा दिया और राजा के नियमानुसार उन्हें नदी में डुबो दिया गया।’’

अष्टावक्र अब और भी ध्यान से विद्याध्ययन करने लगे। वह ऋषि से कुरेद-कुरेद कर बारीकियां पूछा करते थे। कुछ समय बीतने पर आश्रम में चर्चा आरंभ हुई कि राजा जनक एक यज्ञ कर रहे हैं। उस यज्ञ में अनेकों प्रतिष्ठित ऋषि और मुनि तथा श्रोत्रियगण भाग ले रहे हैं। 

अष्टावक्र ने श्वेतकेतु को अपने साथ वहां चलने के लिए राजी कर लिया और दोनों राजा जनक की राजधानी मिथिला नगरी में जा पहुंचे। यज्ञशाला के द्वार पर ब्राह्मणों को नहीं रोका जाता था परंतु इन बालकों को भीतर प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही थी। 

इस पर अष्टावक्र ने द्वारपालों से कहा, ‘‘हम यहां के महान पंडित ‘बंदी’ से शास्त्रास्त्र करने आए हैं। उसने अनेक ब्राह्मणों को और ऋषियों को नदी में डुबो कर मार डाला है। यदि शास्त्रास्त्र में उसे पराजित करने के लिए तुम हमें अंदर नहीं जाने दोगे तो तुम और तुम्हारे राजा ब्रह्म हत्या तथा ऋषि हत्या के दोषी माने जाएंगे।’’

यह सुन कर द्वारपालों ने अष्टावक्र की सूरत देख कर हंसना शुरू कर दिया। इस पर अष्टावक्र ने कहा, ‘‘तुम सब ब्रह्म हत्यारे हो, पहले मैं तुम्हें भस्म करता हूं और फिर तुम्हारे राजा और उसके बंदी ब्राह्मण को दंड दूंगा।’’

यह सुन कर द्वारपाल डर गए और वे उन दोनों बालकों को राजा जनक के पास ले गए। राजा जनक ने सब बातें सुन कर अष्टावक्र से कहा, ‘‘बंदी का प्रभाव बड़े-बड़े वेद वेत्ता पंडित देख चुके हैं। तुम उसकी शक्ति को न समझ कर ही उसे जीतने की आशा कर रहे हो। तुम लोगों से पहले भी न जाने कितने पंडित आए परंतु सूर्य के प्रकाश में जैसे तारे फीके पड़ जाते हैं वैसे ही वे सब भी फीके पड़ गए।’’

(क्रमश:) 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News