मासूम किशोर कैसे बन जाता है जेल का कैदी, जानने के लिए पढ़ें...

Tuesday, Oct 04, 2016 - 03:44 PM (IST)

रोम का एक चित्रकार एक ऐसे व्यक्ति का चित्र बनाना चाहता था जिसके चेहरे पर मासूमियत, सरलता और दया भाव की झलक स्पष्ट दिखाई देती हो। खोज करते-करते एक गिरजाघर के पास उसे अपनी पसंद का एक बालक मिला। चित्रकार ने उस बालक को बिठाकर उसका हू-ब-हू एक चित्र बनाया। उस कलापूर्ण चित्र की इतनी प्रतियां बिकीं कि चित्रकार मालामाल हो गया।


करीब पंद्रह वर्ष के बाद चित्रकार के मन में बात उठी कि दुष्टता का भाव स्पष्ट प्रकट हो ऐसा चित्र बनाना है। वह ऐसे व्यक्ति की खोज में निकला जिसके चेहरे से धूर्तता, क्रूरता और स्वार्थलिप्सा का प्रतिबिम्ब साफ-साफ दिखाई दे रहा हो। एक जेल में, एक ऐसा कैदी मिल गया।


चित्रकार ने उस कैदी से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा एक चित्र बनाना चाहता हूं।’’


संदेह और भय से कैदी उससे पूछ बैठा, ‘‘मेरा चित्र! क्यों बनाना चाहते हो?’’ 


तब चित्रकार ने कैदी को बात समझाई और अपना पहले वाला चित्र भी उसे दिखलाया। पहले वाले चित्र को देख कैदी विचलित हुआ और फूट-फूट कर रोने लगा। रोते-रोते कैदी ने कहा, ‘‘यह चित्र मेरा ही है। मेरी किशोरावस्था का।’’


उस कैदी की दयनीय दशा देख कर चित्रकार को भी बड़ा आश्चर्य हुआ और वह पूछ बैठा, ‘‘तुम इस दशा में कैसे पहुंच गए?’’


कैदी ने रोते हुए उत्तर दिया, ‘‘मेरी यह दशा मेरी कुसंगति के कारण ही हुई है।’’

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