न करें ये काम, वरना छिन जाएगा सुख-चैन

Saturday, Jul 23, 2016 - 01:37 PM (IST)

एक वृद्ध माता सड़क के किनारे कुछ ढूंढ रही थी। रात का समय था। कुछ देर में एक युवक वहां से गुजरा तो उसने माता को पूछा, 'माता जी। आप क्या ढूंढ रही हैं ?' 

 

बूढ़ी माता ने उत्तर दिया, 'बेटा। मेरा एक पांच सौ का नोट गिर गया है, मैं उसी को ढूंढ रही हूं ।' 

 

लड़के ने कहा, 'माता जी। आप यहीं रहें, मैं ढूंढ देता हूं।' 

 

ऐसा कह कर वह लड़का नोट ढूंढने लगा। कुछ समय में एक अन्य राहगीर आ गया । उसने भी जब सारी बात सुनी तो वह भी बूढ़ी माता की सहायता के लिए 500 का नोट ढूंढने लगा। कुछ ही समय में पांच-सात लोग उस नोट को ढूंढने लगे।                                                                                                                              

जब काफी समय ढूंढने पर भी कुछ नहीं मिला तो एक नवयुवक ने बूढ़ी माता को पूछा, 'मां, वह नोट कहां गिरा था?' 

 

वृद्धा ने उत्तर दिया, 'बेटा। जब मैं आज शाम को वो सामने से जा रही थी, तभी वह नोट गिरा था।' 

 

सभी ने उस दिशा में देखा जिधर वृद्धा इशारा कर रही थी। कुछ दूरी पर बगीचा था व अंधेरा भी था। नवयुवक ने वृद्धा को पूछा, 'मां। जब नोट वहां गिरा था, तो तुम यहां क्यों ढूंढ रही हो?' 

 

वृद्धा ने कहा, 'बेटा। उधर बहुत अंधेरा था, और यहां रोशनी है, अत: मैं यहां पर ढूंढ रही हूं ।'      

                                                                                            

हम लोगों कि स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। हमारी भागम-भाग की जिंदगी से भी सुख-चैन जैसे खो सा गया है। जितने भी जीव हैं, वे सभी सुख चाहते हैं। सभी ज्ञानवान कहलाना चाहते हैं तथा सभी जीना चाहते हैं। अब सुख के लिए हम क्या कुछ नहीं करते?                                                                           

बचपन में हम विद्या अध्ययन करते हैं ताकि हम बड़े होकर अच्छे पद पर आसीन हों व धन कमाएं। धन से सुखी जीवन व्यतीत कर सकें। हमारे माता-पिता कितनी मेहनत करते हैं कि हम विद्वान बन सकें फिर सुख की तलाश में हम विवाह रचाते हैं, बच्चे भी करते हैं, घर भी बनाते हैं। देश-विदेश भ्रमण करते हैं। विभिन्न व्यवसाय अथवा उच्च नौकरी करते हैं। कई तरीकों से धन संजोते हैं। फिर भी हम स्थाई सुख को प्राप्त नहीं कर पाते।                                                                                                                                                                                                                 

कारण क्या है?                                                                                                                                                                       जिससे भी बात करो, वो किसी ना किसी कारण से दु:खी है। धनी भी, गरीब भी। पढ़ा-लिखा भी, अनपढ़ भी, आदमी भी, औरत भी, गांव में रहने वाला भी, और शहर में रहने वाला भी, इत्यादि। कुछ तो है जिससे हम स्थाई सुख से दूर हैं। अगर कुछ सुख मिलता भी है, तो वो भी क्षणिक है, स्थाई नहीं। तो क्या हम यह समझें कि हम में और उस बूढ़ी मां में कोई अंतर नहीं है?                   

 

जैसे हमें सोना चाहिए तो क्या हमें वह लोहार के पास जाने से मिलेगा? सोना लेने के लिए सुनार के पास जाना होगा। अगर मैं दांत के दर्द से परेशान हूं तो मुझे उस चिकित्सक के पास जाना होगा तो दांत का इलाज करता है। किसी अन्य रोग के चिकित्सक के पास जाने से मेरे रोग का निदान नहीं होगा।                                                 

           

इसी प्रकार सुख की खोज में हमें उस के पास जाना होगा, जिसके पास स्थाई सुख होगा। हमारा खोआ हुआ सुख-चैन पाने के लिए हमें वहां जाना होगा जहां यह खोआ है। हम तो सुख के लिए उनके पास जा रहे हैं, जिनका हमारी तरह ही सुख-चैन खोआ हुआ है और जो स्वयं ही स्थाई सुख खोज रहे हैं। चाहे वह हमारा जीवन साथी है, चाहे बच्चे, चाहे हमारा बास, इत्यादि। जिनके पास जो वस्तु है ही नहीं, वो वह वस्तु आपको देंगे कैसे?     

                                                                                       

अब प्रश्न यह है कि स्थाई सुख है किसके पास? स्थाई रूप से सुखी तो एकमात्र भगवान ही हैं। अगर हम अपनी खोज की दिशा सही कर दें और भगवान की ओर देखें तो वस्तुत: हमें स्थाई सुख का मार्ग मिल जाएगा। वैसे भी हमारा ये दु:ख का चक्कर तब से शुरु हुआ है जब से हमने सुख-स्वरूप भगवान को भुलाया है। 

 

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