...जब भोले बाबा ने बजाया डमरू

Thursday, Jul 21, 2016 - 01:58 PM (IST)

पूरी दुनिया में उथल-पुथल के दौर में अक्सर लोग लक्ष्य को पाने की आस छोड़ देते हैं। उनका सारा ध्यान महज अपने अस्तित्व को बचाए रखने में लग जाता है। लक्ष्य का होना जीवन को स्पष्टता देता है। अच्छी खबर यह है कि आप बंधी-बंधाई सुरक्षित राहों के इतर राह चुनते हैं तो उन अवसरों पर सोचना भी आसान हो जाता है जो आपको मुश्किल लगती थीं। मनुष्य को भाग्य के भरोसे न रहकर पुरुषार्थ करते रहना चाहिए।
 
पुरुषार्थ कभी व्यर्थ नहीं जाता बल्कि सफलता का सूत्रधार है पुरुषार्थ। इसके लिए जरूरी है आप हर रोज अपने सपनों के बारे में सोचें और उनको आकार देने के लिए तत्पर हों। हालांकि इस संघर्ष और विश्वास से उसको नई ताकत, नया विश्वास और नई ऊर्जा मिलती है तथा इसी से संभवत: वह स्वार्थी बना तो परोपकारी भी बना।  
 
कहते हैं कि एक बार इंद्र किसी कारणवश पृथ्वी वासियों से नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि 12 वर्ष तक वर्षा नहीं करनी है। किसी ने उनसे पूछा कि क्या सचमुच 12 वर्ष तक बरसात नहीं होगी। 
 
इंद्र ने कहा, ‘‘हां, यदि कहीं शिवजी डमरू बजा दें तो वर्षा हो सकती है।’’  
 
इंद्र ने जाकर शिवजी से निवेदन किया कि भगवन, आप 12 वर्ष तक डमरू न बजाएं। शिवजी ने डमरू बजाना बंद कर दिया। 3 वर्ष बीत गए, एक बूंद पानी नहीं गिरा। सर्वत्र हाहाकार मच गया। एक दिन शिव-पार्वती कहीं जा रहे थे। उन्होंने देखा कि एक किसान हल-बैल लिए खेत जोत रहा है। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। दोनों किसान के पास गए और कहने लगे, ‘‘क्यों भाई, जब आपको पता है कि आने वाले 9 वर्षों में भी बरसात नहीं होगी तो तुम खेत की जोताई क्यों कर रहे हो?’’  
 
किसान ने कहा, ‘‘वर्षा का होना-न होना मेरे हाथ में नहीं है लेकिन मैंने यदि हल चलाना छोड़ दिया तो 12 साल बाद न तो मुझे और न ही मेरे बैलों को हल चलाने का अभ्यास रहेगा। हल चलाने का अभ्यास बना रहे इसलिए हल चला रहा हूं।’’  
 
किसान की बात सुनकर पार्वती ने शिवजी से कहा कि स्वामी 3 साल हो गए आपने डमरू नहीं बजाया, अभी 9 साल और नहीं बजाना है। कहीं आप भी डमरू बजाने का अभ्यास न भूल जाएं। शिवजी ने सोचा बात तो सही है। डमरू बजाकर देख लेना चाहिए। वह डमरू बजाकर देखने लगे। उनका डमरू बजते ही पानी झर-झर बरसने लगा।
 
उक्त कथा का सार संदेश यही है कि मनुष्य को अपना प्रयास नहीं छोडऩा चाहिए।   
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