संत कबीरदास के अनुसार जानें, गृहस्थी बनना चाहिए या संन्यासी

Tuesday, Jul 12, 2016 - 10:40 AM (IST)

किसी भी रिश्ते में त्याग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि त्याग की भावना में नफरत, प्रतिस्पर्धा, एकाधिकार, नियंत्रण जैसी तमाम नकारात्मक बातें नष्ट हो जाती हैं। इसके बाद जो रह जाता है, वह है सिर्फ प्रेम। प्यार में त्याग की भावना अमृत के समान है, जो हमें मुश्किल समय में भी नया जीवन देता है। असल में जब हम सच्ची भावना से त्याग करते हैं तब हमें कुछ खोने का नहीं, बल्कि पाने का एहसास होता है। ऐसी स्थिति में सामने वाले के मन में हमारे लिए सम्मानजनक स्थान बनता है।

एक बार संत कबीरदास से एक व्यक्ति ने पूछा, ‘‘कृपया यह बताएं कि मुझे गृहस्थी बनना चाहिए या संन्यासी।’’  
 
कबीर बोले, ‘‘जो भी बनो आदर्श बनो।’’ 
 
तब दोपहर का समय था। कबीर ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा, ‘‘दीपक जलाकर दो, मुझे कपड़े बुनने हैं।’’  
 
पत्नी ने तर्क किए बगैर दीपक जला दिया। कबीर ने उस शख्स से कहा, ‘‘गृहस्थी बनना है तो आपस में ऐसा विश्वास बनाना कि दूसरे की इच्छा ही अपनी इच्छा हो।’’
  
इसके बाद कबीर उसे एक पहाड़ी पर ले गए जहां एक बुजुर्ग संत रहते थे। कबीर ने संत से पूछा, ‘‘बाबा आपकी आयु कितनी है?’’ बाबा ने कहा कि 80 साल। कबीर ने फिर पूछा। उन्होंने फिर से कहा, ‘‘80 साल।’’ 
 
कुछ समय बाद कबीर और वह व्यक्ति पहाड़ी से उतर आए। नीचे पहुंचकर कबीर ने आवाज लगाई, ‘‘बाबा नीचे आ सकते हैं, कुछ पूछना रह गया था?’’ बाबा नीचे उतरकर आए।  
 
कबीर ने कहा, ‘‘आपकी आयु पुन: पूछनी थी।’’  
 
बाबा ने कहा कि 80 साल और वापस चले गए।  यह नजारा देखकर वह व्यक्ति दंग रह गया।  
 
कबीर उससे बोले, ‘‘यदि संत बनना हो तो इसी तरह धैर्यवान और क्षमाशील बनना। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम जीवन में क्या-क्या बनना चाहते हैं, बल्कि जरूरी यह है कि हम उसके लिए क्या-क्या त्याग करना चाहते हैं।’’
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