संसारिक दायित्व निभाते हुए मन खिन्न रहता है, ऐसे बच सकते हैं इस फीलिंग से

Saturday, Apr 23, 2016 - 03:39 PM (IST)

एक गधा बेहद उदास रहता था। उसे इस बात का मलाल था कि उसका मालिक रोज उस पर कपड़ों की भारी-भरकम गठरियां लादकर तालाब पर धोने के लिए ले जाता है। धुलने के बाद कपड़े और भारी हो जाते हैं। उन्हें लादकर उसे वापस घर तक भी लाना पड़ता है। मालिक गधे का पूरा ध्यान रखता था, उसे खाने के लिए हरी-हरी घास देता था। इसके बावजूद गधे का मन खिन्न ही रहता।

एक बार गधा पीठ पर कपड़ों की भारी गठरी लादे चला जा रहा था। तभी वहां से एक महर्षि गुजरे। उन्होंने देखा कि गधे के पास ही एक चींटी भी चीनी की डली लेकर चली जा रही है। उन्होंने झुककर चींटी को प्रणाम किया। यह देख गधे को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने महर्षि से चींटी को प्रणाम करने का कारण पूछा। 

महर्षि बोले, ‘‘सुनो, यह चींटी कर्मयोगी है। यह निष्ठापूर्वक अपना काम करती है। जरा देखो, यह अपने मुंह में चीनी की कितनी बड़ी डली लिए जा रही है। यही देखकर मैंने इसकी निष्ठा को नमन किया।’’ 

गधे को यह अच्छा नहीं लगा। उसने शिकायती स्वर में महर्षि से कहा, ‘‘यह तो अन्याय है। चींटी से कई गुना ज्यादा बोझ तो मैंने उठा रखा है। मुझे ज्यादा बड़ा कर्मयोगी मानना चाहिए।’’

महर्षि तनिक मुस्कुराए और बोले, ‘‘तुम्हें यह सोचने से पहले चींटी और अपने बीच आकार का अंतर भी ध्यान रखना चाहिए। देखो, तुमसे कितनी छोटी चींटी ने अपने आकार के बराबर ही चीनी की डली अपने मुंह में उठा रखी है। वह अपने काम को खुशी-खुशी कर रही है, जबकि तुम्हारे चेहरे पर काम को बोझ समझकर करने का तनाव नजर आ रहा है। काम को भार समझकर करने वाला कर्मयोगी नहीं कहलाता। सच्चा कर्मयोगी तो वह है जो किसी भी काम को अपना दायित्व समझ कर उसे प्रसन्नतापूर्वक पूरा करता है।’’

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