अनुपयोगी वस्तुओं से हुई प्राणों की रक्षा, आप भी तो नहीं कर रहे यह गलती

punjabkesari.in Monday, Feb 01, 2016 - 02:02 PM (IST)

राजा दरबार में बैठा सभासदों से राज्य की उपयोगी और अनुपयोगी वस्तुओं पर चर्चा कर रहा था। उसका ध्यान जीव-जंतुओं की ओर भी गया। उसने मंत्री को आदेश दिया कि वे पूरे राज्य में कर्मचारी दल भेज कर पता लगाएं कि राज्य में ऐसे कौन से जीव-जंतु हैं जो अनुपयोगी हैं। 

कर्मचारियों के दल राज्य के सभी भागों में गए, चप्पा-चप्पा खोजा और कुछ माह बाद मंत्री को अपनी रिपोर्ट दे दी। मंत्री ने कर्मचारियों की रिपोर्ट के अनुसार राजा को सूचना प्रेषित कर दी कि राज्य तो क्या संसार भर में यदि कोई अनुपयोगी जीव हैं तो वे जंगली मक्खी और मकड़ी हैं। इनका कहीं भी सुनिश्चित होना नहीं पाया गया है। राजा ने मंत्री को आदेश दिया कि यदि ऐसा है तो उन्हें खत्म करने का अभियान आरंभ कर दिया जाए। 

इसी दौरान राज्य पर पड़ोसी राजा ने आक्रमण कर दिया। भयंकर युद्ध हुआ, आक्रमणकारी शक्तिशाली थे अत: राजा हार गया। विजेता राज्य के सैनिक पराजित राजा को पकडऩे के लिए उसका पीछा करने लगे, राजा ने राजपाट तो खो ही दिया था, जान बचाने के भी लाले पड़ गए। 

वह जंगल की ओर निकल गया। दो-तीन दिन निरंतर भागते रहने से वह बुरी तरह थक गया। भूख-प्यास से भी परेशान था। थकान से हाल बुरा था। वह एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगा। कुछ ही देर में नींद ने आ घेरा। घड़ी भर की नींद ली होगी कि जंगली मक्खी उसकी नाक पर आ बैठी और डंक मारा। वह दर्द से जाग उठा, मक्खी को उसने उड़ते हुए देखा। तभी उसे आसपास सरसराहट सुनाई दी जो विजेता राजा के सैनिकों की थी। वे राजा की खोज में इधर आ निकले। राजा सचेत हुआ और पुन: भाग कर एक गुफा में जा छिपा। 

राजा के गुफा में जाने के बाद कुछ मकडिय़ां भी गुफा की ओर आ गईं। उन्होंने गुफा के मुंह पर ही जाला बुन दिया। इतने में विजेता राजा के सैनिक भी गुफा के निकट पहुंच गए। गुफा के इर्द-गिर्द जाला देख कर परस्पर कहने लगे-आगे चलो। गुफा में आया होता तो क्या यह जाला छिन्न-भिन्न न हुआ होता? गुफा में छिपा राजा उनकी बात सुन रहा था। उस समय उसे यह बात भी समझ में आ गई कि संसार में कोई प्राणी या वस्तु बेकार नहीं है। सबका अपना महत्व और उपयोगिता है। राजा को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ। यदि राज्य की बेहबूदी और मजबूती के उपाय करता तो आज यह दिन न देखना पड़ता। उसी मक्खी और मकड़ी ने मेरे प्राणों की रक्षा की, जिन्हें खत्म करने के लिए मैं उतावला हो उठा था।

—प्रशांत अग्रवाल


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