गृहस्थ या संन्यास, दोनों में से कौन सा है श्रेष्ठ मार्ग

Friday, Sep 30, 2016 - 10:53 AM (IST)

एक ब्राह्मण युवक 25 वर्ष की आयु में धर्मशास्त्रों की विद्या प्राप्त करने के पश्चात इस सोच में था कि वह जीवन में कौन-सा मार्ग पकड़े जिससे परम लक्ष्य प्राप्त हो। धर्मग्रंथों के गूढ़ अध्ययन-मनन से जीवन एवं जगत की नश्वरता का विचार उसके मन में घर कर चुका था। कई विद्याओं में दक्षता प्राप्त करने के बावजूद वह इस बारे में कोई निश्चय नहीं कर पा रहा था। बहुत सोच-विचार करने पर भी जब वह किसी नतीजे पर न पहुंच सका तो हार कर एक दिन भरी दोपहरी में कबीर साहब के चरणों में जा पहुंचा।


कबीर साहब उस वक्त अपने काम में व्यस्त थे। युवक ने अपनी समस्या उनके आगे रखी और बोला, ‘‘मैं तय नहीं कर पा रहा कि कौन-सा रास्ता पकड़ूं, गृहस्थ या संन्यास? बहुत सोच-विचार किया मगर कुछ समझ नहीं आया। मेरी अक्ल काम नहीं कर रही। अब आप ही बताएं।’’


कबीर साहब ने ब्राह्मण युवक का सवाल तो सुना मगर कोई जवाब नहीं दिया। वह बराबर अपने काम में लगे रहे। युवक ने अपना सवाल दोहराया मगर कबीर साहब अपने काम में लगे रहे और युवक का सवाल फिर अनसुना कर दिया। थोड़ी देर बाद उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज दी, ‘‘देखना, मेरा ताना साफ करने का झब्बा कहां है?’’


वह झब्बा ढूंढने लगीं। थोड़ी देर तलाश करने पर भी कबीर साहब की पत्नी, माता लोई को झब्बा न मिला तो कबीर साहब ने आवाज दी, ‘‘अंधेरा है, चिराग जला कर तलाश करो।’’ 


वह चिराग तलाश करने लगीं। थोड़ी देर बाद कबीर साहब ने अपनी लड़की और लड़के को बुला कर हुक्म दिया, ‘‘तुम भी झब्बा तलाश करो।’’ 


वे भी चिराग लेकर झब्बा तलाश करने लगे। इतने में कबीर साहब ने कहा, ‘‘अरे झब्बा तो यहां मेरे कंधे पर पड़ा है। तुम लोग जाकर अपना-अपना काम करो।’’ 


ब्राह्मण युवक ने अब एक बार फिर अपना सवाल दोहराया तो कबीर साहब बोले, ‘‘तुम्हारे सवाल का जवाब तो मैं दे चुका। तुम समझे नहीं?’’


नौजवान ने कहा,‘‘नहीं, जरा खोल कर समझाने का कष्ट करें।’’


कबीर साहब ने कहा कि देखो भई, गृहस्थ बनना चाहते हो तो ऐसे गृहस्थ बनो कि तुम्हारे कहने पर घर वाले रात को दिन और दिन को रात मानने को तैयार हों, अन्यथा रोज के झगड़ों का कोई फायदा नहीं। कबीर साहब बोले, ‘‘अगर साधु बनना चाहते हो तो इतना धैर्य हृदय में जरूर होना चाहिए कि खुशी-खुशी कोई भी मुसीबत बर्दाश्त कर सको।’’ 


उन्होंने कहा, ‘‘धैर्य के बगैर शांति नहीं मिलती और क्षमा शांति का मूल है। रास्ता कोई भी हो, जीवन में परम लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हमारा अपने रास्ते पर भरोसा होना चाहिए। रास्ता वही भटकते हैं जिन्हें स्वयं पर भरोसा नहीं होता। परम लक्ष्य के लिए लगातार भरोसा करके धैर्यपूर्वक उसकी ओर बढऩा होता है।’’

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