शादी में आए शगुन का इस्तेमाल हुआ कुछ इस तरह, बन गया मिसाल

Monday, Jan 11, 2016 - 09:23 AM (IST)

महात्मा गांधी के दादा उत्तम गांधी को लोग ‘ओता गांधी’ के नाम से पुकारते थे। वह पोरबंदर के राजा खिमजी के दीवान थे। उनके दोनों बेटों का विवाह धूमधाम से सम्पन्न हुआ था। सारे गांव को भोज का निमंत्रण दिया गया था। उस समय के रिवाज के अनुसार जब पूरे गांव को न्यौता दिया जाता था, तब गांव के प्रवेश द्वार पर अक्षत-कुमकुम लगा कर घोषणा की जाती थी।
 
भोज में हर जाति के गरीब और अमीर आते थे। बारात  की अगवानी स्वयं राजा साहब ने की। ओता गांधी राजा के दीवान होने के साथ-साथ  ईमानदार, खुशमिजाज और परोपकारी व्यक्ति थे। वे राज्य के सभी लोगों का बराबर ध्यान रखते थे। इसलिए बेटे की शादी में शामिल होने वाले लोगों ने यथाशक्ति नजराना भी दिया था। विवाह सम्पन्न होने के बाद जब हिसाब-किताब हुआ तो पता चला कि खर्च से ज्यादा रकम उपहार में आई थी। 
 
‘ओता गांधी’ परेशान हो गए कि इन फालतू पैसों का करें तो क्या करें। उपहार में मिली रकम पर उनका हक था लेकिन उन्होंने सोचा कि हम राज्य के दीवान हैं इसीलिए लोगों ने अपनी सामर्थ्य से ज्यादा उपहार में दे दिया। इसलिए उन्होंने सारी रकम राजा  को समर्पित करते हुए कहा कि आपकी प्रजा से ही यह सब प्राप्त हुआ है। यह आपकी सम्पत्ति है। आप जैसा चाहें इसका उपयोग करें। 
 
राजा ने कहा ‘‘यह रकम आपको लोगों ने उपहार में दी है। इस पर आप का हक है, हमारा नहीं। इसका उपयोग भी आप ही को करना है।’’
 
लेकिन ओता गांधी को यह बात स्वीकार नहीं थी। बहुत सोच-विचार कर ओता ने राजा से कहा यह रकम न हमारी है और न आपकी। यह राज्य के गरीब किसानों के परिश्रम की कमाई  है इसलिए इस पर हक भी राज्य के गरीब किसानों का ही है। क्यों नहीं इसे सूखाग्रस्त इलाके के किसानों को दे दिया जाए।’’
 

दीवान के निर्णय से राजा बहुत खुश हुए। उपहार से आई अतिरिक्त रकम को किसानों के सहायतार्थ बंटवा दिया गया। 

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