सत्य घटना: वैश्या बनी वैष्णवी और अब बड़े-बड़े विद्वान भी आते हैं उनके दर्शन करने

punjabkesari.in Saturday, Sep 26, 2015 - 10:56 AM (IST)

भगवान श्रीकृष्ण के एक महान भक्त थे श्रील हरिदास ठाकुर। उस समय श्रील हरिदास ठाकुर जी ने किशोर अवस्था को पार कर यौवन में प्रवेश किया था। बेनोपाल के जंगलों में श्रील हरिदास ठाकुर एक निर्जन स्थान में कुटिया में रहते व प्रतिदिन तुलसी सेवा व तीन लाख हरिनाम करते तथा भोजन करने के लिए ब्राह्मणों के घर जाते।
 
आपका भजन देखकर, सब आपका सम्मान करते थे और इसी कारण संकीर्तन पिता श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने आपको अपने संकीर्तन आन्दोलन का आचार्य बनाया था। वहीं उस इलाके में रामचन्द्र खान नाम का एक जमींदार रहता था। उसे श्रील हरिदास जी की प्रतिष्ठा देखकर अच्छा नहीं लगा और वो आपसे जलने लगा। वह आप में दोष ढूंढने लगा। किन्तु जब वो आपमें कोई दोष नहीं दिखा पाया तो उसने वेश्याओं को बुलाया ताकि वो उनके द्वारा श्रील हरिदास जी का चरित्र भ्रष्ट कर सके।
 
उसने, उनमें से सबसे सुन्दर लक्षहीरा को इस काम के लिए चुना। अपूर्व सुन्दरी लक्षहीरा ने तीन दिन में ही श्रील हरिदास के पतन का विश्वास दिलाया व अकेले ही चल पड़ी। उसने कहा कि एक बार उसका आप से संग हो जाए तभी सिपाही ले जाने चाहिए, पकड़ने के लिए।
 
रात के समय सज-धज कर वेश्या कुटिया में पहुंची। कुटिया के बाहर तुलसी जी को देखकर हिन्दु संस्कारवशतः तुलसी को प्रणाम कर श्रील हरिदास के पास अन्दर चली गई। श्रील हरिदास ठाकुर को आकर्षित करने के लिए उसने जितने प्रकार की स्त्री सुलभ चेष्टाएं होती हैं, सब की व ठाकुर से बहुत मीठे शब्दों में बोली, "ठाकुर, तुम बहुत सुन्दर हो। युवा हो। आपको देख कौन नारी अपना धैर्य रख सकती है? मैं आप पर मोहित हूं और आपके संग के लिए ही यहां आई हूं। अगर आपने मेरी इच्छा पूरी नहीं की, तो मैं आत्म-हत्या कर लूंगी।"
 
श्रील हरिदास ठाकुर बोले,"मैंने संख्या पूर्वक हरिनाम का व्रत शुरु किया है। व्रत पूरा होते ही मैं आपकी इच्छा पूरी करूंगा।"
 
वेश्या वहीं बैठ गई और व्रत पूरा होने का इंतज़ार करने लगी। इधर हरिनाम करते- करते सुबह हो गई तो वेश्या थोड़ा घबरा कर वहां से चल पड़ी। वापिस आकर उसने रामचन्द्र खान को सारी बात बताई।
 
अगली रात को वेश्या फिर श्रील हरिदास जी की कुटिया में पहुंची। उसने तुलसी जी को प्रणाम किया और भीतर गई। श्रील हरिदास जी ने उसे आया देख कहा,"कल आपकी इच्छा मैं पूरी नहीं कर पाया, किन्तु हरिनाम संकीर्तन संख्या व्रत पूरा होते ही, आज अवश्य आपकी इच्छा पूर्ण कर दूंगा।"
 
लक्षहीरा इस बार शान्त नहीं बैठी। श्रील हरिदास को आकर्षित करने के लिए उसने मुनियों का भी धैर्य तोड़ देने वाले स्त्री-भावों को प्रकट किया, किन्तु श्रीलहरिदास ठाकुर जी निर्विकार भाव से हरिनाम करते रहे। कुछ होता न देख, वो श्रील हरिदास ठाकुर के पास बैठ कर सारी रात आपके मुख से हरिनाम संकीर्तन सुनती रही, किन्तु बीच-बीच में अपनी असफल चेष्टाएं भी करती रही। 
 
रात्रि समाप्त होते देख, वेश्या जब ज्यादा उतावली हो गई तो श्रील हरिदास जी बोले," मैंने एक महीने में एक करोड़ हरिनाम लेने का व्रत लिया हुआ है, वह बस समाप्त ही होने वाला है। कल अवश्य ही व्रत पूरा हो जाएगा, तब मैं निश्चिन्त होकर आपका संग करूंगा।"
 
वेश्या लौट गई। तीसरी रात फिर आई और कुटिया के बाहर तुलसी जी को प्रणाम कर अन्दर चली गई। वो श्रील हरिदास ठाकुर के पास बैठ कर व्रत पूरा होने का इंतज़ार करने लगी। इतने दिन लम्बे समय से हरिनाम सुनते-सुनते उसके मन का मैलापन दूर हो गया। उसे अपने कीए पर पश्चाताप होने लगा। सुबह होते ही उसने श्रील हरिदास ठाकुर के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी और रामचन्द्र खान के उद्देश्य के बारे में बता दिया।
 
श्रील हरिदास ठाकुर जी बोले, "मैं तो उसी दिन यहां से चला जाता जिस दिन आप यहां आई थी केवल आपके कल्याण की चिन्ता के कारण मैंने तीन दिन प्रतीक्षा की।"
 
वेश्या ने अपने कल्याण की प्रार्थना की तो श्रील हरिदास ठाकुर जी ने उसे कहा,"पाप द्वारा जोड़ा गया सारा धन ब्राह्मणों को दान कर दें, एक कुटिया में निवास कर हरिनाम करें और तुलसी जी की सेवा करें।" 
 
वेश्या ने गुरुदेव की आज्ञा के अनुसार सारा धन ब्रह्मणों को दान कर दिया, मस्तक मुण्डन करके, एक वस्त्र पहन कर, कुटिया में आ गई और श्रील हरिदास ठाकुर जी ने उनसे कहा कि आप इस कुटिया में रहो, नित्यप्रति तुलसी जी की सेवा करो तथा श्रद्धा के साथ हरे कृष्ण महामन्त्र करो। इतना कहकर श्रील हरिदास ठाकुर उस स्थान से चले गए। 
 
श्रील हरिदास ठाकुर जी के आशीर्वाद से वह अपनी कठिन साधना के द्वारा प्रतिदिन श्रील हरिदास ठाकुर जी की ही तरह तीन लाख हरिनाम करने लगी। निरन्तर नाम करने व तुलसी जी की सेवा करने के फल से उसके अन्दर संसार के भोग-विलास से स्वभाविक वैराग्य उत्पन्न हो गया। यही नहीं भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से उसके हृदय में शुद्ध भगवद प्रेम प्रकाशित हो गया।
 
श्रीचैतन्य चरितामृत में लिखा है कि लक्षहीरा वेश्या, एक ऐसी परम-वैष्णवी बन गई कि बड़े-बड़े वैष्णव भी उनके दर्शन करने व उनसे हरिचर्चा के लिए उनके पास आया करते थे।
 
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज

bhakti.vichar.vishnu@gmail.com 


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