पारिजात फूल के स्पर्श से हाथी भगवान विष्णु के समान तेजस्वी हो गया और फिर...

punjabkesari.in Sunday, Sep 20, 2015 - 10:28 AM (IST)

वर्तमान समय में हर व्यक्ति चाहता है कि देवी लक्ष्मी की कृपा उस पर बनी रहे क्योंकि जिस पर भी देवी लक्ष्मी की कृपा होती है उसके पास जीवन की हर सुख-सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं। जीवन का हर सुख उसे प्राप्त होता है। यही कारण है कि लोग देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए नित नए उपाय करते हैं। शास्त्रों में देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के अनेक उपाय व रूठने के कई कारण बताए गए हैं। 

शास्त्रानुसार शिव के दर्शनों हेतु दुर्वासा ऋषि कैलाश जा रहे थे। मार्ग में उन्हें देवराज इंद्र मिले। इंद्र ने दुर्वासा को प्रणाम किया तब दुर्वासा ने इन्द्र को पारिजात पुष्प प्रदान किया। इंद्रासन के गर्व में चूर इंद्र ने उस पुष्प को ऐरावत हाथी के मस्तक पर रख दिया। पारिजात का स्पर्श होते ही ऐरावत विष्णु के समान तेजस्वी हो गया। उसने इंद्र का परित्याग कर दिया और उस दिव्य पुष्प को कुचलते हुए वन की ओर चला गया।

इससे दुर्वासा ने क्रोध वश इन्द्र को ‘श्री’ हीन होने का श्राप दे दिया। फलस्वरूप लक्ष्मी उसी क्षण स्वर्ग छोड़कर अदृश्य हो गईं। लक्ष्मी के चले जाने से इंद्र निर्बल व श्रीहीन हो गए। उनका वैभव लुप्त हो गया। बलहीन इंद्र पर दैत्यों ने आक्रमण कर स्वर्ग से निष्काषित कर दिया इससे देवगण बलहीन, लक्ष्मीहीन, ऐश्वर्यहीन हो गए। 

महर्षि दुर्वासा के श्राप के प्रभाव से लक्ष्मीहीन इन्द्र दैत्यों के राजा बलि से युद्ध में हार गए। जिसके परिणास्वरूप बलि ने तीनों लोकों पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। हताश और निराश हुए देवता ब्रह्मा जी को साथ लेकर श्री हरि के आश्रय में गए और उन से अपना स्वर्गलोक वापिस पाने के लिए प्रार्थना करने लगे। 

श्री हरि ने कहा," आप सभी देवतागण दैत्यों से सुलह कर लें और उनका सहयोग पाकर मंदराचल को मथानी तथा वासुकी नाग को रस्सी बनाकर क्षीरसागर का मंथन करें। समुद्र मंथन से जो अमृत प्राप्त होगा उसे पिलाकर मैं आप सभी देवताओं को अजर अमर कर दूंगा तत्पश्चात ही देवता दैत्यों का विनाश करके पुनः स्वर्ग का अधिपत्य पा सकेंगे।"

समुद्र मंथन के उपरांत भगवान ने मोहिनी रूप धर कर देवताओं को अमृत पिलाया। जिससे देवता अमर हो गए और उन्हें अपना स्वर्ग वापस मिल गया।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com


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