इस जन्म में ऐसे काम करने वाले अगले जन्म में बनते हैं गधे

Thursday, Sep 03, 2015 - 09:48 AM (IST)

मनुष्य जीवन 84 लाख योनियां भुगतने के उपरांत मिलता है। मानव जीवन में ही नाम सिमरण संभव है इसलिए देवता भी इस जीवन को तरसते हैं। जिस तरह हम किसी बैंक में पैसे जमा करवाते हैं तो वो हमें सूद समेत वापिस मिलते हैं उसी तरह जब हम वर्तमान जन्म में कोई धर्म-कर्म का कार्य करते हैं तो उसका पुण्य हमें सूद समेत अगले जन्म में वापिस मिलता है। आईए एक धार्मिक कथा से जानें कैसे मिलता है इस जन्म में किए गए कामों का फल अगले जन्म में।
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एक विद्वान पंडित थे वे हर रोज गंगा किनारे भागवत पुराण का पाठ करते। बहुत से श्रोता उनकी कथा का रसपान करने आते। गंगा किनारे एक घड़ियाल का बसेरा था। जब भी भागवत कथा होती तो वो बड़े चाव से सुनता। एक दिन उसने पंडित जी से कहा," कृपा आप मुझे संपूर्ण भागवत कथा का ज्ञान दें। इसके बदले में मैं आपको सौ मोतियों की दक्षिणा दूंगा।"
 
पंडित जी मान गए। वह उसे हर रोज कथा सुनाने लगे। कथा के समापन पर घड़ियाल ने उन्हें बहुत सुंदर और मूल्यवान हार भेंट किया। पंडित जी बहुत प्रसन्न हुए। घड़ियाल ने पंडित जी से प्रार्थना करी की अगर वह उसे त्रिवेणी संगम तक पहुंचा दें तो वह इससे भी अधिक बहुमूल्य भेंट उन्हें अर्पित करेगा। पंडित जी ने छकड़े का प्रबंध किया और घड़ियाल को त्रिवेणी पहुंचा दिया। घड़ियाल ने उन्हें बहुमूल्य भेंट दी और व्यंग्यात्मक हंसी हंसने लगा। 
 
पंडित जी को बड़ा अश्चर्य हुआ की यह मुझे नमन करने की बजाय मुझ पर व्यंग्यात्मक हंसी हंस रहा है। पंडित जी ने पूछा, "तुम मुझ पर ऐसे क्यों हंस रहे हो?"
 
घड़ियाल ने कहा, "अपने पड़ोसी के धोबी के गधे से इसका कारण पूछना?"
 
पंडित जी भागे-भागे उस गधे के पास गए और उसे अपने और घड़ियाल की सारी कहानी के बाद उससे हंसने का कारण पूछा।
 
गधा बोला," पूर्व जन्म में मैं विख्यात सम्राट का अंगरक्षक था। एक दिन विहार करते-करते वह त्रिवेणी तट पर आए, तो उस स्थान पर वह मुग्ध हो गए। उन्होंने अपना राज्य त्याग कर वहीं बसने का निर्णय किया। मुझसे कहा, अब मैं राजा नहीं रहा चाहो तो मेरे साथ रहकर प्रभु भक्ति में तुम भी अपना जीवन व्यतित कर लो अन्यथा एक सहस्र मुद्रा लेकर वापिस लौट जाओ। मैं धन के लोभ में आ गया और मुद्राएं लेकर लौट आया। सम्राट को स्वर्ग प्राप्त हुआ। मैंने धन की चाह में बहुत से गलत काम किए और अपने धन को बढ़ाने के चक्कर में सही गलत भी भुल गया इसलिए आज मैं गधे की योनि में पड़ा कष्ट भोग रहा हूं।"  

गधे के मुख से ऐसे वचन सुनकर पंडित जी की रूह कांप गई। वह उल्टे पांव त्रिवेणी तट पर घड़ियाल के पास गए और उसे अपना गुरु बनाकर आत्मकल्याण के लिए साधना करने लगे। 

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