आपके आस-पास ही रहते हैं भगवान, ये हैं वो चार स्थान

punjabkesari.in Tuesday, Sep 01, 2015 - 12:14 PM (IST)

प्रत्येक जीव को अपना तन-मन और जितना संभव हो उतना धन भी भगवान श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति में लगाए रखना चाहिए। कई बार अनजाने में भगवत सेवा में कोई ऐसी भुल हो जाती है की प्रभु हमसे रूठ जाते हैं और हमारा साथ छोड़ देते हैं। महाभारत के उद्योगपर्व में चार ऐसी चीजें बताई गई हैं जिनका अपने जीवन में अनुसरण करने से भगवान सदा खुश रहते हैं और उनका आशीर्वाद भी सदा बना रहता है। जिस व्यक्ति पर भगवान अपनी कृपा बनाए रखेंगे उसका तो कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।
महाभारत के अनुसार-
यतः सत्यं यतो धर्मो, यर्तो ह्रीरार्जवं यतः।
ततो भवति गोविन्दो यतः कृष्णस्ततो जयः।।
 
अर्थात- जहां सत्य, धर्म, लज्जा (शर्म) और सरलता होती है, वहीं पर भगवान श्रीकृष्णचन्द्र निवास करते हैं।
 
श्री कृष्ण सत्य में प्रतिष्ठित हैं और सत्य से भी सत्य है। वह क्षमाशील होने पर भी जरूरत होने पर अधर्म एवं अन्याय का साथ देने वाले पापाचारियों के विरुद्ध पाषाण हृदय होकर दंड देते हैं वह स्वजनप्रिय थे पर लोकहित के लिए स्वजनों का विनाश करने में भी कुंठित नहीं होते थे। कंस उनका मामा था। जैसे पांडव उनके भाई थे, वैसे ही शिशुपाल भी था। दोनों ही उनकी बुआ के बेटे थे लेकिन उन्होंने मामा और भाई का लिहाज न करके दोनों को ही दंड दिया। पांडवों ने किसी भी स्थिति में अपने धर्म का त्याग नहीं किया इसलिए उन पर भगवान की कृपा हमेशा बनी रही।
 
श्रीकृष्ण जी की धर्म के प्रति तत्परता का परिचय पग-पग पर मिलता है। ठौर-ठौर पर उनकी दयालुता और प्रेम का परिचय मिलता है। श्रीकृष्ण जी महाभारत युद्ध को रोकने के लिए तथा शांति स्थापित करने के लिए दृढ़ता के साथ प्रयत्न करते रहे। भगवान का समस्त प्राणी जगत के प्रति दया और प्रेम जग विदित है। इसका पता गोवर्धन पूजा से लगता है।
 
जो मनुष्य अपना कर्म करते हुए नियमित रुप से प्रभु का स्मरण और जाप करता है वो ही उनका सबसे प्रिय भक्त होता है। भगवान के तौर-तरीके भिन्न हैं परन्तु वे हर उससे प्रेम करते हैं जो उनके प्रति निष्ठावान हैं। भगवान के भक्त कभी गरीब नहीं हो सकते।
 

कुछ अज्ञानी लोग सुदामा को दरिद्री बोलते हैं तथा कुछ भिखारी। वास्तव में सुदामा कथामृत का दान करके अपना जीवन यापन करते थे। ब्राह्मणों के लिए भीख मांगना उचित नहीं है। वह तो श्री विष्णु के प्रिय हैं। अपनी पत्नी के कहने पर वह द्वारिका चले तो गए परंतु अपने मित्र से कुछ न मांगा। ठाकुर जी ने स्वयं उन्हें समस्त सुखों और ऐश्वर्य का स्वामी बना दिया। 


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