j&K : स्पष्टीकरण भवन बना राजभवन, शांत करने के बजाय विवादों को दे रहे तूल

Monday, Dec 03, 2018 - 05:10 PM (IST)

 जम्मू (बलराम): जम्मू-कश्मीर के राजभवन को यदि स्पष्टीकरण भवन कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि नए राज्यपाल सत्यपाल मलिक की नियुक्ति के बाद तो स्पष्टीकरणों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है और आजादी के बाद तीन माह के अल्प कालखंड में किसी राजभवन द्वारा शायद ही इतने स्पष्टीकरण जारी किए गए हों। इससे भी दिलचस्प बात यह है कि राजभवन द्वारा जारी किए जा रहे स्पष्टीकरण संबंधित विवादों को शांत करने के बजाय हवा देने का ही काम कर रहे हैं। इस पर सवाल तो यहां तक उठ रहे हैं कि कहीं यह सब सुर्खियां बटोरने के लिए तो नहीं हो रहा। 


देखा जाए तो राज्यपाल सत्यपाल मलिक के साथ विवादों का सिलसिला 23 अगस्त को उनके शपथ ग्रहण समारोह से पहले ही शुरू हो गया था, जब उन्होंने एक निजी विमान के जरिए श्रीनगर में पदार्पण किया, लेकिन यह विवाद ज्यादा तूल नहीं पकड़ पाया। शपथ ग्रहण के बाद तो उन्होंने विवादित बयानों की बाढ़ सी लगा दी और हर दिन सुर्खियों में बने रहे। फिर जब उन्होंने कश्मीर आधारित मुख्यधारा की पार्टियों नैशनल कांफ्रैंस और पी.डी.पी. द्वारा चुनाव बहिष्कार की धमकी दिए जाने के बाद शहरी स्थानीय निकायों एवं पंचायतों के चुनाव करवाने की साहसिक घोषणा की तो उनका दूरदर्शी व्यक्तित्व उभर कर सामने आया। हालांकि, शहरी निकाय चुनावों को लेकर विभिन्न नेताओं द्वारा की जा रही चौतरफा बयानबाजी के बीच एक साक्षात्कार के दौरान राज्यपाल ने भी कथित तौर पर श्रीनगर के मेयर के लिए एक व्यक्ति विशेष की तरफ इशारा करके खुद को विवादों में डाल दिया था, बाद में राजभवन को स्पष्टीकरण जारी करके विवाद शांत करना पड़ा। 

 

धार्मिक ग्रंथों को लागू करने का विवाद
इसी प्रकार, धार्मिक ग्रंथों को लागू करने से लेकर कई अन्य मुद्दों पर भी विवाद बने, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में भवन निर्माण की मंजूरी को लेकर राज्य प्रशासनिक परिषद द्वारा लिए गए निर्णय को लेकर संभावित विवाद तो होने से पहले ही रुक गया, क्योंकि परिषद द्वारा यह निर्णय प्रकाशित होने से पहले ही इसे निरस्त कर दिया गया। चंूकि, राज्य में राज्यपाल शासन लागू है, इसलिए वित्त एवं अन्य विभागों के स्पष्टीकरण भी राजभवन के खाते में डाले जा सकते हैं।  

 

विधानसभा भंग करने पर तो लग गई स्पष्टीकरणों की झड़ी
निस्संदेह, राज्य विधानसभा को भंग करना राज्यपाल का महत्वपूर्ण निर्णय था, लेकिन जिस तरह आनन-फानन में यह निर्णय लिया गया, उससे कहीं न कहीं राज्यपाल की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में आ जाती है। शायद इसीलिए राजभवन को स्पष्टीकरणों की झड़ी सी लगानी पड़ी, लेकिन इसके बावजूद कई यक्ष प्रश्न अभी भी खड़े हैं जिन्होंने केंद्र सरकार विरोधी पार्टियों को अपनी राजनीति चमकाने का खूब मौका दिया है। 

खड़े होते हैं यह सवाल
सवाल यह भी है कि जब राज्यपाल के पास पी.डी.पी. अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का फैक्स संदेश तक रिसीव करने के लिए स्टाफ नहीं था और उन्होंने खुद भी कहा कि ईद के कारण उनका पूरा स्टाफ छुट्टी पर था तो रात को पहले महबूबा और फिर सज्जाद गनी लोन द्वारा ट्वीट करके सरकार बनाने का दावा पेश करने के बाद मचे राजनीतिक तूफान के चलते कुछ ही मिनट में राज्यपाल के पास प्रधान सचिव उमंग नरूला से लेकर विधानसभा भंग करने का आदेश तैयार करने वाला स्टाफ कहां से उपलब्ध हो गया? फिर राज्यपाल ने कहा कि यदि महबूबा का पत्र मिल भी जाता, वह तब भी विधानसभा को भंग करने का निर्णय ही लेते, लेकिन यह निर्णय ईद की छुट्टी के दिन सरकार बनाने के दावों के बाद ही क्यों लिया गया? फिर राज्यपाल ने कहा कि ईद इसके लिए मुबारक दिन था तो उन्होंने ईद के दिन ही यह निर्णय लेने में रात के साढ़े आठ क्यों बजा दिया? इसके अलावा राज्यपाल ने प्रैस को जारी अपने संदेश में विधानसभा भंग करने के विधायकों की खरीद-फरोख्त समेत जो कारण गिनाए, वे खुद या तो सवाल खड़े करते हैं या जांच की मांग करते हैं।
    

 

स्वास्थ्य बीमा घोटाले में रसूखदार अफसर को बचाने के प्रयास तेज
राज्यपाल ने तमाम सरकारी एवं अद्र्धसरकारी कर्मचारियों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना की घोषणा की तो अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस इंश्योरैंस का इसका जिम्मा सौंपे जाने से नया विवाद खड़ा हो गया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस पर ट्वीट करके इस विवाद को और हवा दे दी। पहले तो राजभवन द्वारा स्पष्टीकरण जारी करके राज्यवासियों विशेष तौर पर कर्मचारियों को यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया गया कि यह योजना न केवल कर्मचारियों के हित में है, बल्कि संबंधित बीमा कंपनी का चयन बाकायदा तमाम नियमों का पालन करते हुए और सही प्रक्रिया को अपनाकर पारदर्शी ढंग से किया गया है। 


आनन-फानन में दे रेह हैं स्पष्टीकरण
राजभवन की इन दलीलों के बावजूद जब विवाद बढ़ गया तो आनन-फानन में राजभवन से आए स्पष्टीकरणों के बीच कथित तौर पर 100 करोड़ रुपए के इस घोटाले की जांच का जिम्मा नवगठित एंटी क्ररप्शन ब्यूरो को सौंपने का निर्णय लिया गया। विडम्बना यह है कि पिछले काफी समय से हर सरकार में मलाईदार पदों पर रहे जिस बड़े अधिकारी की इस कथित घोटाले में संलिप्त होने की संभावना जताई जा रहा है, वह अपने पद पर काबिज है और इस जांच को प्रभावित करने में पूरी तरह सक्षम है। 
अब ताजा स्पष्टीकरण में वित्त विभाग ने कहा है कि संबंधित बीमा कंपनी को 31 दिसम्बर 2018 तक बीमा समझौता रद्द करने का नोटिस जारी किया गया है। इसी बीच, सी.वी.सी. नियमों एवं प्रक्रिया का हवाला देकर बीमा समझौता को कानूनी ढंग से उचित करार देने की कोशिशें तेज हो गई हैं। ऐसे में, यदि वह रसूखदार अफसर पाक-साफ साबित हो जाए तो राज्यपाल समेत किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए।
 
जम्मू-कश्मीर बैंक की गड़बडिय़ों पर तगड़ा वार, डिफाल्टर घबराए
राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर बैंक की तमाम गड़बडिय़ों पर तगड़ा वार किया है, जिससे बैंक के डिफाल्टर एवं उनके आका बुरी तरह घबरा गए हैं। शपथ ग्रहण के कुछ दिन बाद ही राज्यपाल ने पिछली सरकार के शासनकाल में जम्मू-कश्मीर बैंक में हुई भर्तियों में गड़बड़ी का मुद्दा उठाकर राजनीतिक हलकों में तूफान ला दिया था, लेकिन बाद में उन्होंने इस विवाद को शांत करने का प्रयास किया। इसके बाद राज्यपाल की अध्यक्षता में हुई राज्य प्रशासनिक परिषद की बैठक में जम्मू-कश्मीर बैंक को ‘सूचना का अधिकार’ अधिनियम के अंतर्गत लाने का निर्णय लिया। बहुत से लोगों विशेषकर नेताओं एवं बैंक निदेशकों के निहित स्वार्थ होने के कारण इस निर्णय पर सवाल उठने भी स्वाभाविक थे। इस पर राजभवन को यह स्पष्टीकरण जारी करके राज्य प्रशासनिक परिषद के निर्णय का बचाव करना पड़ा कि यह निर्णय केवल बैंक की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से लिया गया है, राज्य प्रशासन का बैंक की स्वायत्तता को प्रभावित करने का कोई इरादा नहीं है। बैंक संबंधित निर्णय लेने का अधिकार निदेशक मंडल के पास ही रहेगा। इसके बावजूद नैशनल कांफ्रैंस और पी.डी.पी. नेतृत्व इस मामले को लेकर सडक़ों से नई दिल्ली तक सक्रिय हो गया है, जिससे आभास मिलता है कि दाल में कुछ न कुछ काला जरूर है।
 
रोशनी एक्ट रद्द होने से भूमाफिया को ज्यादा फर्क नहीं
राज्यपाल सत्यपाल मलिक की अध्यक्षता में 28 नवम्बर को हुई राज्य प्रशासनिक परिषद की बैठक में राज्य में भूमि घोटालों की जड़ बनी रोशनी योजना से संबंधित जम्मू-कश्मीर राज्य भूमि (अधिग्रहण के लिए स्वामित्व का अधिकार) अधिनियम, 2001 को निरस्त कर दिया गया। राज्य प्रशासनिक परिषद के निर्णय ने निस्संदेह रोशनी एक्ट के तहत भविष्य में होने वाली अनियमितताओं पर रोक लगा दी, लेकिन मुख्य सवाल तो उस भूमाफिया, राजनेताओं एवं अधिकारियों का है जो अपने प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए योजना शुरू होने के शुरुआती दिनों में ही इसका लाभ उठाने में सफल रहे। अब लम्बित रहे मामले तो शायद उन लोगों के होंगे जिनकी प्रशासनिक हलकों में ज्यादा पहुंच नहीं है। इस प्रकार, परिषद के रोशनी एक्ट पर लिए गए निर्णय को अधूरा ही माना जा सकता है। वैसे भी अंकुर शर्मा बनाम राज्य सरकार नामक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पहले ही यह निर्देश देकर रोशनी एक्ट की कमर तोड़ दी थी कि रोशनी के तहत स्वामित्व अधिकार प्राप्त करने वाले लोग न तो इन जमीनों को बेच सकेंगे और न ही ऐसी जमीन पर निर्माण कार्य कर सकेंगे। 
 
शेर की तरह है राज्यपाल की कार्यशैली
राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अपने अल्प कार्यकाल में कई ऐतिहासिक निर्णय लिए जिनको लेकर कई विवाद भी हुए, लेकिन इस दौरान बैकफुट पर आकर वार करने की राज्यपाल की कार्यशैली शेर की तरह रही। राज्यपाल ने शेर के मानिन्द किसी विवाद को हावी होता देखकर कुछ कदम पीछे लिए और जैसे ही विरोधी उस मुद्दे पर नफा-नुक्सान की चर्चा में उलझते दिखे, उससे भी बड़ा निर्णय लेकर उन्हें चकित कर दिया। इस दौरान मुद्दे स्पष्ट होने से जनता का एक बड़ा वर्ग राज्यपाल के साथ खड़ा नजर आया। मामले चाहे विधानसभा भंग करने का हो, जम्मू-कश्मीर बैंक को ‘सूचना का अधिकार’ अधिनियम के अंतर्गत लाने का हो या रोशनी एक्ट को निरस्त करने का, हर मामले में जनता का एक बड़ा वर्ग राज्यपाल से संतुष्ट दिखा। ऐसे में, राज्यपाल यदि धारा 370, 35-ए, आदिवासी नीति, रोहिंगयाओं की वापसी और विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन को लेकर भी कोई ऐतिहासिक निर्णय ले लें तो किसी को ज्यादा हैरानी नहीं होनी चाहिए। 

Monika Jamwal

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