पंजाब को 52 साल बाद भी नहीं मिली अपनी राजधानी

punjabkesari.in Thursday, Nov 01, 2018 - 01:11 PM (IST)

चंडीगढ़ : वर्ष 1966 में भाषा के आधार पर बनाए गए पंजाबी सूबे को लेकर जो मुद्दे उलझे थे, आज 52 साल बाद भी बरकरार है। इन मुद्दों को सुलझाने के लिए हर साल विधानसभा के अभिभाषण में इनके बारे में एक-एक लाइन डालकर रस्म अदायगी कर दी जाती है। इसके बाद पूरा साल कभी इन मुद्दों की बात तक नहीं की जाती और न ही इन्हें सुलझाने के लिए कोई पैरवी की जाती है। 

सबसे बड़ा मसला पंजाब को उसकी राजधानी देने का ही है। भारत-पाक  विभाजन के बाद पंजाब के लिए नई राजधानी के रूप में चंडीगढ़ को विकसित किया गया, लेकिन ये आज भी यूनियन टैरेटरी के रूप में काम कर रहा है। इस वजह से एक राज्य को राजधानी होने का जो आर्थिक रूप से फायदा होता है, वह पंजाब को नहीं मिल रहा। इसी तरह का मामला पंजाबी भाषी इलाकों को पंजाब में शामिल करने का है।

अंबाला, सिरसा समेत ज्यादातर पंजाबी बोलने वाले इलाके आज भी हरियाणा का हिस्सा है, जबकि इन्हें पंजाब में शामिल करवाने के लिए 1982 में मोर्चा भी लगा और पंजाब ने पूरे 15 साल इसका संताप भी झेला। तीसरा बड़ा मसला नदी जल विवाद का है। रावी के पानी को लेकर हरियाणा और पंजाब के बीच लंबे समय से विवाद लटका हुआ है। इस पानी को हरियाणा में ले जाने के लिए एस. वाई. एल नहर का निर्माण अधर में लटका हुआ है। पंजाब यह दावा कर रहा है कि पानी का बंटवारा राइपेरियन सिद्धांत के अनुसार नहीं हुआ है। 
 


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bhavita joshi

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