पूर्व पीएम जॉनसन द्वारा कमीशन रिपोर्ट में बड़ा खुलासा, ब्रिटेन में मुट्‌ठी भर खालिस्तानी घृणा फैलाने के लिए गुरुद्वारों का कर रहे हैं इस्तेमाल

punjabkesari.in Friday, Apr 28, 2023 - 03:54 PM (IST)

जालंधर (इंट): ब्रिटेन में मुट्ठी भर खालिस्तानी चरमपंथी आक्रामक हो कर सिख समुदाय के लोगों को धमका कर अपने आंदोलन को मजबूत करना चाहते हैं। ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन द्वारा कमीशन की गई एक स्वतंत्र रिपोर्ट में ब्रिटिश सिख समुदाय के भीतर खालिस्तान समर्थक चरमपंथियों के बढ़ते प्रभाव पर चिंता जताई है। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन द्वारा बनाई गए कमीशन 'द ब्लूम रिव्यू' ने प्रधानमंत्री ऋषि सुनक से इस मुद्दे को तत्काल कार्रवाई करने की मांग की है। रिव्यू में उन गैर खालिस्तानी समर्थक सिखों की सुरक्षा का भी मुद्दा उठाया गया है जिन्हें खालिस्तानी चरमपंथी जबरन धमकाकर अपने आंदोलन में शामिल करना चाहते हैं।  

रिव्यू में कहा गया है कि मुट्ठी भर  सिख चरमपंथी समूह घृणा फैलाने के लिए गुरुद्वारों का इस्तेमाल कर रहे हैं और घृणित कार्य के लिए धर्म के नाम पर पैसा एकत्रित कर रहे हैं। रिपोर्ट में ऐसे शिविरों का भी जिक्र किया गया है जहां पर भारत में नफरत फैलाने और सिख युवाओं का ब्रेनवाश करना का मामला है। शिविर जहां कुछ युवाओं को  नफरत,आतंक और विभाजन की राह का पालन करने के लिए भर्ती करने की कोशिश की जारी है। रिपोर्ट में इस मुद्दे को हल करने के लिए सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की गई है। इसलिए ऐसे संगठनों को हमारे महान देश में काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

ब्रिटेन के प्रमुख सिख गुरुद्वारे खालिस्तानियों के संचालन में
रिपोर्ट में कहा गया है कि कि खालिस्तान आदर्शों का प्रचार स्वयं विध्वंसक नहीं है, बल्कि कुछ खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ताओं की विध्वंसक, आक्रामक और सांप्रदायिक गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। इस बात का भी जिक्र रिपोर्ट में है कि सिख युवाओं का विभाजित कर नफरत फैलाने के लिए उनका ब्रेनवाश किया जा रहा है, जिससे वास्तव में भारत दुखी है। यह भी खुलासा किया गया है कि केवल मुट्ठी भर सिख ही देश में विभाजन और घृणा पैदा कर रहे हैं, जबकि सिखों की बहुसंख्यक आबादी शांतिप्रिय है लेकिन ये मुट्ठी भर सिख इंग्लैंड में प्रमुख सिख गुरुद्वारों को नियंत्रित कर रहे हैं और यहां एकत्रित होने वाले धन का उपयोग कर रहे हैं। खालिस्तान और भारत को तोड़ने के प्रचार के लिए सोशल मीडिया और धार्मिक स्थलों का प्रयोग किया जा रहा है। यह सीधे तौर पर सोशल मीडिया पर। सभी को अपने विचार व्यक्त करने और किसी की चिंता व्यक्त करने की अनुमति है।

मानव अधिकारों की आड़ में पल रहा चरमपंथ
रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्रिटेन में गैर सिख खालिस्तानियों को चरमपंथी तत्वों द्वारा जबरदस्ती और धमकियों का सामना करना पड़ रहा है। कहा गया है कि खालिस्तान समर्थक ग्रुप मानव अधिकारों की सक्रियता की आड़ में राजनीतिक निकायों की पैरवी करके अपने प्रभाव को बढ़ाते हैं और गलत तरीके से अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि खालिस्तानियों की आक्रामकता सिख धर्म की मूल मान्यताओं के अनुरूप नहीं है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि खालिस्तानी अलगाववादी अधिकांश ब्रिटिश सिख समुदायों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। रिपोर्ट इन चरमपंथी समूहों के सिख समुदायों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव पर प्रकाश डालती है और उससे निपटने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता पर बल देती है।

रिपोर्ट में खालिस्तानी संगठनों का भी जिक्र
रिपोर्ट उन व्यक्तियों और संगठनों की भी पहचान करती है जो इस अलगाववादी एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे ही एक ग्रुप को विंबलडन के लॉर्ड सिंह से बदसलूकी से जोड़ा गया है। सार्वजनिक जीवन में एक प्रमुख सिख शख्सियत लॉर्ड सिंह का दावा है कि सिख मुद्दों पर उनके विपरीत विचार व्यक्त करने के लिए कुछ व्यक्तियों और संगठनों द्वारा उन्हें परेशान किया गया और चुप कराया गया। द ब्लूम रिव्यू के अनुसार अधिकांश ब्रिटिश सिख खालिस्तानी समूहों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले डराने और विध्वंसक तरीकों को सिख धर्म के मूल सिद्धांतों से अलग मानते हैं।  यह रिपोर्ट एक महत्वपूर्ण समय पर आई है, क्योंकि इस साल की शुरुआत में खालिस्तानी तत्वों द्वारा यू.के. में भारतीय उच्चायोग में तोड़फोड़ करने से भारत-ब्रिटेन संबंध प्रभावित हुए थे। घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय मिशन की सुरक्षा का आश्वासन दिया था।

खालिस्तान की मांग पहली बार कब उठी?
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक खालिस्तान शब्द पहली बार 1940 में सामने आया था। मुस्लिम लीग के लाहौर घोषणा पत्र के जवाब में डॉक्टर वीर सिंह भट्टी ने एक पैम्फलेट में इसका इस्तेमाल किया था। इसके बाद 1966 में भाषाई आधार पर पंजाब के 'पुनर्गठन' से पहले अकाली नेताओं ने पहली बार 60 के दशक के बीच में सिखों के लिए स्वायत्तता का मुद्दा उठाया था। 70 के दशक की शुरुआत में चरण सिंह पंछी और डॉक्टर जगजीत सिंह चौहान ने पहली बार खालिस्तान की मांग की थी। डॉक्टर जगजीत सिंह चौहान ने 70 के दशक में ब्रिटेन को बेस बनाया और अमेरिका और पाकिस्तान भी गए। 1978 में चंडीगढ़ के कुछ नौजवान सिखों ने खालिस्तान की मांग करते हुए दल खालसा का गठन किया।

वर्तमान पंजाब में खालिस्तान आंदोलन
खालिस्तान आंदोलन वर्तमान पंजाब में एक अलग संप्रभु सिख राज्य के लिये लड़ाई है। ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984) और ऑपरेशन ब्लैक थंडर (1986 एवं 1988) के बाद भारत में इस आंदोलन को दबा दिया गया था लेकिन कनाडा, ब्रिटेन एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सिख प्रवासियों की सहानुभूति और उनका समर्थन प्राप्त करके कुछ चरमपंथी इस आंदोलन को जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस आंदोलन की उत्पत्ति भारत की स्वतंत्रता और बाद में धार्मिक आधार पर हुए विभाजन के कारण हुई।  भारत और पाकिस्तान के मध्य विभाजित पंजाब प्रांत में सबसे अधिक सांप्रदायिक हिंसा हुई थी जिसके कारण लाखों लोग शरणार्थी बनने को विवश हुए थे। इस विभाजन के कारण महाराजा रणजीत सिंह के महान सिख साम्राज्य का राजधानी क्षेत्र लाहौर पाकिस्तान के नियंत्रण में चला गया, साथ ही सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी के जन्म स्थान ननकाना साहिब सहित कई पवित्र सिख स्थल भी पाकिस्तान के अधिकार क्षेत्र में चले गए।  

स्वायत्त पंजाबी सूबे की मांग
पंजाबी भाषी राज्य के निर्माण और अधिक स्वायत्तता के लिये राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत स्वतंत्रता के समय पंजाबी सूबे के आंदोलन के साथ हुई।  वर्षों के विरोध के बाद वर्ष 1966 में  पंजाब को पंजाबी सूबे की मांग को प्रतिबिंबित करने के लिए पुनर्गठित किया गया था। तत्कालीन पंजाब राज्य से हिंदी भाषी हिमाचल प्रदेश और हरियाणा को अलग राज्यों का दर्जा दिया गया था। 1973 में नए सिख-बहुल पंजाब के प्रमुख दल अकाली दल ने मांगों की एक सूची जारी की थी, जिसमें राजनीतिक मांगों के अतिरिक्त आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के तहत पंजाब से संबंधित चिन्हित क्षेत्रों की पूर्ण स्वायत्तता की भी मांग की गई थी। इसके अलावा पृथक राज्य और अलग संविधान की मांग भी की गई। जबकि अकालियों ने स्वयं बार-बार यह स्पष्ट किया कि वे भारत से अलग होने की मांग नहीं कर रहे हैं। भारत के लिये आनंदपुर साहिब प्रस्ताव गंभीर चिंता का विषय था।

भिंडरावाले और धर्म युद्ध मोर्चा
कहा जाता है कि जरनैल सिंह भिंडरावाले जो एक करिश्माई उपदेशक था, ने जल्द ही अकाली दल के नेतृत्व के विपरीत स्वयं को “सिखों की प्रामाणिक आवाज़" के रूप में स्थापित कर लिया। ऐसा माना जाता है कि कांग्रेस के राजनीतिक लाभ के लिए अकालियों के खिलाफ खड़े होने के लिये भिंडरावाले को संजय गांधी का समर्थन प्राप्त था। हालांकि 1980 के दशक तक भिंडरांवाले की शक्ति इतनी बढ़ गई थी कि वह सरकार के लिये मुसीबत बन चुका था। वर्ष 1982 में भिंडरावाले ने अकाली दल के नेतृत्त्व के समर्थन से धर्म युद्ध मोर्चा नामक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया। उसने पुलिस के साथ प्रदर्शनों और झड़पों का निर्देशन करते हुए स्वर्ण मंदिर परिसर को निवास स्थान बना लिया। यह आंदोलन पहली बार आनंदपुर साहिब प्रस्ताव में शामिल मांगों की पूर्ति के उद्देश्य से तैयार किया गया था, जिसमें राज्य की ग्रामीण सिख आबादी की चिंताओं उल्लेख किया गया था। हालांकि बढ़ते धार्मिक ध्रुवीकरण, सांप्रदायिक हिंसा और हिंदुओं के खिलाफ भिंडरावाले की कठोर बयानबाज़ी के कारण इंदिरा गांधी की सरकार ने आंदोलन को अलगाववादी घोषित कर दिया।

ऑपरेशन ब्लू स्टार और इसके परिणाम  
ऑपरेशन ब्लू स्टार 1 जून, 1984 को शुरू हुआ लेकिन इस ऑपरेशन में भिंडरावाला मारा गया और स्वर्ण मंदिर को उग्रवादियों से मुक्त कर लिया गया, हालांकि इससे दुनिया भर में सिख समुदाय के लोग भावनात्मक रूप से अत्यधिक आहत हुए। इसने खालिस्तान की मांग को भी तेज कर दिया था। अक्टूबर 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की दो सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई। इस घटनाक्रम में सबसे खराब सांप्रदायिक हिंसा और नरसंहार को जन्म दिया था। इस घटना के प्रतिरोध में एक वर्ष बाद कनाडा में स्थित सिख राष्ट्रवादियों ने एयर इंडिया हवाई जहाज को विस्फोट से उड़ा दिया जिसमें 329 लोग मारे गए थे। उनका दावा था कि  हमला भिंडरावाले की हत्या का बदला लेने के लिए था।

खालिस्तान आंदोलन मौजूदा स्थिति
पंजाब में हालत लंबे समय से शांतिपूर्ण रहे हैं, किंतु विदेशों में कुछ सिख समुदायों द्वारा किये जा रहे ऐसे आंदोलन देखे जाते रहे हैं। प्रवासियों में मुख्य रूप से ऐसे लोग शामिल हैं जो भारत में नहीं रहना चाहते हैं। वहां खालिस्तान के लिये समर्थन अभी भी जारी है क्योंकि इनमें से बहुत लोग ऐसे हैं जिनके मस्तिष्क में 1980 के दशक की भयानक यादें स्पष्ट रूप से विद्यमान हैं। सिखों की कुछ नई पीढ़ियों में ऑपरेशन ब्लू स्टार और स्वर्ण मंदिर की बेअदबी को लेकर अत्यधिक गुस्सा प्रतिध्वनित होता रहता है। 1980 के दशक को अंधकार का युग माना जाता है और बहुत से लोग भिंडरावाले को शहीद के रूप में देखते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि खालिस्तान आंदोलन को वास्तव में राजनीतिक समर्थन प्राप्त होने लगा है।
जानकार कहते हैं कि एक छोटा अल्पसंख्यक समुदाय अतीत की बातों में ही उलझा हुआ है और विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ अपने राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने का प्रयास कर रहा है।

भारत में नहीं है खालिस्तानियों को समर्थन
अब अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन जैसे देशों में रह रहे मुट्‌ठी भर सिखों के द्वारा खालिस्तान की मांग उठाई जा रही  है। हालांकि उन देशों में रहने वाले सिखों के कई संगठन जो लगातार इस मुद्दे को उठाते रहे हैं, उन्हें पंजाब में ज़्यादा समर्थन नहीं है। सिख फ़ॉर जस्टिस अमेरिका स्थित एक ग्रुप है। इसे भारत सरकार ने 10 जुलाई, 2019 को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत प्रतिबंधित कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि संगठन का अलगाववादी एजेंडा है।

9 खालिस्तानी आतंकवादी घोषित
इसके साल भर बाद 2020 में भारत सरकार ने खालिस्तानी समूहों से जुड़े 9 लोगों को आतंकवादी घोषित किया और लगभग 40 खालिस्तान समर्थक वेबसाइटों को बंद कर दिया। सिख फ़ॉर जस्टिस के मुताबिक़, उनका उद्देश्य सिखों के लिए एक स्वायत्त देश बनाना है जिसके लिए ग्रुप सिख समुदाय के लोगों का सहयोग लेने की कोशिश कर रहा है। सिख फ़ॉर जस्टिस की स्थापना वर्ष 2007 में अमेरिका में हुई थी। ग्रुप का प्रमुख चेहरा पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से लॉ ग्रेजुएट गुरपतवंत सिंह पन्नू है। गुरपतवंत सिंह पन्नू ग्रुप के कानूनी सलाहकार भी हैं। उसने खालिस्तान के समर्थन में 'रेफरेंडम 2020' (जनमत संग्रह) कराने का अभियान शुरू किया था। इस संस्था ने कनाडा तथा अन्य कई भागों में जनमत संग्रह कराया परन्तु अन्तरराष्ट्री राजनीति में इसे कोई विशेष प्राथमिकता नहीं मिली।

अमृतपाल की पत्नी ब्रिटिश सरकार की चुप्पी
घटनाओं की एक हालिया श्रृंखला में, अमृतपाल सिंह की पत्नी किरणदीप कौर अपने पति के हिंसक और अलगाववादी खालिस्तान आंदोलन को बनाए रखने में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरीं। लंदन में भारतीय उच्चायोग की बर्बरता की कोशिश के बाद ब्रिटिश सरकार ने चुप्पी साधे रखी, अपने पति की हरकतों को अंजाम देने में कौर की भूमिका सामने आई। ब्रिटिश नागरिक किरणदीप कौर को वैध वीजा होने और उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं होने के बावजूद हिरासत में लिया गया था। सूत्र बताते हैं कि पंजाब में अमृतपाल सिंह की गतिविधियों को बनाए रखने में उसका कनेक्शन महत्वपूर्ण था। ब्रिटेन में महत्वपूर्ण वोट बैंकों पर नियंत्रण का दावा करने वाले खालिस्तानी समर्थकों द्वारा फंड को कथित रूप से हस्तांतरित किया गया और यू.के. सरकार पर दबाव डाला गया। इन समर्थकों ने सरकार से भारतीय राजनयिक मिशनों की बर्बरता के खिलाफ कार्रवाई करने से परहेज करने का आग्रह किया। यूके में खालिस्तान समर्थक गतिविधि के जवाब में, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने 30 मार्च को अपने ब्रिटिश समकक्ष टिम बैरो के साथ चर्चा की थी। इसके अतिरिक्त, भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत विरोधी तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आह्वान किया था।

ब्रिटेन में रहते हैं 5.24 लाख सिख
ब्रिटेन में लगभग 5.24 लाख सिख रहते हैं, जो वहां की कुल आबादी का लगभग 0.92 प्रतिशत यानी एक प्रतिशत से भी कम हैं। ब्रिटिश सिखों के पास रोजगार और घर के स्वामित्व की उच्च दर है। सिखों की उच्च-कुशल व्यवसाय की दर  2018 में 39% से अधिक से  थी। 2018 की ब्रिटिश सिख रिपोर्ट के अनुसार केवल 2% सिख ब्रिटेन में परिवार के बुजुर्ग सदस्य केयर होम में रहते हैं।

 


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Content Editor

rajesh kumar

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