गरीबों के फ्रिज पर भी महंगाई का असर

Wednesday, Apr 01, 2015 - 12:23 AM (IST)

जलालाबाद(गुलशन): आज के इस मशीनी युग में भी मिट्टी से बने बर्तनों का अपना विशेष महत्व है। अमीरों के लिए जहां फ्रिज बन गए, वहीं गरीबों के लिए मटका आज भी फ्रिज से कम नहीं है। गर्मियां शुरू होते ही मटकों की बिक्री में तेजी आ गई है। किसी मुहूर्त, हवन यज्ञ में आज भी मिट्टी के बर्तनों का ही प्रयोग किया जाता है। कुम्हारों की आजीविका का साधन बने मिट्टी के बर्तनों की मांग आजकल बहुत कम हो गई है। वहीं महंगाई की मार भी मटकों पर पड़ती नजर आ रही है। पुश्तैनी रूप से कार्य करने वाले कुम्हार भी अब इसे बनाने में परहेज करने लगे हैं।

पानी के घड़े की जगह फ्रिज व बंद बोतलों ने ले ली है। जहां अमीर आदमी इन आधुनिक वस्तुओं का जमकर प्रयोग कर रहे हैं, वहीं मध्यम वर्ग व गरीब वर्ग के लोग आज भी मिट्टी के बने बर्तनों से पानी पी रहे हैं। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी मिट्टी से बने बर्तनों का क्रेज है। खेतों में काम करने वाले मजदूर आज भी मिट्टी से बने मटकों में ही पानी खेतों में लेकर जाते हैं। 
 
एक अन्य बुजुर्ग कुम्हार ने बताया कि पहले मिट्टी से बने खिलौनों की काफी मांग हुआ करती थी और आमतौर पर गांवों व शहरों की गलियों में ये खिलौने खूब बिकते थे मगर आधुनिकता की चकाचौंध में यह पूरी तरह से लुप्त हो गए हैं। इन हालातों के चलते कुम्हारों की स्थिति इस स्तर पर पहुंच गई है कि लोग इस व्यवसाय को छोडऩे का मन बना चुके हैं। छोटा मटका इन दिनों 40 से 50 रुपए के बीच बिक रहा है जबकि बड़ा मटका 80  रुपए तक मार्कीट में बिक रहा है। 
 
सबसे ज्यादा डिमांड सुराही की है क्योंकि मटकों की बजाय सुराही में पानी ज्यादा ठंडा रहता है। सुराही पर भी महंगाई की परछाई दिखाई दे रही है। छोटी सुराही 25 रुपए व बड़ी सुराही 75 रुपए की बिक रही है। ऐसे में साफ जाहिर है कि महंगाई के कारण अब लोग भी मिट्टी के बर्तनों से परहेज करने लगे हंै।
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