''लाशों के ढेर में थी खड़ी, लेकिन नहीं हारी हिम्मत''

punjabkesari.in Saturday, Jan 17, 2015 - 04:42 PM (IST)

जालंधर: अरुणिमा सिन्हा जिसके बारे में कौन नहीं जानता, माऊंट एवरेस्ट विजेता अरुणिमा सिन्हा पैर से निशक्त होते हुए भी दुनिया में देश का गौरव बढ़ा रही हैं। उनका जुनून ही है, जिसने बायां पैर न रहते हुए भी उन्हें एवरेस्ट की ऊंचाई छूने में कामयाबी दिलाई।
 
अरुणिमा ने अपनी बहादुरी से माऊंट एवरेस्ट पर फतेह हासिल की। अरुणिमा ने बताया कि माऊंट एवरेस्ट के नीचे ऑक्सीजन की कमी होने के कारण मेरे सामने ही एक बांग्लादेशी ने दम तोड़ दिया। आस-पास लाशों का ढेरर पड़ा हुआ था। मुझे मेरे गाइड ने कहा कि यहां से वापिस चलो लेकिन मैंने उसकी कोई बात नहीं मानी और दुनिया की सबसे ऊंची एवरेस्ट चोटी पर फतेह हासिल की।
 
उसने बताया कि उसके साथ एक हादसा हुआ था। इस हादसे में उसने अपनी टांग खो दी थी। हुआ यूं था कि 11 अप्रैल 2011 की रात डेढ़ बजे मैं लखनऊ से दिल्ली जा रही थी। ट्रेन में लूटेरे घुस आए और लोगों को लूटना शुरू कर दिया। मैंने चोरों का विरोध किया तो उन्होंने मुझे ट्रेन से बाहर फैंक दिया। इस दौरान पीछे से आ रही ट्रेन से मेरी एक टांग टूट गई, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। 
 
उसने बताया कि मैंने एवरेस्ट फतह करने की अपने दिल की इच्छा बछेनद्री पाल से जताई थी, हालांकि जब कैंप में जब मेरी प्रैक्टिस चल रही थी तब मेरी कटी हुई टांग से खून बहता था लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैंने डट कर अपनी प्रैक्टिस की और 21 मई 2014 को माउंट एवरेस्ट फतेह हासिल की। 

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