रियल एस्टेट की कानूनी लड़ाई में होम बायर्स का पलड़ा भारी

punjabkesari.in Monday, Sep 12, 2016 - 03:11 PM (IST)

नई दिल्लीः रियल एस्टेट सेक्टर का खेल अब पलट गया है। कोर्ट ऑर्डर्स के चलते बायर्स ''शोषक'' बिल्डर्स के खिलाफ मजबूती से खड़े हो रहे हैं। केस दर केस बायर्स के अधिकारों को कोर्ट में मजबूती मिल रही है। कई मामलों में बिल्डर्स के खिलाफ आए ऑर्डर सख्त और कुछ मामलों में तो घातक रहे हैं। 

 

सुप्रीम कोर्ट के वकीलों का कहना है कि रियल एस्टेट कंपनियां स्लोडाउन और कैश की तंगी से जूझ रही हैं और होम बायर्स के हक में आ रहे फैसलों से उन पर दबाव बढ़ता जा रहा है। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में एक मुकदमे में इन चिंताओं का जिक्र किया था। उन्होंने कोर्ट से अपील की थी कि वे कंपनी को प्रोजेक्ट से एग्जिट करने वालों सभी बायर्स को रिफंड देने का ऑर्डर ना दें। 

 

सिब्बल जेपी ग्रुप और यूनिटेक की तरफ कोर्ट में पेश हो चुके हैं, जिन्होंने बायर्स तो पैसे ले लिए लेकिन वर्षों तक प्रोजेक्ट नहीं बनाया। उन्होंने कहा था, ''हम खत्म हो जाएंगे। इससे तो हम बर्बाद हो जाएंगे। डूब जाएंगे। इससे किसका फायदा होगा?'' इस दलील के साथ उन्होंने प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए और वक्त मांगा लेकिन अदालतों को लगता है कि कंपनियों को बहुत छूट मिली हुई है। 

 

ज्यादातर रियल एस्टेट मामलों की सुनवाई कर रही बेंच को हेड करने वाले जस्टिस दीपक मिश्रा का रुख देश में इस मामले में कानून का राज कायम कराने को लेकर साफ हैं। उन्होंने एक मामले में कहा था, ''अगर आपने पैसा लिया है तो वादा पूरा कीजिए या पैसा लौटाइए। आप लोगों की जीवन भर की कमाई लेकर भाग नहीं सकते। उनको सिर पर छत दीजिए या फिर उनका पैसा लौटाइए जिससे वे कहीं और रहने का इंतजाम कर सकें।'' 

 

इधर कुआं, उधर खाई वाली स्थिति में फंसे रियल एस्टेट डिवेलपर्स का कहना है कि नियमों की दिक्कत की सजा उनको नहीं मिलनी चाहिए। कई प्रोजेक्ट्स एनवायरमेंटल क्लीयरेंस या डिवेलपर्स के काबू से बाहर की चीजों से अटके हैं। इससे कंपनियों के लिए लोन चुकाना मुश्किल हो रहा है और उनके पास प्रोजेक्ट बंद करने के सिवा कोई ऑप्शन नहीं बचता। वे कुछ मामलों में खासतौर पर नेशनल कैपिटल रीजन की लोकल अथॉरिटीज को जिम्मेदार ठहराते हैं। सुपरटेक के वकील आर चंद्रचूड़ कहते हैं, ''इस समस्या के जिम्मेदार सिर्फ बिल्डर्स नहीं हैं। ब्लैक मनी पर सरकार की सख्ती के चलते उनके साथ लिक्विडिटी की जेनुइन तंगी है। सभी बिल्डर्स को बैंक से लोन नहीं मिलता है। कुछ को प्राइवेट सेक्टर और इंडिविजुअल से पैसा लेना पड़ जाता है। उसके लिए भी उसको बहुत ऊंचा ब्याज चुकाना पड़ता है।''

 

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